आज तक कहीं भी सुना होगा तो यही सुना होगा कि वेश्या मजबूरी में बना जाता है और वेश्या बनने पर कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. पर यदि आपसे यह कहा जाए कि वेश्या अपनी पंसद से भी बना जाता है तो आपको हैरानी होगी. क्या सच में कोई महिला अपनी पंसद से वेश्या बन सकती है? क्या सच में बिना किसी मजबूरी के कोई भी महिला वेश्यावृति को अपना सकती है? यकीन नहीं होता यह सुनने के बाद कि यदि किसी महिला को वेश्या बनने का मौका मिले तो वो वेश्या बनना चाहेगी. डॉक्टर ब्रुक मैगनानटी जो आज एक शोधकर्ता हैं और मैगनानटी छोटी उम्र में वेश्या का काम भी कर चुकी हैं. उनका कहना है कि अगर उन्हें मौका मिला तो वो दोबारा वेश्यावृत्ति में जाना चाहेंगी क्योंकि वेश्यावृत्ति ने उन्हें आज़ादी का एहसास दिया. डॉक्टर मैगनानटी का कहना है कि जो लोग इस मामले को दूसरी तरह से देखते हैं वो दरअसल इस पूरे काम को समझते ही नहीं हैं पर साथ ही मैगनानटी का यह भी कहना था कि “पुरुष वेश्याओं का एक समूह इसलिए तैयार करते हैं क्योंकि इससे उनकी महिलाओं पर वर्चस्व की भावना और अहंकार की पूर्ति होती है.”
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वेश्या के लिए गलत नजरिया
यह सच है कि पूरा समाज वेश्या को गलत नजरों से देखता है और समाज की नजरें एक वेश्या के लिए इस हद तक गिर जाती हैं कि वेश्या को सिर्फ प्रयोग करने की वस्तु समझा जाता है. पुरुष प्रधान समाज सिर्फ यही सोचता है कि वेश्या से पुरुष समाज अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करता है और वो जरूरत पूरी हो जाने पर वेश्या को एक वस्तु के समान छोड़ देता है. क्या वास्तव में एक वेश्या सिर्फ प्रयोग करनी की वस्तु होती है या वेश्या के अंदर भावनाएं नहीं होती हैं.
समाज की ये कैसी विडंबना है कि वो एक तरफ तो निर्जीव वस्तुओं में भी भावनाएं होने का दावा करता है और एक तरफ जिस व्यक्ति में भावनाएं हैं उन्हें भी निर्जीव बना देता है.
वेश्यावृति व्यवसाय: पुरुष प्रधान समाज ईमानदार नहीं
यदि वास्तव में वेश्या रूप में महिला आजादी का अनुभव करती है तो फिर पुरुष प्रधान समाज को सोचना होगा कि समाज में एक महिला पर कौन सी वो बेड़ियां लगाई जाती है जिससे महिलाओं की आजादी का हनन होता है. वेश्यावृति को पुरुष प्रधान समाज एक व्यवसाय के रूप में देखता है पर उसमें भी पुरुष प्रधान समाज ईमानदार नजर नहीं आता है. याद होगी अमरीकी अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स की वो खबर जिसमें एक वेश्या महिला ने एक पुरुष पर आरोप लगाया कि उसके साथ रात बिताने के लिए एक पुरुष ने 35 हज़ार रुपए देने का वादा किया था जिसे पुरुष ने रात बिताने के बाद तोड़ दिया और 1500 रुपए देकर ही चले जाने को कहा. यह खबर उन पुरुषों के मुंह पर तमाचा है जो वेश्यावृत्ति को एक व्यवसाय मानते हैं और इस व्यवसाय में भी ईमानदार नजर नहीं आते हैं.
बहुत बार यह सुना है कि मर्द को जब गुस्सा आता है तो वो अपना गुस्सा महिला को मार-पीटकर उतार लेता है. इसी वाक्य के साथ वेश्या रह चुकी मैगनानटी की वो बात याद आती है जिसमें उन्होंने कहा था कि “पुरुष वेश्याओं का एक समूह इसलिए तैयार करते हैं क्योंकि इससे उनकी महिलाओं पर वर्चस्व की भावना और अहंकार की पूर्ति होती है.” पुरुष प्रधान समाज में एक अहंकार होता है कि उनका वर्चस्व महिलाओं से कहीं ज्यादा ऊपर है इसलिए वे जैसे चाहे वैसे महिलाओं का प्रयोग कर सकते हैं. इसलिए पुरुष प्रधान अपनी शारीरिक जरूरत को पूरा करने के लिए महिलाओं का समूह तैयार करता है.
पुरुष प्रधान समाज इस बात को भूल जाता है कि दुनिया भर में पुरुष वेश्यावृत्ति का एक बड़ा बाज़ार तैयार हो रहा है जिनकी ख़रीदार धनवान महिलाएं हैं. तो क्या उन पुरुषों को भी पुरुष प्रधान समाज वेश्या जैसा कोई नाम देगा?
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