एक बड़ी पुरानी कहावत है कि शिक्षा एक ऐसा धन है, जो व्यक्ति के पास हमेशा रहता है और बांटने से बढ़ता है। कम साक्षर होने से किसी देश को कितना नुकसान उठाना पड़ता है, इसका सबूत वहां की विकास दर से ही पता चल जाता है। विश्व में साक्षरता के महत्व को ध्यान में रखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 17 नवंबर, 1965 को 8 सितंबर का दिन विश्व साक्षरता दिवस के लिए निर्धारित किया था। 1966 में पहला विश्व साक्षरता दिवस मनाया गया और तब से हर साल इसे मनाए जाने की परंपरा है। संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक समुदाय को साक्षरता के प्रति जागरूक करने के लिए इसकी शुरुआत की थी। प्रत्येक वर्ष एक नए उद्देश्य के साथ विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है। भारत ने भी सभी को शिक्षित करने के लिए कई प्रयास किए हैं, जिसका असर भी दिखा है। 2001 में जहां भारत की शिक्षा दर 64.83 थी, वो 2011 में 74.04 फीसदी हो गई। मगर इसके लिए हमें प्रयास तेज करने होंगे, क्योंकि शिक्षा के मामले में हम चीन, श्रीलंका और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों से काफी पीछे हैं।
चीन और श्रीलंका से पीछे है भारत
शिक्षा के मामले में पड़ोसी देशों की तुलना में भारत चीन, म्यांमार और श्रीलंका से काफी पीछे है। वहीं, नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश शिक्षा के मामले में भारत से पीछे हैं। चीन में 2015 में साक्षरता दर 96.4 फीसदी, म्यांमार में 93.1 फीसदी और श्रीलंका में 92.6 फीसदी थी। वहीं, 2011 में भारत की साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत थी। इसके अलावा 2015 में नेपाल की साक्षरता दर 64.7 प्रतिशत, बांग्लादेश की 61.5 प्रतिशत और पाकिस्तान की साक्षरता दर 60 प्रतिशत थी।
केरल सबसे शिक्षित राज्य
शिक्षा के मामले में हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन अभी लंबा सफर तय करना है। सेंसस 2011 के अनुसार भारत का सबसे ज्यादा शिक्षित राज्य केरल है, जहां की साक्षरता दर 93.91 प्रतिशत है। यहां 96.02 फीसदी पुरुष और 91.98 फीसदी महिलाएं शिक्षित हैं। वहीं, सबसे कम शिक्षित राज्य बिहार है, जहां की साक्षरता दर 63.82 फीसदी है। यहां 73.39 प्रतिशत पुरुष और 53.33 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित हैं। सेंसस 2011 के अनुसार राजस्थान में महिलाओं की साक्षरता दर सबसे कम 52.66 फीसदी है।
हर साल अलग होती है थीम
अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस की थीम हर साल अलग होती है। आज की तकनीकी दुनिया को ध्यान में रखते हुए UNESCO ने 2017 में अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस की थीम ‘डिजिटल दुनिया में शिक्षा’ रखी है। वहीं, 2016 का विषय था ‘इतिहास पढ़ें और भविष्य लिखें’। 2015 की थीम ‘साक्षरता एवं सतत सोसायटी’ थी। ‘साक्षरता और सतत विकास’ 2014 का लक्ष्य था, जो पर्यावरणीय एकीकरण, आर्थिक वृद्धि और सामाजिक विकास के क्षेत्र में सतत विकास को प्रोत्साहन देने के लिए है। इसी तरह हर साल अलग-अलग थीम होती है।
देश को शिक्षित करने के लिए हुए कई प्रयास
सरकार द्वारा साक्षरता को बढ़ाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मील योजना, प्रौढ़ शिक्षा योजना, राजीव गांधी साक्षरता मिशन आदि न जानें कितने अभियान चलाए गए, लेकिन सफलता आशा के अनुरूप नहीं मिली। इनमें से मिड डे मील ही एक ऐसी योजना है, जिसने देश में साक्षरता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। इसकी शुरुआत तमिलनाडु से हुई, जहां 1982 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन ने 15 साल से कम उम्र के स्कूली बच्चों को प्रतिदिन निशुल्क भोजन देने की योजना शुरू की। इसके फलस्वरूप राज्य में साक्षरता 1981 के 54.4 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 73.4 प्रतिशत हो गई।
2001 में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को सरकारी सहायता प्राप्त सभी स्कूलों में निशुल्क भोजन देने की व्यवस्था करने का आदेश दिया। 1998 में 15 से 35 वर्ष आयु वर्ग के लोगों के लिए ‘राष्ट्रीय साक्षरता मिशन’ और 2001 में ‘सर्व शिक्षा अभियान’ शुरू किया गया। इसमें वर्ष 2010 तक 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों की आठ साल की शिक्षा पूरी कराने का लक्ष्य था। बाद में संसद ने 4 अगस्त, 2009 को बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून को स्वीकृति दे दी। 1 अप्रैल, 2010 से लागू हुए इस कानून के तहत 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देना हर राज्य की जिम्मेदारी और हर बच्चे का मूल अधिकार होगा।
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