असमान परिस्थितियों में समानता की बातें करना बहुत आसान है लेकिन जब व्यवहारिक रूप में समानता को चरितार्थ करने की बात आती है तो फिर चाहे कोई भी समाज या देश हो, महिलाओं को किसी ना किसी रूप में पुरुषों से कम आंक ही देता है.
महिलाओं पर अत्याचार करने के अलग-अलग तरीके खोजकर हम उन्हें हर पल, हर घड़ी दोयम होने का एहसास करवाते हैं. उन्हें किसी भी तरह यह स्वीकार करने के लिए मजबूर कर देते हैं कि वह पुरुषों के आधिपत्य वाले समाज में जी रही हैं, इसलिए उन्हें पुरुषों के ही इशारों पर नाचना होगा.
यही वजह है कि महिलाओं को एक भोग की वस्तु समझने वाला पुरुष समाज, उनके साथ होने वाली यौन शोषण और शारीरिक शोषण जैसी घटनाओं को ज्यादा महत्व नहीं देता. बल्कि इसके उलट अगर किसी महिला के साथ कुछ ऐसा दर्दनाक घटित होता भी है तो हमारा समाज महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहाराता है और भी उनके कपड़ों का हवाला देकर.
नारीवादी, स्त्री अस्मिता और उसकी आजादी से जुड़े कई व्याख्यान देते हैं लेकिन फ्रांस के कुछ कॉलेज स्टूडेंट्स ने महिलाओं के साथ उनके कपड़ों को कारण बताकर होने वाले यौन अपराधों के विरुद्ध एक ऐसा स्टंट किया जिसे देखकर सभी हक्के-बक्के रह गए.
महिलाओं के कपड़े और स्कर्ट पहनकर ये स्टूडेंट कॉलेज आए, कुछ ने उन्हें मानसिक रूप से बीमार कहा तो कोई उन्हें लाइमलाइट का भूखा मानने लगा लेकिन ये छात्र महिला-पुरुष के बीच ‘समानता’ के लिए अपना प्रदर्शन करने में जुटे थे.
‘व्हाट द स्कर्ट रेजेज’ नाम के इस कैंपेन का उद्देश्य लिंग के आधार पर भेदभाव जैसे मसले पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना था और स्कर्ट पहनकर प्रोटेस्ट करने का कारण उन लोगों को परेशान करना था जो लड़कियों के स्कर्ट जैसे छोटे कपड़े पहनने का विरोध करते हैं.
महिलाएं अपने अधिकारों के लिए चाहे कितनी भी आवाज क्यों ना उठाती रहें लेकिन जब तक उनकी आवाज को किसी पुरुष का साथ नहीं मिलता, उनकी आवाज, उनके दर्द को दबा दिया जाता है. लेकिन ये बात भी सही है कि स्त्री विमर्श जैसे विषय को गलत दिशा में मोड़ना भी इन नारीवादियों के ही हाथ में होता है जो स्त्री को अधिकार दिलवाने के दावे करते हैं. यूं तो आए दिन कोई ना कोई कैंपेन या प्रोटेस्ट महिलाओं को उनके अधिकार दिलवाने के नाम पर होता ही रहता है लेकिन जब तक महिलाएं स्वयं अपने अधिकारों और दायित्वों को नहीं पहचानेंगी, तब तक उन्हें कुछ हासिल होना मुश्किल ही है.
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