अगर किसी व्यक्ति से एक छोटा सा सवाल पूछा जाए कि खुश रहने के लिए तुम्हें क्या चाहिए? ऐसे में ज्य़ादातर लोगों का यही जवाब होता है कि अच्छी सैलरी वाली जॉब, आधुनिक सुख-सुविधाओं से युक्त आलीशान बंगला, महंगी गाड़ी, हर साल छुट्टियों में विदेश यात्रा। अनगिनत भौतिक आकांक्षाओं की लंबी सूची…। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि ऐसी तमाम सुविधाएं हासिल कर चुके लोग भी अपने जीवन से संतुष्ट नज़र नहीं आते। एयरकंडीशंड कमरों में भी लोगों को नींद नहीं आती। यहां तक कि स्कूली बच्चों में भी डिप्रेशन जैसी गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्याओं के लक्षण नज़र आने लगे हैं। मोबाइल और इंटरनेट के साथ दिन-रात व्यस्त रहने वाले बच्चे घर से बाहर पार्क में जाकर खेलना-कूदना भूल चुके हैं। जंक फूड के नियमित सेवन और शारीरिक निष्क्रियता की वजह से बच्चों में ओबेसिटी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। विडियो गेम्स बच्चों को धैर्यहीन और हिंसक बना रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी ज्य़ादा से ज्य़ादा पैसे कमाने में व्यस्त है। उसके पास अपने घर-परिवार और बच्चों के लिए ज़रा भी समय नहीं है। लोग इंटरनेट पर अजनबियों से घंटों चैटिंग करते हैं, पर उनके पास अपने परिवार के सदस्यों का हाल पूछने की भी फुर्सत नहीं होती।
खो रही है मानवता
हमारे धर्मग्रंथों में काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को बड़ी मानवीय दुर्बलता की श्रेणी में रखा गया है। ज्य़ादातर लोग ऐसी कामनाओं से प्रेरित होकर अपने जीवन को दुखमय बना लेते हैं। ज्य़ादा सुख-समृद्धि हासिल करने की होड़ परिवार और समाज में अशांति की सबसे बड़ी वजह है। सब कुछ हासिल कर लेने के बाद भी लोग कुछ और ज्य़ादा पाने के लोभ में एक-दूसरे से छीना-झपटी कर रहे हैं। ऐसी ही मानसिकता की वजह से देश बंटते हैं और युद्ध होते हैं। चाहे देश हो या समाज, चारों ओर घोर निराशा और असुरक्षा का माहौल है। यही भावना लोगों को दूसरों से लडऩे के लिए उकसाती है। आज सभी देश यही तर्क देते हैं कि वे अपनी सुरक्षा के लिए हथियार जमा कर रहे हैं और सत्ता की लोलुपता की वजह से पूरी दुनिया में अशांति फैला रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि विश्व के सभी धर्म मानवता के प्रति करुणा और प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए युद्ध के नाम पर किया जाने वाला नरसंहार हर धर्म को आहत करता है।
अंतर्मन को टटोलें
लोगों की सहनशक्ति इतनी कमज़ोर हो गई है कि अपनी इच्छा के विरुद्ध कोई भी बात सुनते ही लोगों का $गुस्सा फूट पड़ता है। क्रोध मेंं पागल व्यक्ति अपने-पराए का फर्क भूलकर हिंसक व्यवहार पर उतर आता है। छोटी-छोटी नाकामियों की वजह से लोग हताशा के शिकार हो जाते हैं। अथर्ववेद में लिखा गया है, ‘धन और भवन संपत्ति नहीं हैं, आत्मा के लिए धन बटोरो, आध्यात्मिक ज्ञान ही असली धन है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि आज हर इंसान धन-संग्रह में जुटा है। वह जितना अधिक धन संचय करता है, उतना ही अधिक उसका अहंकार बढ़ता जाता है। ऐसे लोग अपनी समस्त बुराइयों के लिए समाज और देश को जि़म्मेदार ठहराते हैं, जो कि सर्वथा अनुचित है। ऐसा करने वाले लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे इसी समाज में कई ऐसे लोग भी मौज़ूद हैं, जो कठिन से कठिन हालात में भी ईमानदारी और सच्चाई का रास्ता नहीं छोड़ते। इनसे सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए। देश की व्यवस्था पर उंगली उठाने से पहले हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारा यह देश और समाज भी हमारे जैसे ही लोगों से मिल कर बना है। भारतीय समाज आज एक ऐसे नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है, जहां हर इंसान को अपना अंतर्मन टटोलते हुए खुद से यह सवाल पूछना बहुत ज़रूरी है कि हम कहां जा रहे हैं? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है? क्या हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह ईमानदारी से कर रहे हैं? बच्चों को हम कैसे संस्कार दे रहे हैं? सच्ची खुशी हमें कैसे हासिल होगी? अब ऐसे ही सवालों के साथ आत्ममंथन करने का सही समय आ गया है।
स्नेह से सींचें बचपन
अब सवाल यह उठता है कि इसकी शुरुआत कैसे की जाए? यह अकाट्य सत्य है कि बचपन में ही अच्छे संस्कारों की नींव पड़ जाती है। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि हमारे बच्चे कोमल पौधों की तरह होते हैं और माता-पिता का $फजऱ् बनता है कि वे किसी कुशल माली की तरह उनकी अच्छी देखभाल करें। बच्चों को अच्छे संस्कार, संयम और धैर्य की शिक्षा देने में शिक्षक की भी अहम भूमिका होती है। इसके लिए पहले हमें अपनी दिनचर्या को अनुशासित करना होगा क्योंकि बच्चे भी बड़ों का ही अनुसरण करते हैं। निष्क्रियता से व्यक्ति के मन में नकारात्मक भावनाओं का संचार होता है। इसलिए हमें हमेशा सक्रिय रहने की कोशिश करनी चाहिए और छोटी उम्र से ही अपने बच्चों में भी ऐसी ही आदतें विकसित करनी चाहिए। सही समय पर सोना-जागना, नियमित योगाभ्यास और ध्यान जैसी अच्छी आदतों को अपनी दिनचर्या में शामिल करना बहुत ज़रूरी है।
चलें सन्मार्ग पर
मनुष्य का अस्तित्व देह और आत्मा में बंटा है। देह की सुरक्षा के लिए भोजन, वस्त्र और घर का प्रबंध करना स्वाभाविक है। ऐसी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए धन अर्जित करना ज़रूरी है, पर ऐसी भौतिक सुख-सुविधाएं जुटाने की होड़ में हम अपनी आत्मिक ख़्ाुराक को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जो शरीर की ज़रूरतों की तरह साकार नहीं होतीं। जबकि सच्चाई यह है कि आत्मज्ञान से ही हमें मानसिक शांति मिलती है। बौद्ध दर्शन भी व्यक्ति को आत्मनियंत्रण की शिक्षा देता है और इसी के बूते लालच, क्रोध और अहंकार से बचा जा सकता है। ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि मनुष्य अपने चंचल चित्त पर नियंत्रण से क्रोध और इच्छा की त्याग से लोभ पर विजय पा लेता है। वह अपने आचरण से मन और वाणी को साधता है, निरंतर सजगता से डर को हराता है। ज्ञानियों की सेवा और मार्गदर्शन से अहंकार को मिटाता है। जो मनुष्य यह नहीं जानता कि संतोष कैसे आएगा, वह चिंता और तनाव में डूबा रहता है।
मन में हो विश्वास
आज ज्य़ादातर लोग प्रभुता, प्रसिद्धि और दौलत के पीछे भाग रहे हैं। अव सवाल यह उठता है कि इससे मुक्ति कैसे हासिल हो? एक संतुलित, प्रफुल्ल और सकारात्मक जीवन के लिए धर्म की राह पर चलना आवश्यक है। जाति, वर्ण और संप्रदाय जैसे भेदभाव दीमक की तरह समाज को खोखला कर रहे हैं। धर्म को किसी एक संप्रदाय से जोडऩा $गलत है। धर्म संपूर्ण ब्रह्मांड को समरसता, प्रेम और मैत्री सिखाता है। सच्चा धार्मिक व्यक्ति जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखता है। उसके लिए सब कुछ अच्छा है क्योंकि वह ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करता है। जो यह नहीं मानता वह सदा दुखी और परेशान रहता है। प्रार्थना स्वर्ग की कुंजी है, पर यह दरवाज़ा विश्वास से ही खुलता है। हर धर्म बुनियादी तौर पर एक सी मान्यताएं रखता है। केवल स्थान और संदर्भ आदि के कारण ही विभिन्न धर्मों में मामूली-सा फर्क दिखाई देता है। धर्म और जाति के नाम पर देश में हिंसा फैलाने वाले लोग नकारात्मक सोच से भरे होते हैं और ऐसे इंसान को धार्मिक नहीं कहा जा सकता। हालांकि, ऐसे तनावपूर्ण माहौल में भी एक अच्छी बात यह है कि आज की युवा पीढ़ी में आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ रही है और वह सभी धर्मों का समान रूप से आदर करना सीख रही है। अब वह प्रार्थना की अहमियत को समझने लगी है।
अध्यात्म और विज्ञान
कुछ लोग विज्ञान और अध्यात्म को परस्पर विरोधी मानते हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। जिस तरह देह से जुड़े दो हाथ अलग होते हुए भी एक होते हैं, वैसे ही विवेक के साथ व्यावहारिकता का संपर्क होता है। अध्यात्म व्यक्ति को नकारात्मकता से निकालने की शक्ति देता है। परमात्मा से जुड़ाव हमें तनाव और चिंता से मुक्त कराता है। इससे व्यक्ति जातिगत संकीर्णता को त्याग कर आगे बढ़ता है। मनुष्य के आध्यात्मिक विकास की राह में भय सबसे बड़ी रुकावट है, जो जीवन के सहज प्रवाह को रोकता है। यह नकारात्मक भावना ईष्र्या को जन्म देकर व्यक्ति को दिमागी रूप से बीमार बना देती है। आध्यात्मिक चेतना की रोशनी में मिथ्या डर का अंधकार छंट जाता है। इससे व्यक्ति को सच्ची आंतरिक खु़शी मिलती है और वह दूसरों का सहयोग करने के लिए भी प्रेरित होता है। ऐसे अध्यात्म के मार्ग पर चलने वाला इंसान बहुत सहजता से सच्ची आंतरिक खु़शी और मानसिक शांति हासिल कर सकता है।
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