भले ही भारत मौलिक रूप में एक पुरुष प्रधान देश रहा है लेकिन दांपत्य जीवन में पत्नी के महत्व को कहीं भी कम नहीं आंका गया. पति के जीवन में उसकी क्या अहमियत है, इसका उत्तर स्वयं “पत्नी” शब्द में ही निहित हैं जिसका अर्थ हैं, वह नारी जो पतन से उबारती है. भारतीय विधि शास्त्रों में भी पत्नी को अर्धांगिनी का ही दर्जा दिया गया है. जिसका शाब्दिक अर्थ भले ही पत्नी को पति के आधे भाग के रूप में अंकित करता हो लेकिन इसका निहितार्थ काफी विस्तृत है. इसके अनुसार पत्नी किसी पुरुष के जीवन का वह हिस्सा है ज़िसकी जीवन व्यापार में समान भूमिका और समान साझेदारी हो, जो हर सुख-दुख में अपने पति का साथ निभाती हो और साथ ही अपने पति पर आने वाली हर परेशानी, हर पीड़ा को साझा कर लेती हो.
लेकिन जैसा कि भारतीय समाज की प्रवृत्ति रही है, वह जल्दी ही बाहरी चीज़ों से प्रभावित हो जाता है. अपनी मौलिक विशेषताओं और उनकी उपयोगिता को भुला वह विदेशी संस्कृति को अपने अंदर समाहित करने के लिए उत्साहित रहता है. जिसके परिणामस्वरूप वह अपने खाने-पीने और रहने के ढंग में तो परिवर्तन ला चुका ही चुका है, वहीं अब वह विदेशी शब्दकोष पर भी अपने हाथ आजमाने लगा है. उदाहरण के तौर पर मां शब्द का स्थान “मम्मी” और पिता शब्द का स्थान “डैड” ने ले लिया है. लेकिन यह कोई बड़ा बदलाव इसीलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि आरंभिक काल से ही माता-पिता को संबोधित करने वाले शब्द बदलते रहे हैं. अपने जीवन के लिए व्यक्ति हमेशा अपने माता-पिता के प्रति कृतज्ञ रहता है, इसीलिए शब्द बदलने से उनके प्रति उसकी भावना में कमी आने की संभावनाएं कम ही रहती हैं.
लेकिन पत्नी को अर्धांगिनी समझने वाली भारतीय अवधारणा पर प्रहार करते हुए अब भारतीय पुरुष विदेशी पतियों की भांति अपनी पत्नियों को केवल अपना बेटर हाफ समझने तक ही संतुष्ट होने लगे हैं.
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विदेशी संस्कृति में संबंधों को पर्याप्त महत्व नहीं दिया जाता. रिश्ते चाहे कितने ही करीबी और महत्वपूर्ण क्यों न हों, उनका निर्वाह केवल औपचारिकता के लिए ही किया जाता है. ऐसी संस्कृति जहां एक उम्र बाद बच्चे भी अपने माता-पिता के साथ रहना पसंद नहीं करते, वहां रिश्तों की स्थिति किस कदर दयनीय है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. ऐसे देशों में पति-पत्नी के पारस्परिक संबंध भी काफी हद तक उथले हो चुके हैं. प्राय: देखा जाता है कि वे अपने विवाह को केवल एक समझौता मानकर एक दूसरे के साथ रह रहे होते हैं. ऐसे में पुरुषों द्वारा पत्नियों को अपने विवाहित जीवन का बेटर हाफ समझना एक बहुत बड़ा कदम है.
लेकिन भारतीय संस्कृति में पति के जीवन में पत्नी का स्थान केवल “बेटर हॉफ” तक ही सीमित नहीं है.
विदेशी संस्कृति के ठीक विपरीत भारतीय संस्कृति अपने रिश्तों के प्रति बेहद संजीदा और भावनात्मक प्रकृति की है. यहां निजी संबंधों के महत्व को व्यक्ति के जीवन में उपयुक्त स्थान देने की व्यवस्था की गई है. जिसके परिणामस्वरूप उसके जीवन में संबंधों का महत्व इस हद तक बढ़ जाता है कि व्यक्ति खुद को उनसे अलग नहीं कर सकता और जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने इन्हीं रिश्तों के बीच घिरा रहता है.
पति-पत्नी का रिश्ता एक ऐसा संबंध होता है जो पारस्परिक प्रेम और विश्वास के मजबूत धरातल पर खड़ा होता है. शास्त्रों में तो महिलाओं खासतौर पर पत्नियों को पुरुषों से कहीं अधिक महत्व दिया गया है. उन्हें पुरुषों के प्रति कृतज्ञ नहीं, बल्कि पुरुषों को कृतार्थ करने वाली माना गया है. पत्नी का धर्म केवल पति की हर इच्छा पूरा करना ही नहीं होता बल्कि हर कदम पर उसका साथ निभाना और उसे सही राह पर चलने के लिए प्रेरित करना होता है. इसके अलावा पति भी धर्म शास्त्रों को साक्षी मान पूर्ण रूप से उसके प्रति समर्पित हो जाते हैं. साथ ही उनका यह दायित्व बन जाता है कि वे हर दुख से अपनी पत्नी को बचा कर रखें, साथ ही घर और समाज में अपनी पत्नी को उचित और सम्मानित स्थान दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करें. पत्नी का भी यह कर्तव्य बन जाता है कि वह अपने पति की सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए अग्रसर रहें और उसके परिवार के प्रति भी उत्तरदायी बनें.
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आमतौर पर लोग बेटर हाफ को पत्नी या अर्धांगिनी का पर्यायवाची मानकर प्रयोग करते हैं. जबकी इन शब्दों के बीच केवल दो देशों के बीच की संस्कृति और मान्यताओं का ही अंतर नहीं है बल्कि भावनात्मक रूप में भी बहुत गहरी असमानता है. जिसके अंतर्गत पति-पत्नी के पारस्परिक संबंधों के स्वरूप की रूप-रेखा भी परिवर्तित हो जाती है. विदेशों में विवाह केवल दो लोगों को शारीरिक तौर पर जोड़ने का कार्य ही करता है और मानसिक व भावनात्मक रूप से उनमें कई तरह की भिन्नताएं मौजूद रहती हैं. वहीं भारतीय परिवेश में विवाह को एक धार्मिक और सामाजिक संस्था के रूप में विशेष सम्मानीय स्थान दिया गया है जो दो व्यक्तियों को परस्पर तन, मन, आत्मा से जोड़ देता है. इसकी वजह से उनमें भावनात्मक लगाव भी पैदा हो जाता है. इसके अलावा यह भी देखा जाता है कि पश्चात्य देशों में विवाह के बाद भी दो लोगों के व्यक्तिगत जीवन अलग रहते हैं, लेकिन भारतीय परिवारों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हैं, विवाह के बाद दोनों व्यक्तियों के जीवन आपस में जुड़ जाते हैं. परिणामस्वरूप वे दोनों एक-दूसरे के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो जाते हैं और आने वाली हर समस्या और प्रतिकूल परिस्थिति में परस्पर सहयोग की भावना से संबंध को निभाते हैं.
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