लाल, हरा, पीला, नीला और सफेद. रंगों को देखकर हम सभी का मन खुशियों से भर जाता है. सबके लिए कोई न कोई रंग खास महत्व रखता है. लेकिन जब इन्हीं रंगों का इस्तेमाल किसी की जाति जानने के लिए किया जाने लगे. तो रंग अपना वास्तविक अर्थ खोने लगते हैं. चेन्नई से 650 किलोमीटर दूर तिरुनेलवेली के एक स्कूल में इन दिनों अलग-अलग रंगों का प्रयोग जाति जानने किया जा रहा है. बच्चों को अपनी जाति अनुसार निर्धारित किए हुए रंगों के बैंड कलाई, माथे और गले में पहनने की सख्त हिदायत दी गई है.
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जिसमें लाल और पीला रंग थेवर्स के लिए, नीला और पीला नादार जाति के लिए, केसरिया रंग यादव के लिए और पिछड़ी जातियों और दलितों के लिए हरा, काला और सफेद रंग का प्रयोग करने के लिए कहा गया है. स्कूल अधिकारियों का कहना है कि इस साल अगस्त से स्कूल में बच्चों की संख्या बहुत बढ़ गई थी जिसके तहत उनकी जाति को पहचानने के लिए ये रास्ता अपनाया गया है. जबकि ऐसा आधिकारिक तौर पर नहीं किया गया है. किसी को लिखित नोटिस नहीं भेजा गया है बल्कि स्कूल में की गई एक मीटिंग के दौरान स्कूल प्रिंसिपल ने मौखिक तौर ये अजीबोगरीब फरमान जारी किया है.
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स्कूल में पढ़ने वाले 13 साल के एक किशोर का कहना है कि पीला मेरा पसंदीदा रंग है लेकिन मैं इसे पहन नहीं सकता क्योंकि ऐसा करने से मुझे थेवरों की धमकी मिलनी शुरू हो जाएगी. वहीं एक अन्य दलित किशोर को डर है कि अगर वो अपने उच्च जाति के दोस्त के साथ बैठेगा तो स्कूल से उसको निकाल दिया जायेगा. आज जहां दुनिया जाति,धर्म से ऊपर उठकर दकियानूसी सामाजिक सरोकारों को चुनौती दे रही है. वहां ऐसे शर्मनाक मामले शिक्षा और समाज का दौरा चेहरा पेश कर रहे हैं…Next
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