Menu
blogid : 316 postid : 358

कानूनी जकड़न से मुक्त करो लिव इन को आजाद करो

living relationship रिश्तों की तस्वीर आज के भागते समय के अनुरुप ढलती जा रही है. यूं तो स्त्री-पुरुष का साथ प्राकृतिक तौर से होता है लेकिन आधुनिकता और ग्लैमर के तड़के ने इस मिलन को कुरुप कर दिया है. शादी से पहले किसी स्त्री या पुरुष से संबंध रखना व्यक्तिगत रुप अपना फैसला होता है, लेकिन समाज के अनुसार शादी से पहले किसी के साथ संबंध रखना गलत माना जाता है. लेकिन आधुनिकता और ग्लैमर की तरफ भागते युग में समाज की फिक्र किसी को ज्यादा नहीं होती.

लिव-इन-रिलेशनशिप आज के युग में भागती जिंदगी के अनुरुप युवाओं को मौज मस्ती समेत अपनी जिंदगी अपने मूल्यों पर जीने का अंदाज लगती है. बिना शादी किए स्त्री-पुरुष का पति-पत्नी की तरह रहना समाज में फैलता जा रहा है. शादी न करने के पीछे अक्सर यह तर्क दिए जाते हैं कि इससे अपनी आजादी खतरे में पड़ जाती है. दरअसल लिव इन को अपनाने वाले युवा जिंदगी के कर्मों से दूर भागते हैं, वह जिंदगी का सामना नहीं करना चाहते. अपनी आजादी के लिए वह समाज की आजादी को भी छीनने को तैयार रहते हैं.

पर अपनी सहमति से लिव इन में रहने के बाद भी युवाओं को इस रिश्ते से कई उम्मीदें बंध जाती हैं. जब खुद वह इस कुएं में कूदते हैं तो उसकी गहराई उन्हें मालूम होती है लेकिन फिर भी डूबने की स्थिति में वह सहायता की आस रखते हैं.

अगर लिव इन पर नजर डालें तो आधुनिक पश्चिमी समाजों में नौजवान जोड़े स्वेच्छा से और पूरे नैतिकता बोध के साथ लिव-इन करते हैं. हाल के वर्षों में भारत के महानगरों में लिव-इन रिलेशनशिप की शुरुआत शिक्षित और आर्थिक तौर पर स्वतंत्र ऐसे लोगों ने की जो कि विवाह संस्था की जकड़न से छुटकारा चाहते थे.

लेकिन इस आजादी में आजादी है कहां?

live-in-relationshipआजाद रह कर भी आप इस रिलेशन के अधीन हो गए हैं. विभिन्न प्रकार के कानूनी बंधन लिव इन में रहने वालों की आजादी बाधित करने वाले ही सिद्ध होंगे. इससे तो लिव इन के मूल संस्करण पर ही असर पड़ जाएगा. लिव इन में रहना ही इस आधार पर होता है कि अब उन जोड़ों को किसी भी प्रकार की सामाजिक मर्यादा या वैवाहिक उत्तरदायित्वों से मुक्ति मिल जाएगी. किंतु देखा ये जा रहा है कि अब कानून पूरी तरह इसे अपनी चपेट में लेने को तैयार है.

पहले कुएं को क्यों नहीं नापा

अब जब लिव इन इतना ज्यादा फैला तो इसके बुरे फल भी आना शुरु हो गए. धोखा और अपना फायदा देखने के चक्कर में जोड़े अब अपनी आपसी लड़ाई को कोर्ट तक खींच कर ले जा चुके हैं. लेकिन कोर्ट भी कई मोड़ों पर इस रिश्ते को वाक इन वाक आउट का रिश्ता बता चुका है. कोर्ट के अनुसार जो लोग लिव-इन रिलेशनशिप में रहना पसंद करते हैं वे बेवफाई और व्याभिचार की शिकायत नहीं कर सकते. जो लोग इस तरह के वॉक-इन और वॉक-आउट रिश्ते में नहीं रहना चाहते वे शादी के रिश्ते में बंध सकते हैं जहां कि दोनों पक्षों की कुछ जिम्मेदारियां निर्धारित हैं तथा जो किसी भी पक्ष द्वारा अपनी इच्छानुसार नहीं तोड़े जा सकते. यह संबंध समाज और कानून द्वारा नियंत्रित-संरक्षित है.

कानून का दोतरफा व्यवहार

display_image-aspxलिव इन में अगर स्त्री के अधिकारों का किसी भी तरह हनन होता है तो भारतीय कानून के अनुसार महिला अपने पुरुष साथी पर घरेलू हिंसा अधिकार अधिनियम के अंतर्गत केस कर सकती है. लेकिन हाई कोर्ट द्वारा यह बयान कि ये रिश्ते कैजुअल होते हैं और किसी डोर से बंधे नहीं होते और न ही इन रिलेशन में रहने वालों के बीच कोई कानूनी बंधन होता है, एक अजीब सी पहली को बुझाता है.

भारत में कानूनी तौर पर दो बंदिशें लिव इन रिश्ते पर लागू की जा चुकी हैं.

1. घरेलू हिंसा कानून 2005 विवाह और लिव इन रिश्ते में कोई फर्क नहीं करता.
2. लिव इन रिश्ते से उत्पन्न हुई संतानों को विवाह से उत्पन्न संतानों का ही दर्जा दिया जाता है.

सवालों के घेरे में शादी

प्राचीन भारत में ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, आसुर, गांधर्व, राक्षस, पैशाच आदि विवाह की आठ पद्धतियां थीं. तो क्या इसी परंपरा की एक कड़ी के तौर पर लिव -इन एक प्रकार का विवाह बन कर ही रह जाएगा. विवाह के जब पहले ही इतने प्रारुप हैं तो क्यों न लिव इन को भी इन्हीं की एक श्रेणी बना दिया जाय ताकि यह कानून के अंतर्गत आ सके.

कानून पुरुष विरोधी तो नहीं

घरेलू हिंसा अधिकार अधिनियम और धारा 498 ए दहेज हिंसा कानून आज की शिक्षित नारी के पास ऐसे दो हथियार बन चुके हैं जिससे वह जब चाहे अपने पति या जिस पुरुष पर वह निर्भर है उसको कानूनी कटघरे में लाकर खड़ी कर सकती है. विवाह के बाद नवयुवतियों को घर के घरेलू काम करने में अक्सर बुरा लगता है और कार्यरत महिलाएं जो खुद पर निर्भर रहती हैं वह अपने झूठे अहंकार के कारण ससुरालवालों को ऐसी धमकियां देकर प्रताड़ित करने से पीछे नहीं हटतीं. ठीक इसी तरह लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद महिलाएं अपने साथी पर कानूनी फंदा फेंक रही हैं.

लिव इन हो घरेलू हिंसा के बाहर

जब कानून कहता है कि पुरुष और स्त्री बराबर हैं और लिव इन में कैसी बेवफाई तो क्यों न कानून की स्थिति स्पष्ट कर दी जाए. लिव इन को घरेलू हिंसा से अलग करना इस तरह के रिश्तों पर लगाम कसने के मार्ग पर एक कदम होंगे. जब महिलाओं को ऐसे रिश्ते बनाते समय कोई परहेज नहीं होता और वह इसे अपनी मर्जी से स्वीकारती हैं तो उन्हें किस बात की कानूनी शह दी जाए.

अंत में यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि लिव इन पर भारत में कानून की स्थिति साफ नही है. हमारे कानून को यह बात साफ करनी होगी कि लिव इन और विवाह दोनों अलग हैं, वरना अगर लिव इन को विवाह के समान कानूनी हक मिल जाता है तो यह रखैल व्यवस्था की तरह बन जाएगा. जब स्त्री पुरुष अपनी निजी स्वतंत्रता का हवाला देते हुए इस व्यवस्था को अपनाते हैं तो भला इसमें धोखे की क्या बात. जब आप खुद इसे स्वतंत्रता मानते हैं तो इसे कानून के दायरे में क्यों लाया जाए. आप कूएं में कूदने से पहले ही कुएं की गहराई नाप लें, वरना कूदें ही ना.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh