भारत के दिग्गज गणितज्ञों में अपना नाम दर्ज करने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। अपनी पढ़ाई और शोध के लिए अकसर चर्चा में रहे वशिष्ठ नारायण तब पूरी दुनिया में विख्यात हो गए जब उन्होंने आईंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दे दी। वह पिछले 40 साल से बीमार चल रहे थे और वह कभी ठीक नहीं हो सके।
तीन साल की डिग्री एक साल में मिली
बिहार राज्य में भोजपुर जिले के बस्तनपुर गांव में 2 अप्रैल 1942 को जन्मे वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपने काबिलियत का दुनियाभर में लोहा मनवाया। स्कूल से लेकर कॉलेज तक हमेश सर्वोच्च स्थान हासिल करने वाले वशिष्ठ अपने तेज दिमाग से गणित के कठिन से कठिन सवाल चुटकी में हल कर देते थे। हमेशा क्लास में अव्वल रहने वाले वशिष्ठ को डिग्री देने के लिए पटना विश्वविद्यालय ने अपने नियम तक बदल दिए थे। वशिष्ठ इतने होशियार थे उन्होंने तीन साल की बीएससी ऑनर्स की डिग्री को मात्र एक साल में ही हासिल कर लिया था।
अमेरिका ने पढ़ने का निमंत्रण भेजा
वशिष्ठ नारायण की प्रतिभा का पूरी दुनिया में डंका बजने लगा। 1965 में पटना विश्वविद्यालय आए अमेरिकन साइंटिस्ट प्रोफेसर केली ने वशिष्ठ कीसराहना की और उन्हें अमेरिका ले जाने की भी इच्छा पटना साइंस कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर जी नाथ से जताई। 1965 में ही बर्कले विश्वविद्यालय ने भी वशिष्ठ नारायण को नामांकन पत्र भेजा और संस्थान से जुड़ने का अनुरोध किया। इसके बाद वशिष्ठ अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष शोध संस्थान नासा के साथ जुड़ गए।
आइंस्टीन की थ्योरी को चैलेंज किया
1969 में वशिष्ठ सिंह ने अपनी गणितीय क्षमता से दुनिया के वैज्ञानिकों को हिला दिया। उन्होंने द पीस ऑफ स्पेस थ्योरी से महान वैज्ञानिक आइंस्टीन की थ्योरी को चैलेंज कर दिया। इस चैलेंज से पूरी दुनिया हिल गई और वशिष्ठ सिंह पूरे विश्व में चर्चित हो गए। बाद में वशिष्ठ नारायण को द पीस ऑफ स्पेस थ्योरी पर किए गए शोध के लिए पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई। 1971 में वह भारत लौट आए और आईआईटी कानपुर में प्राध्यापक बन गए।
मानसिक बीमारी से पीडि़त रहे
वशिष्ठ नारायण ने इस बीच 8 जुलाई 1973 को विवाह कर लिया और अपने जीवन स्थायित्व देने की कोशिश की। विवाह के एक साल बाद ही वह मानसिक बीमारी सीज्रोफीनिया से ग्रस्त हो गए। एक बार अचानक वह खंडवा स्टेशन से लापता हो गए। करीब 4 साल बाद वह छपरा जिले के डोरीगंज इलाके में एक ढाबे में बर्तन साफ करते मिले। इसके बाद से वह पटना के अपार्टमेंट में गुमनामी का जीवन जी रहे थे। 14 नवंबर 2019 को उनका निधन हो गया।…Next
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