मानव जीवन भी बड़ा विचित्र होता है. मानव जीवन के मुख्यत: तीन पड़ाव होते हैं – एक बचपन, दूसरा युवास्था, तीसरा बुढ़ापा. इन तीनों अवस्थाओं में से बुढ़ापा मानव जीवन का सबसे दुखद समय माना जाता है. जीवन के आखिरी पड़ाव पर जब हम तमाम अनुभवों से गुजर चुके होते हैं तो हमें यह ताने सुनने को मिलते हैं कि “अब तो आपका समय गुजर चुका है”. लेकिन क्या यह सही है?
Read: International Day for Older Persons
आइए कहानी द्वारा जानें बुढ़ापे के दर्द को
सविता ताई एक आत्मनिर्भर महिला हैं. सविता ताई ने अपने घर को चलाने के लिए लोगों के घरों में जा-जाकर काम किया. जैसे तैसे करके पाई-पाई इकठ्ठा कर उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाया. अपने छोटे बेटे अर्पित को उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला दिलाया. अर्पित हॉस्टल में रहता था. एक दिन अर्पित को मिलने के लिए सविता ताई उसके हॉस्टल गईं तो अर्पित ने उन्हें अपने दोस्तों से अपनी मां के तौर पर नहीं बल्कि आंटी के तौर पर मिलवाया. यह बात बहुत छोटी थी लेकिन इसके पीछे की छुपी मानसिकता और भावनाएं बेहद विस्तृत हैं.
बुजुर्ग बन गए बोझ!
जानकारों और मनोवैज्ञानिकों की राय में आज के यूथ अपने बूढ़े मां-बाप को बोझ समझने लगे हैं. उनकी नजर में बूढ़े लोग समाज का मात्र बोझ हैं. युवाओं को लगता है कि बूढ़े लोग जो समाज की लय के साथ चल नहीं सकते, जिन्हें हर समय देखभाल की जरूरत होती है वह समाज का किसी तरह का उपकार नहीं कर सकते बल्कि समाज को ही उनका भार ढोना पड़ता है.
लेकिन ऐसा सोचते हुए युवा यह भूल जाते हैं कि ये बूढ़े भी कभी युवा थे और ये ही वो बूढ़े हैं जो अपने युवा कन्धों पे इस नए युग को लेकर आये जिस पर हम इतराते हैं. इसके साथ ही आज जो युवा होने पर घमंड करते हैं वह भी कभी बूढ़े होंगे.
Read: युवाओं से आगे बढ़ते बुजुर्ग
वृद्धों और युवाओं के बीच टकराव
वृद्धों और युवाओं के बीच टकराव की वजहें तो कई हैं जैसे उम्र का फासला, पीढ़ी का फासला लेकिन एक वजह ऐसी भी है जिससे हम मुंह नहीं फेर सकते. हम जैसा दूसरों के साथ करते हैं वैसा ही लोग हमसे बर्ताव करते हैं. कई बार लोग खुद अपने बुजुर्गों को दुतकारते है और फिर जब वह बूढ़े होते हैं तो उनके बच्चे भी उनके साथ बुरा बर्ताव करते हैं. ऐसे में हम दोषी किसे कहें? युवा पीढ़ी को जिसने अपने दादा-दादी को अपने माता-पिता द्वारा वृद्धाश्रम में छोड़ा जाना देखा हो या उन अभिभावकों को जो अपने बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार नहीं भर सकते. सवाल जटिल है और जवाब देना शायद संभव नहीं.
वृद्धों के कानून
वृद्धों की स्थिति यूं तो पूरी दुनिया में ही चिंताजनक है लेकिन भारत में तो स्थिति भयावह प्रतीत होती है. कहने को तो भारत में वृद्धों की सेवा और उनकी रक्षा के लिए कई कानून और नियम बनाए गए हैं जैसे:
लेकिन इन सबके बावजूद आज भारत में वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या और उनमें अधिक से अधिक संख्या में आते वृद्ध इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि मूल जरूरत समाज की सबसे छोटी इकाई में परिवर्तन करने की है. अगर परिवार से ही बच्चे को अपने बुजुर्गों का सम्मान करने की सीख मिले तो आशा है कि समाज में वृद्धों की स्थिति सुधरेगी और उन्हें भी समाज के साथ कदम मिलाने में आसानी होगी.
Read: Live in Relationship and Older people
Tag: Older Peoples, Live in Relationship, International Day for Older Persons, Young people, Hindi social blog, social article, Old Women, वृद्ध, वृद्धाश्रम
Read Comments