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भारतीय पुरुषों को क्यों नहीं भाती आत्मनिर्भर पत्नी?

depressed husbandक्या भारतीय परिदृश्य में ऐसे परिवार की कल्पना की जा सकती है जिसमें पति से ज्यादा कमाई करने वाली पत्नी को परिवार में उचित मान-सम्मान दिया जाता हो, उसका पति उससे ईर्ष्या या द्वेष नहीं बल्कि उसके घर लौटने तक बच्चों की देखभाल किया करे और जब वह काम से थकी हारी घर लौटे तो उसे अपने हाथों से चाय बनाकर पिलाए.


भारत जैसे परंपरागत समाज में ऐसी परिस्थितियों के विषय में सोचना भी निंदनीय माना जाता है. यहां हमेशा और हर दृष्टिकोण से पुरुषों को महिलाओं से ज्यादा अहमियत और अव्वल दर्जे का स्थान दिया जाता रहा है. विवाह के पश्चात पत्नियों को अपने पति के अधीन रहने का आदेश दिया जाता है. प्राय: यही देखा जाता है कि विवाहित महिला के स्वतंत्र अस्तित्व और उनकी काबिलियत को कोई महत्व देना ससुराल वाले अपनी शान के खिलाफ समझते हैं. उसकी अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं को दबा कर वह महिला को मात्र एक गृहणी के रूप में ही देखना चाहते हैं. महिला का कर्तव्य और जिम्मेदारियां सिर्फ परिवार जनों तक ही सिमट कर रह जाती हैं. अपने कॅरियर और उपलब्धियों को लेकर उसने जो सपने संजोए थे सब पर निराशा के बादल छा जाते हैं. ऐसे हालातों में जिस पुरुष को अपने सुख-दुख का साथी मानकर उसने विवाह किया था वह भी उसकी अपेक्षाओं को नजरअंदाज कर देता है. क्योंकि कहीं ना कहीं वह भी यह समझता है कि एक आत्मनिर्भर पत्नी को अपने आधिपत्य में रखना बहुत मुश्किल काम है.


लेकिन अगर कोई महिला विवाह के पश्चात बाहर जाकर काम करने का निर्णय लेती है तो उसके समक्ष पहले ही यह शर्त रख दी जाती है कि घरेलू मामलों के प्रति भी वह पूर्ण उत्तरदायी रहेगी. पति, बच्चों और सास-ससुर की देखभाल करने में कोई भी चूक सहन नहीं की जाएगी.


इन हालातों के मद्देनजर आप ऐसे पति की कल्पना भी कैसे कर सकते हैं जो अपनी पत्नी से कम कमाता हो और फिर भी अपना जीवन संतुष्टि और प्रसन्नता से व्यतीत कर रहा हो.

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financial issuesलेकिन एक नए अध्ययन ने यह बात प्रमाणित की है कि भले ही भारतीय पति अपनी पत्नी की आत्म निर्भरता को सहन नहीं कर सकते लेकिन विदेशी पुरुषों की मानसिकता इस मसले पर थोड़ी अलग है. वह ना सिर्फ अपनी पत्नी का बाहर जाकर काम करना पसंद करते हैं बल्कि अगर उनकी पत्नी उनसे ज्यादा कमाती है तो इसमें भी उन्हें कोई बुराई नजर नहीं आती. इससे उनके वैवाहिक जीवन में कोई परेशानी या मनमुटाव विकसित नहीं होते.


पुरुषों की स्वास्थ्य संबंधी पत्रिका द्वारा संपन्न इस अध्ययन में यह प्रमाणित हुआ है कि समय के साथ-साथ पारिवारिक मान्यताएं और हालात भी पूरी तरह परिवर्तित हो चुके हैं. एक समय पहले जब पत्नी का पति से कम कमाना या गृहणी के रूप में काम करना ही खुशहाल जीवन के लिए उपयोगी माना जाता था आज वहीं अगर पत्नी ज्यादा आय लेती है तो पति को घर में रहकर बच्चों की देखभाल करने में कोई परेशानी नहीं होती.


सर्वेक्षण में शामिल 45% पुरुषों ने यह स्वीकार किया है कि अगर उनकी पत्नी ज्यादा कमाती हैं तो उन्हें अपना घर संभालने में खुशी होगी. जिनमें से हर पांच में से एक पहले से ऐसा कर रहे हैं और वहीं दूसरी ओर आधे पुरुषों का यह भी कहना है कि ऐसा करने के लिए उन्हें अपने पौरुष स्वभाव के साथ थोड़ा समझौता करना पड़ा, लेकिन उन्हें इससे कोई आपत्ति नहीं है.


डेली मेल में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार पत्रिका के संपादक पीटर मूरे का कहना है कि आज के पति परंपरागत मानसिकता और अपनी पुरानी छवि को नकार चुके हैं. उनके लिए अच्छा और संपन्न जीवन जरूरी है. पत्नी की कमाई से उनकी जरूरतें पूरी होती हैं तो उन्हें यह सब अच्छा ही लगता है.


उल्लेखनीय है कि इस विदेशी शोध के बाद यह तथ्य सामने आया है कि जिन विदेशी लोगों को हम गैर-जिम्मेदार और अत्याधुनिक सरीखी संज्ञाएं देकर भारतीयों को उनसे कहीं ऊंचे स्थान से नवाजते हैं, उस विदेशी जीवनशैली में अब कौन ज्यादा कमाता है या घर की जिम्मेदारी किसकी होनी चाहिए यह कोई बड़ा मसला नहीं रह गया है. कहीं ना कहीं पाश्चात्य देशों में महिलाओं की समान भागीदारी को आदरपूर्ण स्वीकार कर लिया गया है. अगर उनके पीछे पति घर और बच्चों की देख-रेख करता है तो भारतीय परिवेश की तरह उस परिवार को निंदनीय या उपहास योग्य नहीं समझा जाता. लेकिन हम भारतीय जो हमेशा विदेशों की नकल करना ही अपनी प्राथमिकता समझते हैं, वहां ऐसे हालात कब बनेंगे, कब महिलाओं के पृथक और स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार किया जएगा. वर्तमान हालातों को देखते हुए यह कहना किसी के लिए भी संभव नहीं है.

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