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इंटरनेट मायाजाल से आत्महत्या की प्रेरणा


इंटरनेट जब शुरु हुआ तो सबने इसकी अच्छाइयों पर जोर दिया. किसी ने इसे कलयुग का देवता घोषित किया तो किसी के लिए इंटरनेट ही सब कुछ हो गया. हर तरफ इंटरनेट ने अपनी ताकत से सबको मोहित कर लिया. लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया. वही दूसरा पहलू आज सबके गले की फांस बना हुआ है. जिसने हमारी जिंदगी को इतना आसान बना दिया आज वही हमारे रास्ते में अड़चने पैदा कर रहा है.

अभी हाल ही में कानपुर आईआईटी ने अपनी संस्थान में इंटरनेट के प्रयोग को सीमित करने का मन बना लिया है. इसके पीछे उनका तर्क है कि अधिक और रात भर इंटरनेट इस्तेमाल करने से छात्रों में आत्महत्या की प्रवृति का पैदा होना. कॉलेज प्रशासन का मानना है कि छात्र रात भर नेट सर्फिंग करने की वजह से सही से सो नहीं पाते , नतीजन वह दिन में तनाव में रहते हैं. इससे उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता है जिसके बाद सही परिणाम न मिलने पर वह आत्महत्या का रास्ता चुनते हैं.

हालांकि ऐसा नहीं है कि आईआईटी ही इससे परेशान है दरअसल आज हर स्कूल, कॉलेज और यहां तक की ऑफिस भी नेट की लगती आदत की वजह से परेशान हैं.

internet क्यों बनते हैं इसके आदी

आज इंटरनेट का प्रयोग करने वाले अधिकतर लोग इसे एक मनोरंजन के साधन की तरह इस्तेमाल करते हैं जहां मनोरंजन की कोई सीमा नहीं रहती. यहां हम वह सब कर पाते हैं जिसकी हम मात्र कल्पना ही करते हैं. इसकी उपयोगिता को देखते हुए हमारा दिमाग इसका आदी हो जाता है या यों कहें इससे हमारे दिमाग को एक ऐसा अस्त्र मिल जाता है जहां दिमाग कम लगता है और काम ज्यादा हो जाता है.



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दिमाग जल्द ही आरामपरस्त और ज्यादा काम के बोझ से भागने लगता है. इसके साथ ही सोशल नेटवर्किंग के साथ देश विदेश में दोस्त बनाने के साथ आजकल के तनाव भरे माहौल से थोड़ा सा आराम पाने का मौका मिलता है. लेकिन यही सोशल नेटवर्किंग कई बार अत्यधिक मानसिक तनाव का कारण बनती है. ‘

फेसबुक, ट्विटर और अन्य साइटों की दुनियां में नौजवान पीढ़ी इस कदर उलझ जाती है कि वह असली दुनियां और वेब दुनियां के बीच का अंतर कर ही नहीं पाती.


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बचने के तरीके

यों तो समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना सही बात है लेकिन उस समय की रफ्तार से भी अगर आप ज्यादा तेज जाना चाहेंगे तो सही नहीं. जिस तरह सही मात्रा में शराब शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक साबित होती है उसी प्रकार इंटरनेट का प्रयोग सही मात्रा में सेहत के लिए फायदेमंद होता है.

अक्सर माता-पिता छोटी उम्र में ही बच्चों को इंटरनेट और कम्प्यूटर आदि के बारे में काफी अधिक बता देते हैं और सोचते हैं इससे बच्चा आगे चलकर समय के साथ चल सकेगा. लेकिन वह दुनियादारी के प्रभाव में यह भूल जाते हैं कि हर चीज का एक सही समय होता है. बचपन बंद कमरों के अंदर नहीं फलता-फूलता बल्कि उसके लिए खुला वातावरण चाहिए होता है.

इंटरनेट और अन्य कम्पयूटर साम्रगियों के आदी बने लोगों के पीछे के सबसे अहम कारक अभिभावक हैं तो कुछ हाथ समाज का भी है. समाज साफ कहता है कि जो धीमा चलेगा वह रेस से बाहर होगा. आजकल अगर कोई कहे कि वह इंटरनेट के बारे में नहीं जानता तो शायद सुनने वाला उसे गंवार समझेगा लेकिन ऐसा होना नहीं चाहिए.

समाज में अधिक सक्रिय रहने से और बच्चों को बाहर खेलने का समय देने जैसे छोटे-छोटे कदमों से ही आप इस मायाजाल में फंसने से बच सकते हैं.


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