Menu
blogid : 316 postid : 1349130

देश की इन पुरानी समस्‍याओं के कारण बाबाओं की ‘शरण’ में जाते हैं लोग!

गुरमीत राम रहीम सिंह को सोमवार को रेप के मामले में सजा सुना दी गई। राम रहीम पहला ऐसा ‘बाबा’ नहीं है, जो रेप के मामले में संलिप्‍त पाया गया है। देश में समय-समय पर ऐसे ‘बाबाओं’ के असली चेहरे सामने आते रहते हैं। इनमें गुरमीत राम रहीम के अलावा आसाराम, नारायण साईं और रामपाल जैसे कुछ नाम लगभग सभी को याद होंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि इतने फर्जी बाबाओं के कारनामे सामने आने के बाद भी आखिर क्‍यों लोग बाबाओं के चक्‍कर में पड़ते हैं।


ramrahim


बेरोजगारी और भुखमरी बना रही बाबाओं को ‘भगवान’!

दरअलस, इसके पीछे देश की कुछ ऐसी बड़ी समस्‍याएं नजर आती हैं, जो वर्षों से बनी हुई हैं। देश में जब तक भूखे-प्यासे, बिना छत के सिस्टम से परेशान और बेरोज़गार लोग रहेंगे, तब तक ऐसे बाबाओं की दुकान चलती रहेगी। माना कि एक बहुत गरीब इंसान है, जिसके पास पेट भरने तक को कुछ नहीं है। उसने नौकरी तलाशी, लेकिन नहीं मिली। एक दिन वो किसी बाबा के डेरे या आश्रम में गया, जहां उसे पेट भर भोजन मिला। भोजन के बाद उसे आश्रम का कुछ काम करने को बोला जाएगा, तो वह खुशी से ऐसा करेगा। वो सिर्फ भोजन के लिए ऐसा कर रहा है। उसे कोई पैसा नहीं दिया जा रहा। ऐसे में कुछ दिन बाद वो अपने परिवार के साथ बाबा के आश्रम में ही रहने लगेगा। सोचिये कि क्‍या बाबा उसके लिए किसी भगवान से कम है?


Asaram


तुक्‍का भी आता है काम

गांव-देहात में जब कोई बीमार होता है, खासकर महिलाएं और लड़कियां, तो उसको डॉक्टर के पास ले जाने की बजाय, झाड़-फूंक वाले बाबा के पास ले जाया जाता है। बोला जाता है कि कोई भूतिया चक्कर है। तुक्के से वो ठीक हो गई, तो बाबा की दुकान चलना तय है। असल में लोगों के पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं और अगर होते हैं, तो वे इलाज पर ख़र्च नहीं करना चाहते।


narayan sai


रोजगार से लोग होते हैं आ‍कर्षित

बाबागीरी का सीधा संबंध गरीबी, भुखमरी और बेरोज़गारी से है। बाबागीरी का विकास हमारे राजनीतिक सिस्टम की विफलता है। बाबाओं ने लोगों को काम दे रखा है। जो काम सरकारी मुलाज़िम नहीं करते, वे काम बाबा के एक फोन से हो जाते हैं। असल में जो काम सरकारी मशीनरी को करने चाहिए वो काम बाबा लोग कर रहे हैं। कई बड़े बाबाओं ने बड़ी संख्‍या में लोगों को रोज़गार दिया है। कई सेलिब्रेटी इन बाबाओं की शरण में जाकर इनकी बाबागिरी को ऊर्जा देने का काम करते हैं। यंत्र-तंत्र, समागम, प्रवचन हर घर में टीवी के ज़रिये ये बाबा घुस गए हैं। सरकार वैज्ञानिक सोच को विकसित करने के साधनों पर पर्याप्त निवेश ही नहीं कर रही। बाबाओं को ताकत भुखमरी, गरीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा और सिस्टम की विफलता के एकजुट होने के कारण मिलती है।


Read More:

अब क्या रेल हादसे भी अगस्त में होते हैं? 2 लाख कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है रेलवे!
मेरी इज्जत, तेरी इज्जत से कम कैसे?
21 हजार रुपए का जुर्माना! अगर लड़कियां खुलेआम सड़क पर फोन पर करेंगी बात


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh