खेल मानव सभ्यता के शुरुआत से ही अस्तित्व में है. खेल मनोरंजन का सबसे अच्छा साधन माना जाता है, लेकिन खेलों में डोपिंग की मिलावट इसके मनोरंजन को बर्बाद कर देती है. बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और प्रतियोगिता के बीच आगे बढ़ने की लालसा ने खिलाडियों को सफलता के लिए शॉर्ट कट मारने पर विवश कर दिया. कभी जानबूझ कर तो कभी गलती से की गई दवाइयों के सेवन की वजह से खेल कई बार डोपिंग की मार झेल चुका है. इस बार भी कॉमनवेल्थ गेम्स में डोपिंग का भूत सिर चढ़ के बोल रहा है. भारत में भी इस बार कई खिलाडी इसकी वजह से नप चुके हैं.
नशे की गिरफ्त में खेल
मनोरंजन के लिए होने वाला खेल आज कई खिलाडियों के लिए आजीविका का स्त्रोत है तो कइयों के लिए पैसा बनाने की मशीन. खेल को खेलने वाले खिलाड़ी अब इससे ज्यादा बड़े हो गए हैं, नतीजन खेल भावना की किसी को परवाह ही नहीं रही.
वर्तमान में खेलों के बिगडते स्वरुप में अनुशासनहीनता व नशावृत्ति इतनी बढ रही है कि खेलों पर प्रश्नचिह्न लग रहा है. डोपिंग प्रवृति से न सिर्फ खेल और खिलाड़ी प्रभावित होते हैं बल्कि इससे लाखों खेल प्रेमियों व देशवासियों की भावनाएं भी आहत होती हैं. किसी भी खिलाड़ी को यह नहीं भूलना चाहिए कि खेलों के साथ लाखों लोगों की जन भावनाएं जुड़ी हुई रहती हैं और वे नशा लेकर खेलकर न सिर्फ अपना चरित्र खराब करते हैं बल्कि लाखों लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं.
पुराना है डोपिंग का जाल
कमोबेश हर खेल में आज डोपिंग व वर्जित दवाइयों का सेवन होता है और इसके लिए हर खेल से जुड़े अधिकारी उच्च स्तर पर सोचते हैं. ऐसा नहीं है कि खेल में डोपिंग आज ही हो रही है, वर्षों पहले भी फुटबॉल जैसे लोकप्रिय खेल में माराडोना जैसे खिलाड़ी भी नशीली दवाइयों के सेवन से बच नहीं सके तो क्रिकेट में डोपिंग अक्सर बार-बार देखने में आ ही जाती है. लेकिन ओलंपिक जैसे खेलों में जहां शारीरिक शक्ति का असली परीक्षण होता है वहां भी डोपिंग बड़े स्तर पर होती है.
नादानी पड़ सकती है घातक
अगरभारत की बात की जाए तो ऐसे मामलों में एक बात सामने आई है कि ज्यादातर खिलाडियों को इन दवाओं के बारें में मालूम ही नहीं होता. कई बार सामान्य सर्दी-जुकाम आदि की दवाई लेते समय इस बात की सावधानी नहीं बरती जाती कि वह प्रतिबंधित दवाइयों में शामिल है या नहीं. उनके कोच भी इन बातों को लेकर लापरवाह रहते हैं.
इसी वर्ष 20101 के जनवरी माह में वाडा(विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी) ने नई गाइडलाइन जारी कर दी है, जिससे सभी खिलाड़ी अनजान हैं. नियम के अनुसार मिथाइल हेक्सामाइन डोपिंग में आता है, लेकिन भारत में यह कई खाद्य तेलों में भी पाया जाता है. ऐसे में फूड सप्लिमेंट लेने के बाद भी खिलाड़ी में डोपिंग टेस्ट पॉजिटिव आ सकता है. अब जहां तक इस बारे में जानकारी की बात है तो यह काम सभी खिलाड़ियों के बस की नहीं है. दवाओं की लंबी लिस्ट है जिसे याद रखना बहुत मुश्किल है.
खेलों में होता है जानबूझकर खिलवाड़
अनजाने में हुई गलती तो मान ली जाती है लेकिन कई बार खिलाड़ी अपनी शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए भी इसका इस्तेमाल करते है. खिलाड़ी मैदान मे उतरने से पहले व चलते मैच में नशा लेते हैं व इसी दम पर अपना दमखम दिखाते हैं और इस तरह नशे के बल पर ही वह खेलते हैं. इससे खिलाड़ियों के अन्दर का खिलाड़ी मर जाता है व उसकी हैसियत एक नशेड़ी से ज्यादा कुछ नहीं रहती
कॉमनवेल्थ गेम्स पर भी डोपिंग का साया
इस बार कॉमनवेल्थ भारत में हो रहे हैं और भारत के ही कई खिलाड़ी डोपिंग की वजह से प्रतिबंधित हो गए हैं. हाल ही में कॉमनवेल्थ खेलों की टीम में शामिल 18 भारतीय खिलाड़ी डोपिंग के दोषी पाए गए हैं जिसमें से 12 खिलाड़ी एक ही पदार्थ मिथाइलहेक्सामाइन के लिए पॉजीटिव पाए गए. इतनी बडी संख्या में एक ही वस्तु के सेवन में लिप्त पाने से खेल संघ को भी संदेह है कि इन खिलाडियों ने यह सब जानकारी के अभाव में लिया है.
जो भी हो इतना तो निश्चित है कि खेलों में नशीली दवाओं का चलन विशेष उद्देश्य को लेकर ही आरंभ हुआ और जब ये लगने लगा कि इससे खेलों का स्तर प्रभावित होगा तब जाकर इस पर कार्यवाही की बात उठने लगी. ओलंपिक खेलों में धावक अपना दम-खम दिखाने के फेर में नशीली दवाओं का अधिकाधिक सेवन करने लगे जिससे बात ज्यादा गंभीर हो गयी. इसके बाद तो ये सिलसिला ऐसे चल निकला जैसे डोपिंग के बिना अच्छा प्रदर्शन नामुमकिन हो. भारत भी इस बुराई से अछूता नहीं रहा इसलिए डोपिंग के खतरे से बचाव के लिए देश में एक शीर्ष निकाय का गठन किया जाए, जो दोषी खिलाड़ियों पर नज़र रखने के अलावा युवा खिलाड़ियों का सही मार्गदर्शन कर सके.
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