किसी भी देश का विकास वहां की पीढि़यों की शिक्षा पर निर्भर करता है। प्राइवेट स्कूलों को छोड़ दिया जाए, तो देश में तमाम शिक्षा सुधारों के बावजूद प्राथमिक शिक्षा की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। उच्च शिक्षा में कुछ संस्थान ऐसे हैं, जिन पर हम बड़ा नाज करते हैं। मगर हालिया टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी की 2018 की रिपोर्ट हमें मुंह छिपाने की स्थिति में डाल रही है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के शीर्ष उच्च शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग में भारतीय विश्वविद्यालयों का प्रदर्शन सुधरने की बजाय और नीचे गिर गया है। दुनिया के 250 शीर्ष संस्थानों में एक भी भारतीय नहीं है। मंगलवार को आई रिपोर्ट में विश्व के 1000 विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता का आकलन किया गया है। ऐसे में यदि हम जरूरी सुधार नहीं करेंगे, तो शायद दूसरे देशों के संस्थानों के बेहतर प्रदर्शन हमें और पीछे धकेलते जाएंगे।
क्या है रिपोर्ट में
भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाला इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस 201-250 की श्रेणी से नीचे खिसक गया है। आईआईटी दिल्ली, कानपुर, मद्रास, खडगपुर और रुड़की भी 401-500 की रैंकिंग से लुढ़ककर 501 से 600 के दायरे में चले गए हैं। आईआईटी बॉम्बे की रैंकिंग 351-400 के बीच की है। बीएचयू तो 601 से 800 के दायरे में है। संतोष की बात यह है कि शोध आय और गुणवत्ता के पैमाने पर भारतीय संस्थानों में सुधार पाया गया है। हालांकि ज्यादातर संस्थान अंतरराष्ट्रीयकरण के पैमाने पर खरे नहीं उतरे। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में विदेशी छात्रों की संख्या सीमित है और फैकल्टी की स्थिति सुधारने के लिए विदेशी शिक्षकों की भर्ती के मामले में भी कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हो पाई है।
फैकल्टी की कमी हो दूर
देश के लगभग सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में फैकल्टी की कमी का मुद्दा समय-समय पर उठता रहता है। ज्यादातर जगहों पर काफी काम गेस्ट फैकल्टी से चलाया जाता है। भर्तियां होती हैं, तो अनियमितताओं के चलते उनका मामला कोर्ट में चला जाता है और फिर वही पुरानी स्थित बरकरार हो जाती है। हमारी सरकार को इस तरफ विशेष ध्यान देने की जरूरत है। एक कहावत है कि ‘बिना हथियार लड़ाई नहीं होती’, उसी तरह सरकार को समझना चाहिए कि बिना फैकल्टी पढ़ाई नहीं हो पाएगी। यदि हमें उच्च शिक्षण संस्थानों की सूची में आगे बढ़ना है, तो इसमें सुधार करना अतिआवश्यक है।
विदेशी शिक्षकों की भर्ती के लिए उठे गंभीर कदम
रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि भारतीय शिक्षण संस्थानों के रैंकिंग में पिछड़ने का एक कारण वहां विदेशी छात्रों की संख्या का कम होना और विदेशी शिक्षकों की भर्ती के मामले में कोई उल्लेखनीय प्रगति न होना भी है। दूसरे देशों के छात्र यहां आकर पढ़ना चाहते हैं, लेकिन सुविधाओं का अभाव और विदेशी फैकल्टी की कमी कहीं न कहीं उन्हें यहां आने से रोक देती है।
रिसर्च और इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश की जरूरत
रिपोर्ट में एक बात संतोष की है कि शोध और गुणवत्ता के पैमाने पर भारतीय संस्थानों में सुधार पाया गया है। मगर अभी भी इसमें सुधार की अतिआवश्यकता है। साथ ही हमें इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी विशेष ध्यान देना होगा। इसका कारण यह है कि रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि दूसरे देशों के संस्थानों के बेहतर प्रदर्शन से भी भारतीय विश्वविद्यालयों की रैंकिंग गिरी है। पीकिंग यूनिवर्सिटी 29 से 27वें और सिंघुआ यूनिवर्सिटी 35 से 30वें स्थान पर पहुंच गई। टाइम्स ग्लोबल रैकिंग्स के संपादकीय निदेशक फिल बैटी ने कहा है कि चीन, हांगकांग और सिंगापुर अपने संस्थानों पर भारी निवेश कर रहे हैं। इसका असर इस साल उनकी रैंकिंग में भी देखने को मिला है। हमें इससे सीख लेने की जरूरत है।
रिपोर्ट में टॉप 10 संस्थान
1. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (ब्रिटेन)
2. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी (ब्रिटेन)
3. कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय (अमेरिका)
4. स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (अमेरिका)
5. मैसाच्युसेट्स विश्वविद्यालय(अमेरिका)
6. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (अमेरिका)
7. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी (अमेरिका)
8. इंपीरियल कॉलेज (लंदन)
9. शिकागो यूनिवर्सिटी (अमेरिका)
10. स्विस फेडरल यूनिवर्सिटी (स्विट्जरलैंड)
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