भारतीय समाज में महिलाओं पर अत्याचार होना कोई नई बात नहीं है. यहां पुरुष वर्चस्व को बरकरार रखने के लिए हमेशा महिलाओं के स्वाभिमान और उनके जीवन की आहुति दी जाती रही है. सब कुछ सहती हुई वह कभी अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार और अत्याचार के विरोध में अपनी आवाज नहीं उठा पाई. क्योंकि कहीं ना कहीं वह यह जानती थी कि इस पुरुष प्रधान समाज में उसकी व्यथा कोई नहीं सुनेगा. इसीलिए अपने इसी जीवन को अपनी नियति मानती हुई वह सब कुछ सहन करना ही अपने और अपने परिवार के लिए बेहतर समझती थी.
प्राय: देखा जाता है कि महिलाएं परिवार के भीतर ही कभी पिता तो कभी पति, किसी ना किसी रूप में पुरुष के दमन और शोषण का शिकार हो जाती हैं. जिसका सबसे बड़ा कारण यह है कि प्रकृति ने महिला को पुरुषों की अपेक्षा शारीरिक तौर पर कमजोर बनाया है, जिसकी वजह से वह जल्द ही पुरुषों के क्रोध और ईर्ष्या की शिकार बन जाती हैं. वहीं हमारे देश में यह माना जाता रहा है कि पति को पत्नी पर हाथ उठाने का अधिकार शादी के बाद ही मिल जाता है लेकिन अब परिस्थितियां इसके ठीक उलट हो चुकी हैं. हमारी संवैधानिक व्यवस्था महिलाओं के ऊपर होने वाली हिंसा और उनके शोषण के प्रति सचेत हो गई है. जिनकी सहायता से कभी अबला और असहाय समझे जाने वाली महिलाएं आज अपने अधिकारों के प्रति आवाज बुलंद करने लगी हैं. वर्ष 2006 में भारत सरकार द्वारा घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 लागू किया गया जिसके अनुसार महिला, वृद्ध अथवा बच्चों के साथ होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा अपराध की श्रेणी में आती है, और इसके दोषी पाए जाने पर कड़ी सजा का भी प्रावधान है. अर्थात कोई भी महिला यदि परिवार के पुरूष द्वारा की गई मारपीट अथवा अन्य प्रताड़ना से त्रस्त है तो वह घरेलू हिंसा की शिकार मानी जाएगी. घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 महिला को घरेलू हिंसा के विरूद्ध संरक्षण और सहायता का अधिकार प्रदान करता है. इस कानून का मुख्य बिंदु यह है कि इसके द्वारा सांझा घर जैसी योजना का निर्धारण किया है. इसके अंतर्गत किसी भी महिला, चाहे वह बहन, विधवा, मॉ, बेटी, अकेली अविवाहित महिला आदि, को घरेलू संबंधों में सम्मिलित किया जाना जरूरी करार दिया गया है. उन्हें संपत्ति का अधिकार ना देते हुए भी, आवास संबंधी सभी सुविधाएं मुहैया कराना परिवार के मुखिया की जिम्मेदारी होगी.
घरेलू हिंसा के मुख्य कारण क्या हैं ?
हमारे समाज में बेटी के पैदा होने से ही उसके साथ भेद-भाव होना शुरू हो जाता है. उसकी स्वतंत्रता को कुचल देना भारतीय पुरुषों की आदत रही है. कहीं अगर वह अपनी आजादी और अस्तित्व के लिए आवाज उठाती है तो उसके साथ गलत व्यवहार और मारपीट कर उसे चुप करा दिया जाता है. सरकार द्वारा घरेलू हिंसा और महिला संरक्षण कानून परिवार के भीतर रहने वाले पुरुषों के इसी स्वभाव पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से ही लागू किया गया है. इस कानून के अंतर्गत महिलाओं के प्रति होने वाली शारीरिक या मानसिक हिंसा के निम्नलिखित कारण हैं:
घरेलू हिंसा के प्रकार कौन से हैं ?
परिवार का कोई भी पुरुष सदस्य अगर महिला को मारता है, उसके साथ अभद्र भाषा में बात करता है या उसे किसी भी चीज के लिए विवश करता है तो वह महिला घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उसके खिलाफ मामला दर्ज करा सकती है. व्यापक तौर पर घरेलू हिंसा के निम्नलिखित प्रकार हैं:
पीड़िता को कैसे राहत मिल सकती है ?
व्यथित महिला या पीड़िता किससे सम्पर्क करे ?
वैश्विक स्तर पर घरेलू हिंसा की क्या स्थिति है ?
महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा को अंतरराष्ट्रीय महिला दशक (1975-85) के दौरान एक पृथक पहचान मिली थी. विश्व के अधिकांश देशों में पुरूष प्रधान समाज है जहां महिलाओं को हमेशा ही दोयम दर्जे का स्थान दिया गया है. यही कारण है कि पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं के प्रति अपराध तथा उनका शोषण करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ती रही है. ईरान, अफगानिस्तान की तरह अमेरिका जैसे विकसित देश में भी महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है. अमेरिका में एक नियम है कि अगर एक परिवार में मां और बेटा है तो कानूनी तौर पर वह एक ऐसे घर के हकदार हैं जिसमें एक ही शयन कक्ष हो. इससे स्पष्ट है कि अमेरिका जैसे देश में भी महिलाओं के प्रति भेदभाव किया जाता है. दुनिया के सबसे अधिक शक्तिशाली व उन्नत राष्ट्र होने के बावजूद अमेरिका में अनेक क्षेत्रों में महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं.
भारत में घरेलू हिंसा की क्या स्थिति है ?
देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि देश में लगभग 5 करोड़ महिलाएं घरेलू की शिकार हैं लेकिन इनमें से केवल 0.1 प्रतिशत महिलाओं ने ही इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है.
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