न रहने को घर, न खाने को दो वक्त की रोटी… फिर भी एक कटोरी चावल के दानों को थाली में सजाकर वो बच्चा बड़े ही मजे से खाना खा रहा था उसकी थाली में खाने वाला एक साथी और भी था. आप जानकार हैरान रह जायेंगे कि वो उसका दोस्त या भाई-बहन नहीं बल्कि सड़कों पर फिरने वाला आवारा कुत्ता था. जो शायद अब उसका दोस्त बन चुका था. दोनों बेघर थे और रेड लाइट पर बने चौराहे और गाड़ी-मोटरों से घिरी सड़कें ही अब उनका घर था.
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मेट्रो स्टेशन से महज चंद मिनटों की दूरी पर रेड लाइट के पास यह नजारा बेहद आम हो चला है जिसे हम और आप न जाने कितनी बार देखते हैं और चंद मिनटों बाद भूलकर अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ जाते हैं. लेकिन उस सुबह एक ही थाली में बच्चे और कुत्ते को एक साथ खाना खाते देखकर रोंगटे खड़े हो गए. आत्मा को झकझोर कर देने वाली इस घटना में गरीबी का आलम साफतौर पर नजर आ रहा था, पास ही उस बच्चे की मां अपने घास-फूस से बने घर के बाहर बैठकर उन दोनों को भावहीन होकर निहार रही थी. शायद उनकी दुनिया में कुछ ऐसा ही होता था जहां इंसान और जानवर साथ रहते और खाते हैं.
आज बड़े-बड़े शहरों में ऐसे नजारें आम हो चले हैं जहां एक तरफ विकास की कहानी बयां करती बड़ी-बड़ी गाड़ियां और आलीशान बंगले मुस्कुराते हुए खड़े हैं तो दूसरी तरफ रेड लाइट पर आम होते ऐसे नजारें विकास को मुहं चिढ़ाते नजर आ रहे हैं. शहरों में अमीरी-गरीबी की बढ़ती इस गहरी खाई पर बहस करने वालों के अपने ही तर्क हो सकते हैं. राजनीतिक मंच पर तो नेता इस मुद्दे पर अच्छी-खासी बहस कर सकते हैं लेकिन अगर उन अनगिनत बहसों और चुनावी वायदों का असर वाकई होता तो ऐसे नजारे जाने-अनजाने बार-बार हमारी आंखों के सामने आकर हमसे यूं हजारों सवाल नहीं करते.
खुले आसमान के नीचे आवारा सडकों पर, कुत्ते और बेघर इंसानों का पुराना नाता रहा है शायद अनगिनत अभावों ने इन्हें न चाहते हुए भी एक दूसरे का दोस्त बनने को मजबूर कर दिया है. इन लोगों से हम और आप जैसे संपन्न लोगों को भी एक सबक मिलता है कि आज हमारे पास सबकुछ होते हुए भी किसी को कुछ देने की भावना नहीं है या फिर अधिक संपन्नता की चाहत ने हमें मानवता से दूर कर दिया है. आज हमारी दुनिया का आलम देखिए इंसान,इंसान के साथ नहीं रहना चाहता और इनकी दुनिया में तो अभावों के कारण ही सही पर कुत्ते और इंसान एक ही थाली में खाते हैं…NEXT
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