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हां, मैं लेस्बियन हूं

मैं अपनी सहेली से बहुत प्यार करती हूं, अगर मेरी उससे शादी नहीं करवाई गई तो मैं अपनी जान दे दूंगी

यह कहना है भिवानी की कक्षा ग्यारहवीं में पढ़ने वाली एक छात्रा का, जो अपनी ही बेस्ट फ्रेंड से प्यार कर बैठी है और अब जब उसकी सहेली उसकी नीयत भांप कर उससे रिश्ते खत्म करना चाहती है तो वह ना सिर्फ उसी को जान से मारने की कोशिश कर रही है बल्कि आत्महत्या करने जैसी भी धमकियां देने लगी है.


हमें कोठे के तौर-तरीके सीखने पड़ेंगे


पिछले तीन साल से दोनों लड़कियां एक-दूसरे की पक्की सहेलियां हैं. स्कूल में एक ही क्लास में पढ़ती हैं और घर वापस आने के बाद भी बहुत सा समय एक साथ ही बिताती हैं लेकिन जब 17 साल की इस आरोपी लड़की ने अपनी दोस्त के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तभी से यह मामला बिगड़ता गया. उसकी सहेली ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया जिसके बाद उसकी दोस्त और आरोपी लड़की ने उस पर चाकू से वार किया. पीड़िता ने अपनी आप बीती अपने परिजनों को बताई जिसके बाद इस मामले की रिपोर्ट दर्ज कराकर आरोपी लड़की को सुधार गृह भेज दिया गया, इस उम्मीद के साथ कि उसमें कुछ सुधार होगा. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि वह तो अभी भी यही जिद ठान कर बैठी है कि उसकी शादी उसकी दोस्त से करवाई जाए नहीं तो वह अपनी जान ले लेगी. सुधारगृह में उसकी हर तरीके की काउंसलिंग की गई, उसे समझाया गया लेकिन वह कुछ भी समझने के लिए तैयार नहीं है.


सुप्रीम कोर्ट ने की पीड़ित को मुआवजा दिलवाने की पहल


समलैंगिकता से जुड़ा यह कोई पहला मसला नहीं है बल्कि इससे पहले भी कई बार दो पुरुष या महिला दोस्तों के बीच शारीरिक आकर्षण और शारीरिक संबंधों जैसे मसले सुनने को मिलते रहे हैं हालांकि इन्हें शहरी क्षेत्रों में फैल रही आधुनिकता का नतीजा बताकर नजरअंदाज कर दिया जाता था. लेकिन हरियाणा के भिवानी जैसे छोटे से शहर से आ रही यह खबर वाकई हैरान कर देने वाली है. यह सब जानने के बाद जो चिंतनीय तथ्य हमारे सामने आता है वह है कि समान लिंग के लोगों के प्रति आकर्षण का भाव तेज गति से हमारी संस्कृति को प्रभावित करने पर आमादा है.


रियलिटी शो का रियल चेहरा काफी खौफनाक है


भारतीय समाज में बढ़ रहे ऐसे घृणित यौनाचारों के पीछे हमारी वो मानसिकता जिम्मेदार है जिसके चलते हम पाश्चात्य देशों की तरह भारत में भी समलैंगिकता का पक्ष लेते हुए उन्हें समान अधिकार दिलवाने की पैरवी करते हैं. हमें उनके बीच पनप रही ऐसे आकांक्षाओं और मनोभावों को दूर करना चाहिए लेकिन हम उनके इस बर्ताव को सही ठहराकर ऐसी घृणित मानसिकता को बढ़ावा देने का काम करते हैं.


पति-पत्नी के बीच जब आने लगे तुम्हारा परिवार-मेरा परिवार


हम यह मानते हैं कि इंसानियत के नाते ही सही हमें ऐसे लोगों की सुरक्षा करनी चाहिए, उन्हें समाज में रहने के लिए समान अधिकार दिलवाने चाहिए लेकिन ऐसा सोचते हुए हम इस ओर ध्यान देना भूल जाते हैं कि एक की गलत मानसिकता से जब दूसरे लोग प्रभावित होते हैं तो ऐसी मानसिकता को बढ़ावा देने का क्या औचित्य है?


इज्जत के बोझ तले सिसकता आधा समाज

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