‘जब तर्क खत्म हो जाते हैं तो बंदूक से काम लिया जाता है.
जिसके भी मुंह में जुबान होगी, उसे गोलियों से भुन दिया जाएगा.
कलम का बदला गोलियों से लिया जाएगा.’
पत्रकार गौरी काफी दिनों से दक्षिणपंथियों के निशाने पर थीं. उन्हें बार-बार जान से मारने की धमकियां मिल रही थी. मंगलवार को उनके घर के बाहर उन्हें गोली मार दी गई. दो गोली सीने और एक गोली सिर में लगते ही उनकी मौत हो गई. माना जा रहा है गौरी घोर हिंदुत्व के कारण उपजी हिंसा और सामाजिक बुराईयों पर जमकर लिखती थी. जिसके कारण उनके कई दुश्मन बन गए थे.
गौरी के अलावा ऐसे कई पत्रकार रहे हैं, जिन्हें समाज का सच दुनिया के सामने लाना मंहगा पड़ गया.
नरेंद्र दाभोलकर
20 अगस्त 2013 का वो काला दिन जब पत्रकार नरेंद्र की हत्या कर दी गई थी. नरेंद्र महाराष्ट्र में धर्म के नाम पर फैले अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठा रहे थे. उन्हीं के प्रयासों के कारण जुलाई 1995 में राज्य में जादू-टोना विरोधी कानून का मसौदा पारित हुआ था, लेकिन राजनीतिक कारणों से ये कानून अमली जामा नहीं पहन सका था. बाद में उनकी हत्या के बाद सरकार ने एक अध्यादेश लाकर ये कानून लागू किया. महाराष्ट्र सरकार ने इतने हत्या का सुराग देने पर 10 लाख का ईनाम भी रखा था.
डॉ एमएम कलबुर्गी
20 अगस्त 2015 को एमएम कलबुर्गी को उनके घर के बाहर गोली मार दी गई. जांच में पाया गया कि एमएम कलबुर्गी मूर्ति पूजा का विरोध कर करते हुए कई लेख लिख रहे थे, जिसकी वजह से उन्हें लगातार धमकियां मिल रही थी.
ज्योतिरमोर्य डे (जेडे)
मुंबई के क्राइम रिपोर्टर ज्योतिरमोर्य अंडरवर्ल्ड की दुनिया में घट रहे अपराधों को सामने लाते थे. उन्हें छोटे राजन से लगातार धमकिया मिलती रही लेकिन उन्होंने उनके खिलाफ लिखना बंद नहीं किया. ऑफिस के बाद जब जेडे अपनी बाइक से घर जा रहे थे, तो उन्हें गोलियों से भून दिया गया.
गोविंद पानसरे
20 फरवरी 2015 के दिन गोंविद को गोली मार दी गई थी. गोविंद पानसरे महाराष्ट्र में 50 सालों से प्रगतिशील आंदोलन के मुखिया थे और सांप्रदायिकता के विरोध में भी वे काफी सक्रिय थे. उन्होंने नाथूराम गोडसे का महिमामंडन करने वाले लोगों के खिलाफ भी लिखा था, जिससे उनके काफी दुश्मन बन गए थे. ….Next
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