अपने बच्चे को अपनी आँखों के सामने सड़क-दुर्घटना में तड़प कर मरते देखना ऐसी मज़बूरी है जिस पर अक्सर इंसान का कोई वश नहीं चलता. हादसा होता है, परिजन रोते है और स्मृति में शेष रह जाती है उसकी यादें. यही समाज का दस्तूर है और यही ज़िंदा और मृत व्यक्तियों के बीच की विभाजन रेखा है.
लेकिन ये रेखा विभाजक उनके लिए है जो ऐसे हादसों से सबक नहीं लेते. डोर्रिस फ्रैंसिस के लिए ऐसी रेखाओं के कोई मायने नहीं है. वो पुलिसवाली नहीं है और न ही वो ट्रैफिक नियमों को तोड़ने वालों का चालान कर सकती है. लेकिन दिल्ली गाज़ियाबाद की सीमा से सटे राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर वो रोज खड़ी होती है. उसका काम व्यस्त समय में ऐतबार-पुश्ता क्रासिंग से गुजरने वाले यात्रियों को जाम की समस्या से निज़ात दिलाना है.
छह साल पहले सड़क से गुजरते वक्त एक तेज गति से आती कार ने उसकी 17 साल की बेटी को टक्कर मार दी जिससे उसकी मौत हो गई. महीनों बाद माँ डोर्रिस ने उसकी बेटी जैसी किस्मत पाने वाले लोगों की किस्मत को बदलने का फैसला लिया. कई सालों से डोर्रिस ट्रैफिक पुलिसवालों की तरह हाथ में डंडा लिए इंदिरापुरम और दिल्ली की तरफ मुड़ने वाले वाहनों को दिशा दिखाती है.
स्थानीय ग्रामीणों ने लंबी दूरी तय करने से बचने के लिए यूपी गेट के पास अवैध तरीके से मार्ग-विभाजक को तोड़ सुगम रास्ता बना लिया है. पुलिस का कहना है कि वो रास्ते पर बैरिकेड लगा देती है लेकिन हर बार ग्रामीण उसे हटा देते हैं. डोर्रिस बताती है कि जब से वो यहाँ मौजूद है तब से यहाँ सिर्फ एक ही दुर्घटना हुई है वो भी रविवार को जब वो चर्च में प्रार्थना कर रही थी. ये दुर्घटना डोर्रिस को उस मनहूस सुबह की याद दिला जाती है जब वो बेटी और पति विक्टर के साथ ऑटोरिक्शा से अपने घर लौट रही थी.
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वहाँ के हजारों ग्रामीण अपने परिवार का पेट पालने के लिए खोडा से इंदिरापुरम तक जाते है जिसके लिए वो वहाँ बने कट का प्रयोग करते हैं. लेकिन, पुलिस ने 2011 में वहाँ बैरिकेड लगा दिया था. इसलिए डोर्रिस ने खुद ही व्यस्त समय में उस सड़क पर ट्रैफिक-प्रबंधन का काम अपने हाथों में ले लिया ताकि वहाँ से सड़क पर चलते हुए कोई किसी दुर्घटना का शिकार न बनें. पति के डायबीटीज और खुद गुर्दा की बीमारी से पीड़ित होने के बाद भी उसने यह काम जारी रखा. वो कहती है कि, ‘मैं अपने जीते-जी किसी को भी सड़क दुर्घटना में मरने नहीं दूँगी. अगर ईश्वर ने मुझे जीवन का उपहार दिया है तो मैं उसका पूरा फायदा समाज को दूँगी.’
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