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नदी का यह रूप भी गणेश जी के भक्तों को प्रथा निभाने से रोकने में नाकाम रहा

जब तस्वीर कहानी खुद बयां करे तो शब्द बेमानी लगते हैं. पहली तस्वीर को देखकर भले ही आपको यह लग रहा हो कि यह किसी फिल्मी सेट का नजारा हैं और गणेशजी की मूर्ति बादलों के ऊपर उड़ रही है लेकिन वास्तविकता यह है कि यह तस्वीर दिल्ली में यमुना नदी की है और गणेशजी की मूर्ति बादलों के ऊपर नहीं उड़ रही है. एक गणेशभक्त यमुना में प्रदूषण के कारण उफनते फेन के बीच गणेशजी की मूर्ति को विसर्जित कर रहा है.


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यह गणेशजी के प्रति इस भक्त की आस्था ही है कि वह यमुना में इस भयंकर प्रदूषण की परवाह किए बगैर अपने गणपत्ति बप्पा के साथ इसमें प्रवेश कर गया है. यमुना के इस प्रदूषित जल के कारण उसे स्किन कैंसर और त्वचा संबंधित अन्य भयंकर बीमारियां हो सकती हैं. अगर यह जल उसके शरीर के भीतर प्रवेश किया तो न जाने कौन-कौन सी बीमारियों को जन्म देगा.


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शायद इस भक्त को अपने स्वास्थ संबंधित इन खतरों का इल्म नहीं है और यदि है तो फिक्र नहीं है. हो सकता है कि उसे गणपति बप्पा पर पूरा विश्वास हो कि वे उन्हें कुछ नहीं होने देंगे. आखिर गणेशजी की प्रतिमा को विसर्जित कर यह भक्त गणेश जी की सेवा ही तो कर रहा है.

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कुछ गणेश भक्तों को इस प्रकार की भोली सोच के लिए माफ किया जा सकता है. लेकिन समाज के रूप में हम और समाज के व्यवस्थापक के रूप में सरकार भी यदि ऐसी ही सोच रखती है तो यह क्षम्य नहीं है.


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ऐसे नजारे सिर्फ गणपति विसर्जन के समय दिखते हों ऐसा नहीं है. कुछ ही दिनों में उत्तरभारत का एक लोकप्रिय पर्व छठ आएगा. पिछले वर्ष छठ के अवसर पर इन्हीं हलातों में यमुना में अर्घ्य देते हुए लोगों की तस्वीरें मीडिया में आईं थी. इन तस्वीरों पर हो-हल्ला तो खूब हुआ लेकिनी जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं हुआ. अबकी छठ में भी दिल्ली के यमुना घाटों पर हम बदली हुई तस्वीर देखेंगे इसकी उम्मीद कम ही है.


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यह तस्वीरें दिखाती हैं कि नदियों का भारत के लोगों के जीवन और संस्कृति से अटूट रिश्ता है. नदियां जहरीली हो चली हैं लेकिन लोगों को अब भी वे जीवनदायनी व मोक्षदायनी प्रतीत होती हैं.


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भारतीय जनमानस का नदियों से रिश्ता टूटे यह असंभव सा प्रतीत होता है. हालांकि इन जहरीली हो तुकी नदियों के कारण लोगों की सेहत, आस्था और जीवन के साथ खिलवाड़ होता रहे और हम सब “सब चलता है” वाला रवैया अख्तियार किए बैठे रहें, यह भी मंजूर नहीं है.


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यमुना एक दिन में इस हालत में नहीं पहुंची, नाहीं इसके लिए किसी खास वर्ग या संस्था को जिम्मेवार ठहराया जा सकता है. इसलिए इसकी हालत सुधारने की जिम्मेदारी सबकी होनी चाहिए. सरकार की भी और उन भक्तों की भी जो गणेश जी की मूर्तियों को ऐसी हालत में छोड़ जाते हैं. विसर्जन के बाद इन मूर्तियों में इस्तेमाल हुए रसायन भी पहले से प्रदूषित यमुना को और प्रदूषित करने में कसर नहीं छोड़ते. छठ जैसे त्योहारों में जो पूजन सामग्री हम घाटों पर छोड़ आते हैं वे भी नदियों को और गंदा बनाती हैं. Next…

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