प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नोटबंदी ने लड़कियों की तस्करी के कारोबार पर भी जबरदस्त असर डाला है. नोटबंदी के कारण कई लोगों के धंधों पर असर पड़ा है. 20 खरब रुपये की ह्यूमन ट्रैफिकिंग इंडस्ट्री भी इससे अछूता नहीं है. सेक्स वर्क के लिए महिलाओं और लड़कियों को बेचने का कारोबार करने वाली इस इंडस्ट्री में राहत और बचाव का काम करने वाले वर्कर्स ने यह खुलासा किया है.
एक पत्रिका के मुताबिक रेस्क्यू वर्कर्स का कहना है कि, ‘आम तौर पर नवंंबर में मानव तस्करी का ये काम पूरा होता है, जिसके बाद लड़कियों को देशभर के वेश्यालय, प्लेसमेंट एजेंसियों और बाल विवाह दलालों के पास भेज दिया जाता है. 8 नवम्बर से 500 और 1000 रुपये के नोटों की बन्दी की घोषणा के बाद नये नोटों की कमी की वजह से व्यापार मंदा हो गया है.
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ से जुड़े राकेश सेंगर का कहना है- ‘ट्रैफिकिंग पूरी तरह से ठप है. आम तौर पर लड़कियां असम के गुवाहाटी से, ऩॉर्थ में झारखंड से और साउथ में चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद से लाई जाती हैं. पिछले एक महीने से एक लड़की की तस्करी नहीं हुई है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां नगदी ही नहीं बची है. सभी ट्रांजेक्शन कैश में हो रहे हैं और मालिकों के पास बिचौलियों को देने के लिए पैसा ही नहीं है.’
तस्करी के इस कारोबार में आम तौर पर एक लड़की की ‘कीमत’ 2.5 लाख रुपये होती है. इसमें ट्रांसपोर्टिंग पर खर्च से लेकर स्थानीय नेता, संगठन और पुलिस अधिकारी तक को दी जाने वाली रकम शामिल होती है. रेस्क्यू वर्कर्स का दावा है कि वास्तव में 2 लाख 30 हजार रुपये तस्कर रख लेता है और 20 हजार में लड़की को बेच देता है
स्टडी में कहा गया कि नोटबंदी के बाद इस इंडस्ट्री में शामिल अलग-अलग लोगों के कामकाज पर असर पड़ा है, जिसमें तस्कर, वेश्यालय के मालिक, कानून प्रवर्तन अधिकारियों और न्यायपालिका के सदस्य शामिल हैं. बाल श्रम के खिलाफ ट्रेड यूनियन, शिक्षक और सिविल सोसायटी से जुड़े संगठन ग्लोबल मार्च का अध्ययन बताता है कि भारत में लड़कियों की तस्करी से जुड़ा सालाना कारोबार 18 लाख 60 हजार करोड़ का है…Next
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