जरा सोचिए, जल्दबाजी में कहीं जा रहे हैं और सड़क पार कर रहे हैं। ऐसे में अचानक ट्रक आपके सामने रूक जाता है और आप बाल-बाल बच जाते हैं। अब ये तो बात हुई जल्दबाजी की। जिसमें आपकी गलती भी हो सकती है लेकिन जहां रेलवे ट्रैक पार करने की चुनौती हो, वो भी बिना किसी सुविधा के, तो इसे लोगों की गलती नहीं कहा जा सकता। ऐसे रेलवे ट्रैक को पार करना अपनी जान से खेलने के बराबर है। हम बात कर रहे हैं, ग्रैंड कार्ड रेलखंड जहां रेलवे ट्रैक पार करने की ये परंपरा बिहार के गया जिले के ग्रैंड कार्ड रेलखंड की है जो सीधा गया से पश्चिम बंगाल को जोड़ती है। इस रेलखंड पर टनकुप्पा स्टेशन है।
जान जोखिम में डालकर करते हैं रास्ता पार
स्टेशन से महज 100 मीटर की दूरी पर ऐसे दर्जनों गांव हैं जहां हरेक को रेलवे ट्रैक पार करना ही होता है। स्कूल जाना हो, दवाई लेनी हो, दफ्तर जाना हो या घर का राशन लाना, रेलवे ट्रैक को पार कर गुजरना इन सब की मजबूरी है। यह स्थल रेलवे हादसों का स्थल बन चुका है। हर महीने कोई न कोई ग्रामीण इसकी चपेट में आता है और जान चली जाती है।
ग्रामीण खुद करते हैं एक-दूसरे की मदद
ग्रैंड कार्ड रेलखंड पर लाल झंडा दिखाता यह कोई पॉटर या रेल कर्मचारी नहीं बल्कि ग्रामीण हैं जो प्रतिदिन जब इस गांव के बच्चे स्कूल जाते हैं तो दोनों साइड लाल झंडा लेकर खड़े हो जाते हैं। इसी बीच जब ट्रेन आती है तो बच्चे रुक जाते हैं। वहीं ग्रामीणों को बाइक भी इसी कसरत के साथ गुजारनी पड़ती है। कुछ दिन पहले इसी तरह बाइक जब पार कर रहा था तो अचानक ट्रेन आ गई। बाइक छोड़कर वह जान बचाकर भागा लेकिन बाइक पूरी तरह तहस-नहस हो गई थी और ट्रेन को भी रोकना पड़ा था।
50 सालों से ऐसे ही हैं हालात
पिछले 50 सालों से इसी तरह गुजरते हैं और हादसे होते रहते हैं। हम लोगों के गांव के बच्चे जब स्कूल जाते हैं तो स्कूल के शिक्षक और गांव के लोग इस रेलवे लाइन के पास आ जाते हैं। बच्चों को लाइन पार करवाते है ताकि कोई हादसा न हो। वहीं, दर्जनो गांवों के द्वारा ओवर ब्रिज की मांग को लेकर कई बार प्रदर्शन भी किया गया और रेल चक्का जाम भी किया लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला…Next
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