कहते हैं मारने वाले से हमेशा बचाने वाला बड़ा होता है। जब आप किसी को मुसीबत में घिरा हुआ देखते हैं, तो आपको अपनी सिर्फ एक पहचान याद रखनी चाहिए और वो है ‘इंसानियत’।
केरल में भीषण बाढ़ के बाद हालातों को काबू करने के लिए देशभर से काफी लोग आगे आए। इसके अलावा विदेश से भी मदद की पेशकश की गई। मुसीबत की इस घड़ी के बीच जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के लिए सेना के अलावा कई आम लोग भी केरल में मदद कर रहे हैं। मदद की इन्हीं कड़ियों के बीच एक ऐसी सुखद कहानी सामने आई है, जिसे सुनकर इंसानियत पर भरोसा बना रहता है। इस भरोसे का नाम है कानन गोपीनाथ, जिन्होंने अपनी पहचानकर छुपाकर केरल बाढ़ पीड़ितों की मदद की।
पहचान छुपाकर करते रहे बाढ़ पीड़ितों की मदद
केरल के कोची में बाढ़ पीड़ितों के राहत शिविर में दादरा नगर हवेली के कलक्टर लगातार आठ दिन तक अपनी पहचान छिपाकर राहत कार्य में जुटे रहे। इस दौरान उन्होंने अपने सिर पर बोरियां ढोईं। शिविर में सफाई की और बच्चों को गोद में भी खिलाया। हालांकि, नौवें दिन उनकी पहचान उजागर हो गई।
ऐसे हुई पहचान उजागर
गोपीनाथ बिना किसी को बताए, मदद में लगे हुए थे। इस दौरान एर्नाकुलम के कलेक्टर वाई सर्फीउल्ला केडीपीएस प्रेस कलेक्शन सेंटर में आए। उन्होंने मदद में जुटे कानन को पहचान दिया और आसपास के लोगों को कानन से परिचित कराते हुए कहा ‘जिस नौजवान को आप मदद करते हुए देख रहे हैं, वो कलेक्टर है’। अपना परिचय कराने पर कानन पहले तो असहज हुए लेकिन बाद में मुस्कुरा दिए।
राहत कोष में चेक देने आए थे गोपीनाथ, पहचान उजागर होने पर बिना बताए चले गए
गोपीनाथ केरल मुख्यमंत्री राहत कोष में देने के लिए दादरा नगर हवेली की ओर से एक करोड़ रुपये का चेक देने पहुंचे थे।
चेक सौंपने के बाद 32 वर्षीय गोपीनाथ तिरुवनंतपुरम से चेंगानूर की बस पकड़कर अपने घर लौटने की बजाय राहत शिविर में शामिल होता है। यहां गोपीनाथ अलग-अलग राहत शिविरों में सेवा देते रहे। इस दौरान उन्होंने किसी को जाहिर नहीं होने दिया कि वह दादरा नगर हवेली के जिला कलक्टर हैं।
गोपीनाथ की पहचान उजागर होने के बाद उन्होंने खेद जताते हुए कहा कि उन्होंने कोई महान काम नहीं किया। असल हीरो तो वह लोग हैं जो बाढ़ग्रस्त इलाकों में भीतर जाकर लोगों को सुरक्षित निकाल रहे हैं।
उन्होंने पहचान उजागर होने के बाद अफसोस जताते हुए कहा कि ‘यह दुखद है कि लोग पता चलते ही उन्हें हीरो की तरह बर्ताव करने लगे और उनके साथ सेल्फी लेने लगे।‘ गोपीनाथ इसके बाद बिना किसी को बताये राहत शिविर से चले गए।
एक कलेक्टर के इस रवैए को देखकर बड़े अधिकारियों के प्रति एक सकरात्मक नजरिया मिलता है, गोपीनाथ की तरह जमीन से जुड़कर काम करने वाले ऐसे ही अधिकारियों की देश और समाज को जरुरत है…Next
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