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उनकी चुप्पी में कहीं दबी हुई सिसकियां तो नहीं! समाज की प्रथाएं जो दम घोंटती हैं

स्त्री की ज‍िदगी में शादी या पति ही सब कुछ नहीं है, इसके बाहर भी उसका अस्तित्व है। हाल ही में एक याचिका की सुनवायी में सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक एवं सामाजिक कुप्रथाओं पर प्रहार करते हुए कहा कि ऐसे किसी भी व्यवहार को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता, जिससे स्त्री की निजता भंग हो या उसका सम्मान आहत हो।कल्पना करना भी मुश्किल है कि 21वीं सदी में हम मध्ययुगीन परंपराओं का पालन कर रहे हैं। संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों में एक है, ‘अपने शरीर पर अधिकार लेकिन स्त्रियों को हमेशा हाशिये पर ही रखा गया। लगभग हर समय और समाज में उन्हें सेक्स ऑब्जेक्ट माना गया। नारीवादी आंदोलनों ने समय-समय पर इन कुप्रथाओं के खि‍लाफ आवाज उठाई है।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal30 Aug, 2019

 

 

 

गलत का विरोध जरूरी
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवायी करते हुए कहा कि हर व्यक्ति का अपनी देह पर अधिकार है। संविधान में लिंग, जाति, नस्ल के आधार पर भेदभाव निषिद्ध है। स्त्रियों को यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और 15 (भेदभाव के खि‍लाफ अधिकार) के तहत प्रदत्त है। किसी भी ऐसे कृत्य को यह कह कर बढ़ावा नहीं दिया जा सकता कि सदियों से इसका चलन रहा है।

 

देह पर हक
दाऊदी बोहरा मुसलिम समुदाय में नाबालिग लड़कियों के साथ होने वाली खतना प्रथा के खि‍लाफ दायर याचिका की सुनवायी में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि स्त्रियों की ज‍िदगी सिर्फ शादी या पति के लिए नहीं है। शादी से इतर भी उनका जीवन है। खतना किसी बच्ची को प्रताडि़त करने का जरिया है और इसका मनोवैज्ञानिक-शारीरिक स्तर पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि आखि‍र किसी स्त्री पर ही यह ज‍िम्मेदारी क्यों हो कि वह पुरुष को संतुष्ट करे? ऐसा बर्ताव तो जानवरों के साथ भी नहीं किया जा सकता। ऐसी किसी भी ऐसी प्रथा का विरोध जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी प्रथाएं चाहे जिस समाज या समुदाय में हों, उन्हें तुरंत रोका जाना चाहिए। पोक्सो एक्ट के तहत नाबालिग बच्चियों के साथ ऐसे कृत्य को अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है।

 

 

गौरतलब है कि लगभग 42 देश पहले ही ऐसी प्रथा को अपराध घोषित कर चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इसे पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य रखा है। डब्लूएचओ ने भी इसे बैन करने की बात कही है लेकिन कई अफ्रीकी, एशियाई और खाड़ी देशों में यह प्रथा कायम है।
भारत में सती, देवदासी और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को खत्म किया गया। तीन तलाक और हलाला जैसी स्त्री विरोधी प्रथाओं के खि‍लाफ भी आवाजे उठीं और तीन तलाक को गलत ठहराया गया। संविधान के तहत स्त्री के प्राइवेट पार्ट को टच करना अपराध की श्रेणी में आता है। केवल मेडिकल कारणों से डॉक्टर ऐसा कर सकता है। अभिभावक भी अपने बच्चे की इच्छा के विरुद्ध ऐसा नहीं कर सकते। ऐसे में किसी भी $गलत प्रथा को यह कहते हुए जारी नहीं रखा जा सकता कि उनका कोई धार्मिक महत्व है।

 

केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि वह ऐसी प्रथा को बंद करने के पक्ष में है और इसके लिए सात साल की सजा का प्रावधान है। गांबिया की कार्यकर्ता जाहा खतना के विरोध में चलाए जा रहे अभियान का चेहरा हैं। उन्होंने पैदा होने के महज एक हफ्ते के भीतर यह दंश झेला था। छोटी उम्र में हुए इस कृत्य के कारण उनकी शादीशुदा ज‍िदगी में दिक्कतें आईं और उन्हें फिर से सर्जिकल प्रक्रिया में जाना पड़ा। उनकी शादी टूट गई, बाद में उन्होंने दूसरा विवाह किया। वर्ष 2013 में उन्होंने एक संस्था का गठन किया और 2015 में उन्हें यूएस की नागरिकता मिली। अभी वह अटलांटा में रहती हैं। उनके जीवन और संघर्ष पर एक फिल्म भी बनी है। उन्हें 2018 के नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया है।

-इंदिरा राठौर

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