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प्रजनन क्षमता को बाधित करता है कम उम्र में शारीरिक संबंध बनाना

romanceहमारा समाज जो हमेशा से ही अपनी मौलिक परंपराओं और मान्यताओं को लेकर प्रतिबद्ध और संजीदा रहा है, वहां कुछ समय पहले तक बाल-विवाह जैसी कुप्रथाएं प्रमुख रूप से विद्यमान रही हैं. जिसके अंतर्गत बाल्यावस्था में ही बच्चों का विवाह संपन्न कर दिया जाता था. परिणामस्वरूप उन दोनों के बीच कम उम्र में ही शारीरिक संबंध विकसित होना जरूरी और स्वाभाविक माना जाता था. समय बदलने के साथ-साथ यह प्रथा काफी हद तक समाप्त कर दी गई. हालांकि आज भी देश के कुछ भागों में इस प्रथा को ही आदर्श मानकर इसका अनुसरण किया जा रहा है लेकिन एक नए शोध में यह प्रमाणित हुआ है कि कम उम्र में शारीरिक संबंध बनाना एक स्वस्थ समाज की दृष्टि में जितना विकृत है, विज्ञान की नजर में भी वह उतना ही हनिकारक भी है.


ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी कॉलेज आफ मेडिसिन्स के वैज्ञानिकों ने अपने एक शोध में यह पाया है कि वे बच्चे जो कम उम्र में शारीरिक संबंध स्थापित कर लेते हैं उनका मानसिक विकास अपेक्षाकृत धीमा या फिर ना के बराबर होता है. किशोरावस्था में तंत्रिका प्रणाली विकास की प्रक्रिया में होती है. ऐसे में सेक्स संबंध बनाने के विभिन्न दुष्प्रभाव हो सकते हैं.


यह अध्ययन हैम्सटर नामक एक पालतू जानवर, जो देखने में चूहे की तरह लगता है, पर किया गया है. शोधकर्ताओं ने देखा कि वे हैम्सटर जो कम उम्र में सेक्स संबंध बना लेते हैं उनका मानसिक विकास सही ढंग से नहीं हो पाता है. इतना ही नहीं उनके अवसाद ग्रस्त होने की संभावना भी कई गुणा बढ़ जाती है.


एक मुख्य बात जो इस अध्ययन द्वारा सामने आई है वो यह कि ऐसे हैम्सटर जो शारीरिक संबंध जल्दी बना लेते हैं उनकी प्रजनन क्षमता भी उल्लेखनीय रूप से निम्न हो जाती है.


इस अध्ययन को अगर हम भारतीय परिवेश के अनुसार देखें तो भारत जैसे परंरागत और रुढ़िवादी देशों में विवाह से पहले शारीरिक संबंधों का अनुसरण करना या विवाह के पश्चात अवैध संबंधों में लिप्त रहना पूर्णत: अनैतिक और घृणित माना जाता है. हमारी मान्यता है कि जो व्यक्ति युवावस्था या विवाह से पहले शारीरिक संबंध स्थापित करता है तो ऐसा कर वह अपने और अपने परिवार के सम्मान को पूरी तरह गंवा देता है. इसके अलावा उसका चारित्रिक पतन और विनाश भी उसके अनैतिक शारीरिक संबंधों का ही एक दुष्प्रभाव समझा जाता है.


आज जब हमारी मानसिकता थोड़ी विस्तृत और व्यवहारिक होने लगी है तो हम विवाह योग्य उम्र और बच्चों के शारीरिक विकास के बीच के संबंध को समझने लगे हैं. जिसके परिणामस्वरूप बाल-विवाह जैसी प्रथाओं को हम पूर्ण रूप से नकार चुके हैं. शारीरिक परिपक्वता के पायदान पर पहुंचने के पश्चात ही परिवार वाले अपने बच्चों के विवाह के विषय में सोचना शुरू करते हैं.

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लेकिन क्या बदलते हालातों और मॉडर्न होती जीवनशैली में बच्चों को अनैतिक सेक्स संबंधों से दूर रखने के लिए अभिभावकों और समाज की बदलती मानसिकता काफी है?


कंप्यूटर क्रांति और वैज्ञानिक तकनीकों के आगमन के बाद आज व्यक्ति कम उम्र में ही लगभग सभी विषयों, जिनमें शारीरिक संबंध भी शामिल होते हैं, से सहज रूप से ना सिर्फ परिचित होता है बल्कि इनमें रुचि भी लेने लगता है. आधुनिकता के बयार के तहत आज मनोरंजन पर भी अश्लीलता हावी होने लगी है. पहले जहां टेलीविजन मनोरंजन का एक स्वस्थ माध्यम माना जाता था आज उसमें भी अभद्रता और फूहड़ता प्रमुख रूप से प्रदर्शित की जाने लगी है. यही वजह है कि आज किशोरावस्था या युवावस्था में ही सेक्स के प्रति रुचि उत्पन्न होने लगी है. किशोर इस सभी के विषय में जानने के लिए बेहद उत्सुक रहने लगे हैं. स्कूलों की प्रबंधित दिनचर्या होने के कारण वह अपनी उत्सुकता को शांत नहीं कर पाते, लेकिन कॉलेज में जब उन्हें मनचाही आजादी मिल जाती है तो प्रेम संबंधों की आड़ लेकर वह अपने अनैतिक हितों को साधने का प्रयत्न करने लगते हैं. जबकि उनका ऐसा व्यवहार और आचरण जहां समाज की नजर में चरित्रहीन प्रमाणित करता है, वहीं यह उनके मस्तिष्क और स्वास्थ्य पर भी बहुत गहरा प्रभाव छोड़ता है.


अभिभावक भी जाने-अनजाने ही सही अपने बच्चे के गलत मंतव्यों को अपनी स्वीकार्यता दे देते हैं. वह या तो अपने बच्चों की हरकतों, उसके क्रियाकलापों पर ध्यान ही नहीं देते या फिर उसे बचपना समझकर नजरअंदाज कर देते हैं. उनका यही स्वभाव बच्चे की बिगड़ती मानसिकता को बढ़ावा देता है.


युवा मन इतना परिपक्व नहीं होता कि वह अपने लिए सही-गलत जैसे निर्णयों और रास्तों की पहचान कर सके. उसका आसपास का वातावरण और उसमें होने वाली गतिविधियां ही उसे अपने लिए रास्ता चुनने के लिए प्रेरित करती हैं. वह रास्ता लाभदायक और सकारात्मक भी हो सकता है और हानिकारक भी. इसीलिए अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की बगडोर हमेशा ही अभिभावकों के हाथ में रहती है. कंप्यूटर कॅरियर और सामाजिक सरोकार की दृष्टि से फायदेमंद है, चारित्रिक और मानसिक दृष्टि से उतना ही खतरनाक भी इसीलिए अभिभावकों को इस ओर सतर्कता बरतनी चाहिए कि उनका बच्चा नेट पर कैसी साइटों को देखता है. इसके अलावा वह किससे मिलता है और कहां जाता है इस ओर भी निगरानी रखनी चाहिए. अभिभावकों को यह समझना चाहिए कि बच्चों को जरूरत से ज्यादा आजादी देकर वह भले ही एक दोस्त की भूमिका को निभा रहे हैं लेकिन उनकी यह भूमिका बच्चों को गलत मार्ग पर ढकेलती है, जो ना सिर्फ उनके चारित्रिक पतन का कारण बनता है बल्कि उनके स्वास्थ्य और आगामी वैवाहिक जीवन को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है.

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