किसी भी व्यक्ति के जीवन में उसकी संतान सबसे ज्यादा अहमियत रखती है. दांपत्य जीवन में संतान का आगमन जहां नई जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को लेकर आता है वहीं भावनात्मक और आत्मिक संतुष्टि को भी एक नया आयाम देता है. माता-पिता बनने के बाद विवाहित दंपत्ति एक-दूसरे के साथ उतना समय नहीं बिता पाते जितना वो पहले बिताते थे. इतना ही नहीं उनके काम के घंटों में भी कहीं अधिक वृद्धि हो जाती है लेकिन फिर भी उन्हें अपने बच्चे की देख-रेख करने से ज्यादा और कोई काम नहीं सुहाता.
बहुत से लोगों का यह मानना है कि माता-पिता बनने के बाद व्यक्ति बड़े दयनीय हालातों से गुजरता है. उसे ना तो पूरा आराम मिल पाता है और ना ही वह अपने लिए थोड़ा समय निकाल पाता है. लेकिन हाल ही में कैलिफोर्निया, रिवरसाइड और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा हुए एक साझा अध्ययन में यह बात प्रमाणित की गई है कि माता-पिता के लिए सबसे अनमोल क्षण उनके जीवन में बच्चे का आगमन होता है. काम और जिम्मेदारियों की अधिकता होने के बावजूद अभिभावक के रूप में वह सबसे ज्यादा संतुष्टि महसूस करते हैं.
इस स्टडी की सह-लेखिका एलिजाबेथ डन का कहना है कि अगर आप किसी पार्टी में गए हैं तो वहां आप खुद यह महसूस कर सकते हैं कि जिन मेहमानों की संतान नहीं है उनसे कहीं ज्यादा प्रसन्न वे लोग हैं जिन्हें संतान सुख की प्राप्ति हो चुकी है. इस पूरे अध्ययन के दौरान शोधकर्ता बस यही देखते रहे कि क्या अभिभावक अपने उन साथियों की अपेक्षा ज्यादा परेशान हैं? लेकिन अध्ययन के किसी भी मोड़ पर सर्वेक्षण करने वाले दल को यह नहीं लगा कि संतान का आगमन विवाहित दंपत्ति को मानसिक या शारीरिक थकान या किसी भी प्रकार की परेशानी में डालता है.
अमेरिका और कनाडा के अभिभावकों पर हुए इस सर्वेक्षण द्वारा यह बात पूरी तरह गलत साबित कर दी गई है कि संतान का आगमन माता-पिता के लिए किसी परेशानी से कम नहीं है. अन्य सह-लेखक सोंजा ल्यूबॉरमिस्की का मानना है कि अगर आप अपने बच्चों के साथ रहते हैं और उम्र के एक परिपक्व पड़ाव पर हैं तो आप अपने उन साथियों से कहीं ज्यादा खुशहाल रहेंगे जिनके बच्चे नहीं हैं. सिंगल पैरेंट या युवावस्था में माता-पिता बन जाना एक अपवाद हो सकता है.
शोधकर्ताओं का तो यह भी कहना है कि महिलाओं से ज्यादा पुरुष अपने बच्चे के आगमन को लेकर उत्साहित रहते हैं और उसके आने के बाद वह अपने उन दोस्तों से ज्यादा खुशहाल रहते हैं जिनके बच्चे नहीं हैं.
इस अध्ययन को अगर हम भारतीय परिदृश्य के अनुसार देखें तो पाश्चात्य देशों की तुलना में भारतीय परिवारों में रिश्तों का महत्व कहीं अधिक है. यही कारण है कि भारतीय परिवार में संतान की उत्पत्ति के साथ ही खुशहाली का आगमन भी होता है. माता-पिता बनना किसी भी विवाहित जोड़े के लिए एक बेहद अनमोल क्षण होता है और उसे किसी परेशानी का नाम नहीं दिया जा सकता. संबंधों की मजबूत नींव पर खड़े भारतीय समाज में संतान ही परिवार का भविष्य निर्धारित करती है. माता-पिता अपने बच्चे की खुशियों के लिए अपनी सभी जरूरतों तक को न्यौछावर कर देते हैं और उन्हें इसका जरा भी संकोच नहीं होता. बच्चे की देखभाल करते हुए अगर वह एक-दूसरे के साथ समय व्यतीत नहीं कर पाते तो भी वह भावनात्मक तौर पर बेहद संतुष्ट महसूस करते हैं. वैसे भी बच्चे के साथ उनके कई सपने और अरमान जुड़े होते हैं इसीलिए वह अपने बच्चे के पालन-पोषण में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते.
उपरोक्त चर्चा और सर्वेक्षण के मद्देनजर एक बात तो प्रमाणित हो ही जाती है कि अभिभावक चाहे किसी भी समाज या देश के क्यों ना हों अपने बच्चों के प्रति उनकी जिम्मेदारियां और भावनाएं समान रहती हैं.
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