“मुझे चाहे वेश्या का नाम दे दो…. पर मेरी जिंदगी को आजादी से जीने का हक मत छीनो, ना जाने कब से मेरी सांसें तड़प रही हैं खुलकर सांस लेने को……….”
एक लड़की जब अविवाहित होती है तो वो वही करती है जो उस लड़की के पिता या भाई चाहते हैं और जब वही लड़की शादी के बंधन में बंध जाती है तो वो करती है जो पति चाहता है…..इस तरह उसकी तमाम जिन्दगी दूसरों के इशारों पर चलने में कट जाती है. एक महिला की जिन्दगी में ऐसे बहुत से मोड़ आते हैं जब वो अपनी जिन्दगी को ही बोझ समझने लगती है और ऐसे में उसे लगता है कि उसे आजादी चाहिए जिसके लिए वो तमाम कोशिशें करने लगती है.
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आखिरकार जब उसे कोई रास्ता नहीं मिलता हैं तो पुरुष प्रधान समाज उसे एक रास्ता दिखाता है और कहता है कि “अगर आजादी से जिन्दगी को जीना है तो वेश्या बन जा क्योंकि एक वेश्या ही होती है जिसको ना तो अपने पति के आदेश का पालन करना होता है और ना अपने पिता और भाई के आदेश का, एक वेश्या ही होती है जो बिना किसी बंधन के आजादी से जिन्दगी को जी सकती है.”
पर इन सब के बीच एक सवाल यह उठता है कि क्या महिला का आजादी के लिए वेश्या बन जाना सही रास्ता है यदि नहीं तो कौन सा वो रास्ता है जब एक महिला बिना वेश्या बने अपनी जिन्दगी को आजादी से जी सकती है.
इन सब बातों के बीच एक गंभीर बात यह भी है कि कुछ महिलाएं आजादी का अर्थ संस्कृति की अवहेलना या गलत कदम उठाकर पैसे कमाने को मान लेती हैं जबकि यह सत्य नहीं है. आजादी का अर्थ यह है कि महिलाओं को अपनी जिंदगी के निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए. बहुत हैरानी होती है यह जान कर कि लड़की के जवान होते ही लड़की का पिता उसे ऐसे हर उस पुरुष से दूर रहने के लिए कहता है जिसे वो जानती नहीं है पर अचानक उसकी शादी उस पुरुष से कर देता है जिससे वो कभी मिली भी नहीं होती और अपनी बेटी को सलाह देता है कि “आज से तेरा तन-मन सब पति के लिए है.” एक महिला के पैदा होने से लेकर उसकी अंतिम सांस तक उसकी जिन्दगी के फैसले पुरुष समाज लेता है. यहां तक कि एक महिला कब गर्भवती होगी इसके फैसले भी पुरुष ही लेता है.
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आखिरकार यह समाज एक महिला के वेश्या बनने पर इतना शोर क्यों मचाता है. सच तो यह है कि पुरुष प्रधान समाज एक महिला को उपभोग की नजर से देखता है. लेकिन जब वो अपने तन के उपभोग करने की कीमत पुरुष प्रधान समाज से लेने लगती है तो उसे वेश्या का नाम दे दिया जाता है. पुरुष प्रधान समाज को यह सोचना चाहिए कि जब वो किसी महिला का बलात्कार करता है तो वो खुद ही राक्षस बन जाता है और जब वह उसके शरीर का उपभोग करता है तो ऐसे कथित रूप से निंदनीय नाम तो उसे स्वयं के लिए रखने चाहिए पर पुरुष प्रधान समाज को अपने लिए निंदनीय नाम रखने में एतराज होता है.
समाज की इन सब बातों के बीच एक बात और भी है कि जो महिलाएं आजादी से जिन्दगी जीने लगती हैं उन्हें समाज वेश्या का नाम दे देता है और वे वेश्या नाम सुनने की इतनी आदी हो जाती हैं कि वो खुद अपने आप को वेश्या ही मानने लगती हैं और यही कहती हैं कि “वेश्या समझे जाने से आजादी मिले तो यही सही.”
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आपकी सोच भी जानना जरूरी है: क्या आपको भी यही लगता है कि एक महिला किसी भी कारण से वेश्या बनी हो पर अंत में ‘एक वेश्या,वेश्या ही होती है’.
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