आमतौर पर लोग भीख या तो अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए मांगते हैं लेकिन तमिलनाडु के करुणानिधि नगर में रहने वाले आर. सेल्वाराज के भीख मांगने का कारण बेहद निराला है. वे अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए भीख तो मांगते ही हैं, साथ ही इसलिए भी कि वह आस-पास के गरीब बच्चों के लिए किताबें और दूसरी स्टेशनरी का समान खरीद सकें.
सेल्वाराज के इकनॉमिक ग्रेजुएट होने के बावजूद नौकरी नहीं मिल पाई. नौकरी पाने में उनका पोलियोग्रस्त होना बाधक बना. सबसे पहले उन्होंने साइकिल की दुकान पर मेकैनिक के तौर पर काम करना शुरू किया, लेकिन इससे उन्हें इतने पैसे नहीं मिलते थे कि उनके और परिवार के खर्चे पूरे हो सके. कुछ दिन बाद सेल्वाराज ने दुकान का काम छोड़कर भीख मांगने लगे.
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साल 2006 से वह कराईकुडी बस स्टैण्ड पर ही भीख मांग रहे हैं. लेकिन इस पैसे को वे गरीब बच्चों की पढ़ाई के खर्चे भी पूरा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ से बात करते हुए सेल्वाराज ने बताया कि ‘एक गरीब परिवार से होने के कारण मैंने पेट भरने और पढ़ने के लिए संघर्ष को काफी नजदीक से देखा है, इसीलिए मैं 1968 से ही गरीब बच्चों की मदद कर रहा हूं. लेकिन 2006 के बाद जब मेरे पास कोई जॉब नहीं बची, मैंने गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए भीख मांगने का फैसला किया.’
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पोलियोग्रस्त के लिए बस स्टैण्ड पर भीख मांगना किसी चुनौती से कम नहीं थी. वे कहते हैं कि शुरुआत में बसों में चढ़ने में उन्हें काफी कठिनाई अनुभव होता था, लेकिन फिर उन्होंने निश्चय किया की वे स्टैण्ड पर रुकने वाली हर बस में चढ़ेंगे. सेल्वाराज के अनुसार यह सब करने में उन्हेंं आत्मसंतुष्टि मिलती है. Next…
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