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दहेज दो चाहे कुछ भी करो !

खबर चर्चा में है कि मेरठ के बीएसपी विधायक हाजी याकूब कुरैशी ने अपने दामाद को 65 लाख की ऑडी क्यू-7 कार, दहेज में पांच किलो सोने और 40 किलो चांदी के जेवर, बर्तन और अन्य सामान दिया. बरातियों में पुरुषों को बाइक और महिलाओं को फ्रिज दिया गया. इससे पहले अभी हरियाणा के पूर्व विधायक सुखबीर सिंह जौनपुरिया की बेटी योगिता और दिल्ली के कांग्रेसी नेता कंवर सिंह तंवर के बेटे ललित तंवर की शादी हुई जिसमें राजस्थान के सालासर बालाजी मंदिर के नाम 71 लाख रुपये का चेक दिया गया, आसपास के मंदिरों को भी लाखों रुपये की भेंट दी गईं और करीब 250 करोड़ की इस शादी में दूल्हे का टीका ढाई करोड़ का किया गया और परिवार के 18 सदस्यों का टीका 1-1 करोड़ से किया गया. शादी में शरीक हुए करीब 2 हजार बारातियों को 30-30 ग्राम के चांदी के बिस्कुट व एक-एक सफारी सूट दिए गए.


उपरोक्त आंकड़े समाज की उस प्रदर्शन प्रवृत्ति का खुलासा करने के लिए काफी हैं जिनकी वजह से दहेज प्रथा को बढ़ावा मिला है और दहेज की कुप्रथा के कारण दम तोड़ती दुलहनों की चीखें ये साबित करती हैं कि समाज के शीर्ष पायदान पर बैठे लोगों की इस मनोवृत्ति के कारण अधिक मात्रा में दहेज देना और लेना सम्मान का प्रतीक समझा जाता है. दहेज शब्द ने अपने पारंपरिक रूप में सबसे ज्यादा नुकसान समाज के निर्धन और निर्धनतम  तबके को पहुंचाया है. धनी और साधन संपन्न लोग अपने धन बल को दिखाने के लिए सोना, चांदी, जमीन जायजाद और भारी मात्रा में धन का लेन-देन करते हैं जिसके कारण अन्य लोगों में हीन भावना का जन्म होता है. मध्य आय वर्ग वाले तो इसको मानक मान कर अपने बेटे-बेटियों की शादी में धन के लेन-देन को प्रोत्साहित करने लगते हैं फलस्वरूप समाज में भ्रष्टाचार को संरक्षण मिलने की गुंजाइश बढ़ती है.


विवाह पश्चात होने वाली प्रताड़ना की अधिकांश बुराइयां सीधे-सीधे दहेज प्रथा से जुड़ी हैं. इसके अलावा समाज में होने वाली भ्रष्टाचार जैसी आर्थिक बुराइयों का भी संबंध दहेज के लेन-देन से जुड़ी होती हैं. उदाहरण के तौर पर यदि किसी के घर बेटी का जन्म होता है तो सबसे पहले उसके दिमाग में बात आती है दहेज की. व्यक्ति पहले से ही ये हिसाब लगाने लगता है कि आने वाले वर्षों में उसे कितना दहेज जुटाना पड़ेगा, जब तक बेटी शादी योग्य होगी तब महंगाई कितनी बढ़ चुकी होगी, मुद्रास्फीति के कारण उसके द्वारा इकट्ठा किए गए रकम की क्या वैल्यू होगी.


अंततः इन का कौन जिम्मेदार होगा? जब तक बड़े लोग सादगी का मानक नहीं अपनाते तब सामान्य वर्ग के अंदर दिखावे से प्रभावित होने की प्रवृत्ति कैसे खत्म की जा सकती है. स्वाभाविक है कि आमजन बेटी की शादी को लेकर चिंतित रहेगा और समाज का संपन्न तबका इसी तरह का दिखावा करते हुए समाज को गलत राह पर जाने को प्रेरित करता रहेगा.

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