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गर्त की किस गुफा में गुम है इंसानियत


कलयुग है घोर कलयुग. मानवता का इस कदर विनाश होगा अगर यह ब्रम्हा जी को पता होता तो शायद वह मानव को बनाते ही नहीं. अपनी ही रचना में एक-दूसरे के प्रति इतना बैर देख तो शायद उनका पाषाण हृदय भी पिघल गया हो. हाल ही में घटी दो घटनाओं से हम आपको रुबरु कराना चाहते हैं पहली है राजधानी दिल्ली की जहां एक 14 साल की लड़की पर ट्रक वाले ने टायर चढ़ा दिया. अपनी बच्ची की ऐसी हालत देखकर उसके पिता आसपास से गुजरने वाले वाहनों से रुकने का अनुरोध करते रहे लेकिन किसी ने एक न सुनी. सोच कर देखिए एक बाप अपनी आंखों के सामने अपनी बच्ची को मरता देख रहा हो तो उसकी क्या हालत हो रही होगी? क्या वाकई वह ट्रक ड्राइवर अकेला गुनहगार था .. या हो सकता है उस समय वहां से हर गुजरने वाले की मानवता और इंसानियत शून्य हो गई हो. जी हां वहां ऐसा ही हुआ होगा तभी तो किसी ने भी उस बेचारे बाप और असहाय बच्ची की मदद न की. 14 साल की इश्मीत ने अपने पिता के सामने ही दम तोड़ दिया और जीवन के साथ उसके पिता के अरमान भी टूट गए.

दूसरी घटना भी जरा गौर से पढिएगा क्योंकि यह और भी गंभीर और हमारे दैनिक जीवन से संबंध रखती है. जनता तो फिर भी यह कह कर किसी असहाय या दुर्घटना ग्रस्त की मदद नहीं करती कि कहीं उसे पुलिस के चक्कर में न पड़ना पड़े लेकिन नेताओं को आखिर क्या मजबूरी होती है जो वह किसी असहाय की मदद नहीं कर पाते. माजरा तमिलनाडु का है जहां एक पुलिस अधिकारी को कुछ गुण्डे मार कर मरता हुई छोड़ गए और रास्ते से गुजरते हुए एक मंत्री तक ने उसकी मदद न की. उस पुलिस अधिकारी की दोनों टांगें बदमाशों ने काट दी थी, वह असहाय मरता रहा, तड़पता रहा, पास ही मंत्री की सभी गाडियां खडी तमाशा देखती रहीं लेकिन मंत्री से यह नहीं हुआ कि अपने काफिले की इतनी सारी गाड़ियों में से किसी एक में उस बेचारे को बैठा कर अस्पताल ले जाएं. अंत में स्थानीय लोगों की मदद से उस पुलिस वाले को हॉस्पिटल पहुंचाया गया. दूसरों को सुरक्षा देने का वादा करने वाले की सुरक्षा में खुद उसके साथी ही पीछे हट गए थे.

अगर आपने दोनों घटनाओं को इंसानियत की नजर से देखा हो तो आगे कुछ लिखने या कहने की जरुरत ही नहीं. मानवता की इस कड़वी हकीकत के पीछे कई कारण है जैसे दुर्घटना स्थल पर अगर आप किसी की मदद करें तो कई बार पुलिस आप पर ही अपराध थोपने के मूड में दिखती है, या कई बार लोग कानूनी पचड़े में न पड़ने का हवाला देते हैं लेकिन किसी असहाय व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाने में क्या जाता है दोस्तों?
हम असल जीवन में हमेशा सोचते हैं कि काश भगवान कोई ऐसा मौका दे ताकि हम इंसानियत के वास्ते कुछ कर पाएं लेकिन जब वह मौका आता है तो हम पर से इंसानियत का पर्दा हट जाता है और हमारे कदम पीछे हो जाते हैं.

आज कलयुग है और सब अपने फायदे की सोचते हैं. समय पैसे से भी बलवान होता है इसलिए कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहता जिससे उसका पैसा या समय कुछ भी बर्बाद हो. लेकिन पैसे से भी बढ़ कर इंसानियत होती है. हम क्यूं भूल जाते हैं कि जो हम आज किसी और के लिए कर रहे हैं वह कल को हमारे साथ भी हो सकता है. क्या उस नेता के दिल में एक बार भी यह नही आया होगा कि कभी उसकी भी ऐसी हालत हो सकती है या फिर दिल्ली की सड़क पर मरती उस बच्ची को देख किसी को अपने बच्चों की याद नहीं आई होगी.

लिखने को तो हम बहुत कुछ लिख सकते हैं लेकिन उसका क्या फायदा, अगर जागरुकता फैलनी होगी तो इन शब्दों का भी आप पर बहुत प्रभाव पड़ेगा. अपनी संवेदना और इंसानियत को ऐसे हालातों में दबने न दें. याद रखें आप भी इंसान हैं और कभी आप भी मुसीबत में पड़ सकते हैं. जब कभी ऐसी दुर्घटनाओं से रुबरु हों तो उस समय उस पीड़ित की जगह खुद को महसूस कर के देंखे, आपका दिल आपको सही रास्ता जरुर दिखाएगा. जब कभी मौका मिले तो साबित कर दीजिए कि इंसानियत आज भी जिंदा है.

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