पारिवरिक माहौल (Family Environment) बच्चे के सामाजिक और मानसिक विकास (Mental Development) में बहुत अहम भूमिका निभाता है. बच्चा वही सीखता और करता है जिसकी शिक्षा उसे उसके माता-पिता(Parents) द्वारा दी जाती है. इसीलिए प्राचीन काल से ही परिवार को आरंभिक (Initial) विद्यालय का दर्जा दिया गया है. अभिभावकों (Guardians) से मिली शिक्षा ही आगे चलकर व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करती है और उसकी यही चारित्रिक विशेषताएं समाज में उसकी भूमिका और पहचान निर्धारित करती हैं.
अक्सर देखा गया है कि माता-पिता के बीच उत्पन्न मतभेदों (Disputes) और झगड़ों का सीधा असर बच्चों के मस्तिष्क पर पड़ता है. आए दिन होते झगड़ों को देख-देख कर बच्चा भी झगड़ालू प्रवृत्ति का हो जाता है या तनाव में रहने लगता है. इसके अलावा तनावग्रस्त (Highly Stressed) महिला अपने बच्चों से भी गुस्से से बात करती है, जो बच्चे के कोमल मन पर आघात पहुंचाता है और बच्चा अपने ही माता-पिता से डरने लगता है या फिर उनसे बिल्कुल ही कट जाता है और परिवार(Family) से परे वह बाहर अपनी खुशियां ढूंढ़ने लगता है.
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी (Social Animal) है, उसे समाज (Society) में रह कर ही अपना जीवन व्यतीत करने के साथ ही अपने कई सामाजिक और नैतिक कर्तव्यों (Moral Duties) का निर्वाह भी करना पड़ता है, पर जिस व्यक्ति का पालन-पोषण ही असामान्य पारिवारिक परिस्थितियों में हुआ हो, वह आगे चलकर न तो अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को समझ पाएगा और न ही अपने आस-पास एक स्वस्थ वातावरण (Healthy Environment)का निर्माण कर पाएगा. और क्या पता अपने अंदर पनप रहे गुस्से और कुंठा (Frustration) के कारण वह समाज के लिए हानिकारक सिद्ध हो.
भविष्य में ऐसी परिस्थितियां सामने ना आएं, इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी (Responsibility) परिवार, खासकर माता-पिता की होती है. इसीलिए यह आवश्यक है कि अभिभावक अपने बीच के मनमुटाव और तनाव (Tension) को भुलाकर अपने बच्चे के बेहतर कल के बारे में सोचें ताकि वह एक अच्छा नागरिक (Citizen) बनने के साथ-साथ अपने और अपने परिवार (Family) की खुशियों का कारण बन सके.
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