शायद आपने हिवरे बाजार गांव का नाम सुना होगा. ऐसा माना जाता है कि यह भारत का सबसे अमीर गांव है जहां तकरीबन 60 करोड़पति हैं. आज अत्यधिक साफ सड़कें, खूबसूरत घर और ढेरों पुरस्कार इस गांव की पहचान है लेकिन इस गांव में हमेशा सबकुछ ऐसा ही नहीं था. कुछ दशक पहले यह गांव सूखे और गरीबी का दंश झेल रहा था लेकिन एक अकेले आदमी ने इस गांव की सूरत बदल डाली. इस आदमी का नाम है पोपटराव पवार. 52 साल के पोपटराव वह व्यक्ति है जिन्होंने अकेले ही महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पड़ने वाला हिवरे बाजार गांव की काया पलट दी.
यह गांव स्वशासन और आत्मनिर्भरता के उसूलों का पालन करता है. इस गांव के कायापलट का किस्सा सन 1972 से शुरू हुई जब पोपटराव शहर से स्नातक की डिग्री लेकर गांव लौटे. क्योंकि उस समय वे गांव के सबसे पढ़े-लिखे आदमी थे इसलिए गांव वालों ने उनसे पंचायत का चुनाव लड़ने का आग्रह किया. पोपटराव पंचायती चुनाव में उतरे और विजयी रहे. और फिर सूखे की मार झेल रहे इस गांव में अनगिनत सुधारों का कभी न रुकने वाला सिलसिला शुरू हुआ.
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सबसे पहले गांव के चौथी कक्षा तक के प्राथमिक विद्यालय को दसवीं तक किया गया. अब गांव में बच्चों को आसानी से स्कूली शिक्षा मिलने लगी थी. इसके बाद पोपटराव ने जल संरक्षण का कार्य शुरू किया. उन्होंने गांव में ट्यूबवेल प्रतिबंधित करा दिया और गांंव वालों से केवल खुले कुंए के पानी पर निर्भर रहने के लिए कहा. इस तरह भूजल के अत्यधिक उपभोग पर लगाम लग सकी. उन्होंने लगभग 40000 गड्ढे खुदवाए जिनमें भूजल संरक्षित किया जाने लगा. गांव मे वैसी फसल लगाई जाने लगी जिसमें पानी की कम खपत हो और बाजार में वह अच्छे दामों पर बिके. वनों की कटाई को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया और एक दशक के अंदर गांव में 10 लाख से अधिक पेड़ लगाए गए.
1995 में आदर्श गांव योजना का आगाज किया गया और इस गांव को आदर्श गांव के रूप में विकसित करने के लिए चुन लिया गया. गांव के विकास संबंधी सभी निर्णय ग्राम सभा करती है जिसे यहां ग्राम संसद कहा जाता है. इन सभी सकारात्मक बदलावोंं के कारण यह गांव धीरे-धीरे संपन्न होता गया और आदर्श गांव के रूप में विकसित होता गया. इस गांव में परिवार नियोजन और एचआईवी के रोकधाम पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है. यह गांव देश के उन चुनिंदा गांवों की सूची में शामिल है जहां लिंग अनुपात महिलाओं के पक्ष में है.
168 परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे थे जो 2012 में घटकर मात्र 3 रह गई. वहीं दूध के उत्पादन की बात करें तो 1995 में यह 150 लीटर था जो 2012 में बढ़कर 4,000 लीटर हो गया.
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कभी इस गांव से लोग अन्य जगह पलायन किया करते थे लेकिन अब पलायन की दिशा बदल गई है. लोग अब वापस इस गांव की तरफ लौट रहे हैं और गांव की तरक्की में हिस्सा बन रहे हैं साथ ही यहां हुई तरक्की का लाभ भी उठा रहे हैं. कहना गलत न होगा कि यह सब कुछ पोपटराव पवार के दूरदृष्टि के कारण ही संभव हो पाया है. Next…
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