आज की बढ़ती भौतिक सुविधाओं को पाने की चाह ने काम करने के घंटे बढ़ा दिए हैं. आप पूछेंगे सुविधाओं की चाह से काम का क्या वास्ता? लेकिन वास्ता है. जाहिर है लग्जरी कार, बंगले, महंगे फोन, गैजेट्स आदि के लिए आपको पैसे चाहिए. पैसे के लिए कंपनी को काम चाहिए. जितना ज्यादा काम, उतना ज्यादा पैसा. पैसों के लिए काम करने की अपनी क्षमता को भी नजरअंदाज करते हुए लोग काम कर रहे हैं. 12 से 15 घंटे काम कर आप लगभग अपनी हर चाह पूरी कर सकने लायक धन कमा लेते हैं. आज के युवा परिवार के लिए भी बहुत सेंसिटिव हैं, वीकेंड पर फैमिली को भी पूरा वक्त देते हैं. पर इन सबके बीच अधिकांश युवा उस चीज की अनदेखी कर ही जाते हैं जो उसकी जिंदगी में जहर घोलने के लिए काफी है.
अमन बड़े कॉर्पोरेट कंपनी में जनरल मैनेजर है. पैसों की कोई कमी नहीं. बच्चों की कोई भी मांग पूरी कर सकने में वह सक्षम है. हर साल परिवार के साथ छुट्टियां मनाने विदेश जाता है. हर वीकेंड शॉपिंग जाता है. कई क्लबों की सदस्यता है उसके पास. कुल मिलाकर नाम और पैसा दोनों हैं पर अचानक से वह चिड़चिड़ा हो गया है. छोटी-छोटी बातों पर नाराज होने लगा है. बच्चों के साथ भी पहले की तरह खेल नहीं पाता. पत्नी से भी छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होने लगे हैं. ऑफिस में भी आए दिन किसी न किसी से छोटी-छोटी सी बातों पर ही झगड़े करने लगा है. पहले जहां वह बहुत शांत माना जाता था, आज उसके जूनियर उसे अकड़ू कहते हैं. उसके पीछे लोग उसके इस व्यवहार को लेकर मजाक बनाते हैं. उसके व्यवहार में अचानक हुए इस बदलाव से चकित उसकी पत्नी उसे लेकर मनोचिकित्सक के पास गई. पहले उसने मना किया, मनोचिकित्सक? भला क्यों? वह पागल है कि मनोचिकित्सक के पास जाए? पर फिर पत्नी के समझाने पर मान गया. डॉक्टर ने कहा वह ज्यादा काम और कम आराम के कारण डिप्रेशन (Depression) का शिकार हो गया. इतने काम के बाद जितना आराम उसे मिलना चाहिए उसने लिया नहीं, और आज की लाइफ में तो काम के अलावे भी इतनी सारी समस्याएं हैं. इन सबके कारण अमन चिड़चिड़ा और गुस्सैल हो गया था. खैर सही समय पर डॉक्टरी सलाह के लिए लाने पर उसकी पत्नी की समझदारी की प्रशंसा करते हुए उसे कुछ दिनों की दवाइयां और दिनचर्या में सुधार के उपाय बताए. आज अमन ऑफिस और घर में फिर से अपने अच्छे व्यहार के साथ सुकून की जिंदगी जी रहा है.
ऐसे कई उदाहरण अपने आसपास आपको बहुतायत मिल जाएंगे. आईसीएमआर (Indian Council of Medical Research) के अनुसार दिल्ली का हर दसवां व्यक्ति किसी न किसी मानसिक समस्या से ग्रस्त है. 2004 से 2009 के बीच आईसीएमआर (Indian Council of Medical Research) द्वारा किया गया सर्वे रिपोर्ट बताता है कि दिल्ली की 10 फीसदी आबादी अवसाद एवं अन्य मानसिक समस्याओं से ग्रस्त है. यह एक सामान्य समस्या है जिसे चिकित्सा के द्वारा ठीक किया जा सकता है. पर यही समस्या तब विकराल रूप ले लेती है जब इसके लिए चिकित्सा की जरूरत न समझकर इसे टाला या छुपाया जाता है. कई बार समस्या बढ़कर सीजोफ्रीनिया (schizophrenia) जैसी बड़ी बीमारी का रूप ले लेती है जो ठीक होने में समय लेती है. कई बार मरीज डिप्रेशन का शिकार होकर आत्महत्या तक कर लेता है. आज महिलाओं के विरुद्ध हो रही हिंसा में भी इसका महत्त्वपूर्ण हाथ है. आईसीएमआर (Indian Council of Medical Research) की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के 20 प्रतिशत मानसिक समस्या से ग्रस्त रोगी दिल्ली के पॉश इलाकों से हैं. इसके अलावे केवल 10 प्रतिशत लोग ही इसे चिकित्सा की जरूरत श्रेणी में मानते हुए इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं. ऐसे में जो समस्या एक महीने की व्यवहार और दवाइयों के द्वारा ठीक की जा सकती थी, वह सालों में ठीक होती है. इसके अलावे परिवार पर इसका नकारात्मक असर होता है, वह अलग.
ये समस्याएं कोई बड़ी समस्याएं नहीं हैं लेकिन समाज का इसे देखने का नजरिया इसे बड़ा बना देता है. समाज की एक विकृत धारणा है कि अगर मानसिक समस्या या मनोचिकित्सक की बात आती है, मतलब वह पागलपन है. जबकि हकीकत इससे बिल्कुल उलट है. ये समस्याएं उसी तरह हैं, जैसे मौसमी सर्दी-जुकाम और बुखार. जैसे मौसम के विपरीत असर से सर्दी-जुकाम आम है और थोड़ी सी केयर इसे ठीक कर सकती है, उसी प्रकार मानसिक थकान और काम के दबाव के कारण ये समस्याएं आज आम हैं. ये पागलपन नहीं हैं, लेकिन मनोचिकित्सक की सलाह इसे ठीक करने के लिए आवश्यक है. इसके अलावे एक और भ्रम कि मनोचिकित्सक बस पागलों का इलाज करते हैं, इसे भी तोड़ने की जरूरत है. ज्यादातर लोग समाज की इस धारणा के कारण अगर डॉक्टर के पास जाना भी चाहें, तो नहीं जाते. जबकि यह बिल्कुल गलत है. मनोचिकित्सक का अर्थ है जो आपके मन के किसी भी अवांछित भाव के कारणों का पता लगाते हुए, आपको उससे निजात दिलाता है. अत: अगर समाज को महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकना हो, या परिवार में तलाक के मामले कम कम करने हों, हर समस्या के पीछे आधिकांश कारण यही हैं. समाज को यह समझना होगा और अपनी सोच में बदलाव लाना होगा. मानसिक रोगों के प्रकार और इलाज के प्रति जागरुक होकर निजी शांति पाने के साथ ही इन सामाजिक समस्याओं से भी निजात पा सकते हैं.
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