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प्रथा के नाम पर यहां लड़कों का भी शोषण होता है !!

भारतीय कुप्रथाओं में एक बहुत बड़ी और प्रचलित कुप्रथा दहेज प्रथा (Dowry System) है. आजादी से आज तक हम कई कुप्रथाओं से लड़े हैं और इन कुप्रथाओं को हमारे समाज से पूरी तरह हटाने में कामयाब भी रहे हैं. पर दहेज प्रथा (Dowry System) एक ऐसी प्रथा है जो आज भी हमारे समाज में बहुलता से प्रचलित है. आलम यह है कि आज यह अपने आधुनिक रूप में समाज को डस रही है. इसे हटाने के भारतीय कानून में इसके बदले हुए स्वरूप के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. परिणामत: यह धड़ल्ले से एक संक्रमित करने वाले रोग की तरह बड़ी तेजी से फैल रही है. हालांकि दहेज प्रथा (Dowry System) को लड़कियों, महिलाओं के शोषण के रूप में देखा जाता है, वस्तुत: हकीकत यह है कि यह महिलाओं से ज्यादा पुरुषों का शोषण है.


स्थिति: तब और अब

1947 में आजादी के बाद भारत की कमजोर अर्थव्यवस्था को सुधारना सबसे बड़ी चुनौती थी. गरीबी, अशिक्षा बहुतायत थी पर उससे बड़ी समस्या थी तमाम तरह के अंधविश्वासों और कुप्रथाओं की गिरफ्त से देश को उबारना. इसके बिना विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. सबसे बड़ी बात थी कि इन कुप्रथाओं के केंद्र में महिलाएं थीं. सती प्रथा, दहेज प्रथा (Dowry System), बहुवविवाह के अलावे बाल विवाह में यूं तो दोनों पक्षों का शोषण था पर महिलाओं को इसका ज्यादा भुगतान करना पड़ता था. मुश्किल हुई पर साम-दाम-दंड-भेद किसी भी प्रकार इससे देश ने अधिकांशः मुक्ति पा ली. देश सती प्रथा, बाल विवाह जैसी कुप्रथा से मुक्त हो गया पर दहेज प्रथा (Dowry System) आज भी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता ही जा रहा है. इसे हटाने के सरकारी प्रयासों के तहत 1961 में दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 बनाया गया. इसके अतिरिक्त भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी (304B) तथा 498ए(498A) के अंतर्गत दंड का भी प्रावधान किया गया है. कुछ समय के लिए इसमें कमी भी आई लेकिन अब वापस अपना स्वरूप बदलकर यह बड़ी सामाजिक समस्या बनकर उभर रही है.

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दहेज प्रथा (Dowry System) का आधुनिक स्वरूप

dowryशादी के वक्त लड़की को उपहार स्वरूप नगद रुपए, गहने, उसके ससुराल पक्ष की पसंदानुसार अन्य वस्तुएं देना दहेज के अंतर्गत आता है. हालांकि इसके साथ उपहार शब्द जुड़ा है तथापि इसमें उपहार जैसा कुछ होता नहीं. उपहार के रूप में जबरदस्ती चीजें देने के लिए लड़की पक्ष को बाध्य किया जाता है. भले ही वे इसके लिए अक्षम ही क्यों न हों पर लड़की के सुखद भविष्य के लिए वे लड़के पक्ष की हर मांग पूरी करते है. यही स्थिति उपहार को दहेज की श्रेणी में रखती है.

पहले वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष से शादी के लिए खुले आम दहेज की मांग की जाती थी. नगद रुपयों, वर एवं उसके घरवालों के लिए महंगे कपड़े, गहने आदि के अलावे गाडियां, वर पक्ष के रिश्तेदारों के लिए महंगे उपहार आदि का चलन आम था. दहेज निरोधी कानून के बाद जब यह दंडात्मक अपराध की श्रेणी में आने लगा तो कुछ समय के लिए दहेज प्रथा (Dowry System) में कमी आई. पर आधुनिक समाज में दहेज प्रथा (Dowry System) नए स्वरूप में खुलेआम चल रही है. पढ़े-लिखे सभ्य समाज में जितने ऊंचे पद पर लड़का होता है, उतने अधिक दहेज का चलन है. हालांकि अब यह दहेज के रूप में न मांगकर उपहार के रूप में ही अप्रत्यक्ष मांग का हिस्सा होता है. लड़की वालों से तो कई बार यहां तक कहा जाता है कि उन्हें दहेज नहीं चाहिए, बस शादी का खर्च उठा लें. इसके अलावे बातों-बातों में बिना कोई मांग किए वे इतनी अपेक्षाएं गिना देते हैं कि आज की तारीख में लड़की वालों के लिए लाखों का खर्च हो जाता है. वे कहने को तो बिना किसी मांग के अपनी खुशी से लड़की को उपहार स्वरूप उसके पति को गाड़ी, घर आदि दे रहे होते हैं पर वास्तव में यह लड़के वालों की अप्रत्यक्ष मांग होती है. इस प्रकार इस नए रंग-रूप में दहेज तेजी से फल-फूल रहा है.


परिणाम

आज भी लड़कियों को पूरी तरह खुले रूप समाज स्वीकार नहीं कर पाया है. लड़कों की तुलना में लड़कियों की कम संख्या इस बात का सबूत है. हालांकि पढ़े-लिखे उच्च आय वाले परिवारों में स्थिति बदल रही है पर निम्न और मध्यम वर्ग में स्थिति बहुत हद तक वहीं है. कन्या-भ्रूण हत्या भी पूरी तरह बंद नहीं हुई है. जिन परिवारों में कन्या भ्रूण हत्या नहीं भी होती है वहां भी लड़कियों के जन्म पर लड़कों की भांति खुश होने वाले परिवारों की संख्या बहुत कम है. इसकी मूल वजह दहेज प्रथा (Dowry System) है. लड़की के जन्म के साथ ही उसकी शादी की चिंता परिवार को सताने लगती है. अब तो स्थिति यह है कि लड़का भी पढ़ी-लिखी लड़की ढूंढ़ता है तो उसे पढ़ाने का खर्च भी है. इस तरह समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने में दहेज प्रथा (Dowry System) बहुत बुरा प्रभाव डाल रही है.

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दहेज केवल महिला नहीं, पुरुषों पर भी अत्याचार करता है

ऐसा माना जाता है कि दहेज प्रथा (Dowry System) महिलाओं पर अत्याचार है. एक तो लड़की शादी कर लड़के के घर जाती है, उस पर भी उसके बदले दहेज की मांग की जाती है. पर यह एक तरफा सोच है. हकीकत में देखें तो दहेज पुरुषों के लिए महिलाओं से ज्यादा अत्याचारी है. दहेज की मांग लड़की लेने के बदले नहीं, अपने बेटे की कमाई, उसकी उच्च स्थिति के आधार पर की जाती है. एक प्रकार से लड़कों को शादी में लड़की वालों को बेच दिया जाता है. सही मायनों में देखें तो लड़कों को दहेज के रूप में बिक्री का सामान बना दिया जाता है, ‘जो ज्यादा पैसा देगा, लड़का उसी का होगा’. अब या तो लड़के इस बात को समझ नहीं पाते या शायद पैसों की चाह में बिक जाते हैं.


दहेज प्रथा (Dowry System), प्रथा के नाम पर एक बहुत क्रूर उपहार संरचना है. इसने शादी जैसे पवित्र रिश्ते को तो खरीद-फरोख्त की जगह बना दी है. लड़कियों की स्थिति को दोयम दर्जा देने में भी इसका बड़ा हाथ है. दहेज के नाम पर कई शादियां टिक नहीं पातीं. ऐसे में यह शादी की संस्था में विश्वसनीयता को कम करने का कारक रहा है. इस पर समाज को फिर से सोचना होगा. हालांकि आज के लड़के-लड़कियां इसके लिए जागरुक हैं. कई लड़कियां दहेज मांगने वाले परिवार में शादी करने से मना कर देती हैं. कई लड़के दहेज के खिलाफ रहते हैं पर परिवार के सामने झुक जाते हैं. इस जगह नई पीढ़ी के लड़के-लड़कियों को ज्यादा मजबूती से काम करने की आवश्यकता है. साथ ही लड़की पक्ष भी अगर लड़कियों की केवल शादी की बजाय उनेके सुखद भविष्य की सोचें और ऐसे रिश्तों से इनकार कर दें तो निश्चय ही परिवर्तन आएगा.

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