केंद्र सरकार के जल संसाधन राज्य मंत्री सांवर लाल जाट ने बताया कि 10 साल के भीतर भारत में पानी की भारी कमी हो जाएगी. यानी साल 2025 तक भारत में पानी की मांग इतनी अधिक हो जाएगी कि वर्तमान में मौजूद जल के सभी स्रोतों को मिलाकर भी उसकी पूर्ति नहीं हो पाएगी.
अव्वल तो ये कि भारत में पेयजल की समस्या प्राकृतिक न होकर मानव निर्मित है. इस समस्या के लिए जल की खराब प्रबंधन, जल के वितरण में गैरबराबरी और उपलब्ध पेयजल का अंधाधुंध खपत को धन्यवाद दे सकते हैं. और अब जब समस्या है तो उसके लिए समाधान भी ढूंढ़ा जाएगा. तो हम आपको बता दें की भारत की हर उस समस्या की तरह, जिसमें भारी मुनाफे की संभावना है, पेयजल की समस्या का समाधान करने के लिए भी निजी कंपनियां तैयार बैठी हैं. इनमें कई विदेशी कंपनियां भी शामिल हैं. एक अनुमान के मुताबिक अगले कुछ सालों में, वॉटर सेक्टर में करीब 13 बिलियन डॉलर यानी 83 हजार अरब से अधिक का निवेश होगा.
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अगले तीन सालों में भारत के जल उद्योग में 18,000 करोड़ रुपए की निवेश की संभावना है. कानडा, इजराइल, इटली, अमेरिका, चीन, बेल्जियम आदि देशों की कई कंपनियां भारत में वॉटर सेक्टर में निवेश की बड़ी संभावना देख रही हैं. यह निवेश बोतलबंद पानी से लेकर वेस्ट वॉटर रिसाइकलिंग और औद्योगिक जलशोधन के क्षेत्र में होगा. वॉटर सेक्टर के लिए महाराष्ट्र प्रमुख केंद्र बनकर उभर रहा है. 12 अंतराष्ट्रीय कंपनियों ने मुंबई और पुणे में पहले ही अपने डिजाइन और इंजीनिरिंग केंद्र स्थापित कर चुकी हैं.
वर्तमान में राज्य में 1200 से अधिक कंपनियां मौजूद हैं जो पानी के उद्योग से जुड़ी हैं. बोतलबंद पानी का व्यापार भारत में सबसे तेजी से उभर रहे उद्योग में से एक बन चुका है. भारत में यह उद्योग सालाना 1000 करोड़ से ऊपर का है और इसकी वृद्धि दर 40-50 प्रतिशत सालाना है. बावजूद इसके भारत में हर रोज तकरीबन 1,600 लोगों की मृत्यु पानी जनित बीमारियों से हो जाती है.
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उनके अनुमान सही साबित होंगे इसमें संदेह है. Next…
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