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अपने राज्य से बाहर कौड़ियों के भाव जमीन खरीदकर पंजाबी किसान उगा रहे हैं सोना

नई चुनौतियां स्वीकार करने और अपनी मेहनत से असंभव को संभव करने के लिए पंजाब के लोग पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं. विश्व के अलग-अलग कोने में पहुंचकर अपनी मेहनत का लोहा मनवाने वाले पंजाबी किसान अब भारत के दक्षिण राज्य तमिलनाडु में धरती से सोना उगाने का काम कर रहे हैं. तमिलनाडु के रामनाथपुरमजिले में सालों से बंजर पड़ी सैकड़ों एकड़ भूमि आज पंजाब से आए कुछ किसानों के कारण फसलों से लहलहा रही है. पंजाब से आए इन चंद किसानों की सफलता की कहानी इनके गृहराज्य के अन्य किसानों को भी लुभा रही है.


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तमिलनाडु के वल्लानदाई गांव में 65 वर्षीय सरदार मनमोहन सिंह को देखकर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि वह अपने गृहराज्य से हजारों किलोमीटर दूर बैठे हुए हैं. अकाल फार्म के संस्थापक मनमोहन सिंह और 46 वर्षीय दर्शन सिंह 2007 में तमिलनाडू के रामनाथपूरम जिले में आए थे. यहां आने का सुक्षाव उनके गुरू ने दिया था जो कि बागबानी के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं. यहां जमीन की कीमतें बेहद कम थी. यहां 10,000 रुपए से 20,000 रुपए प्रति एकड़ जमीन खरीदी जा सकती है जबकि पंजाब में जमीन का दाम 50 लाख प्रति एकड़ से 1 करोड़ प्रति एकड़ है.


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आज अकाल फार्म में करीब एक दर्जन सिख किसानों का हिस्सा है जो अगले दो सालों में 400 एकड़ जमीन पर फल और सब्जियां उगाने की तैयारी कर रहें हैं. आज की तारिख में ये लोग 115 एकड़ जमीन पर फल और  सब्जिया उगा रहे हैं.


दर्शन सिंह बताते हैं कि पंजाब में कुछ दोस्त और रिश्तेदारों ने मिलकर एक छोटा सा समूह बनाकर संसाधन एकत्रित किए और यहां जमीन खी खरीददारी शुरू की. “हमने शुरुआत में 300 एकड़ जमीन खरीदी और उसे कृषि योग्य बनाने में जुट गए. मैने पंजाब में 1 एकड़ जमीन बेचकर यहां 20 एकड़ जमीन खरीदी.”


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मनमोहन सिंह कहते हैं कि, “अगर आप बड़े पैमाने पर कृषि करते हैं तो आपको फायदा होता है. आज हमारे पास 900 एकड़ जमीन है. हमारा हर साल 100 एकड़ जमीन को कृषि योग्य बनाने का लक्ष्य है.” अकाल फार्म के बाहर सड़क के दोनों किनारे बंजर जमीन पर जंगली झाड़ियां उगी हुई हैं लेकिन फार्म के भीतर प्रवेश करते ही नजारे बदल जाते हैं. कई एकड़ में फैले नारियल के बगीचे और सब्जियों के खेत खुद-ब-खुद बयां करते हैं कि इन्हें उगाने के लिए कितना पसीना बहाया गया है.


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दर्शन सिंह कहते हैं कि जब वे यहां जमीन खरीद रहे थे तो स्थानीय लोगों को लगा कि हम पागल हैं जो इतनी दूर से आकर कंटीली झाड़ियों से भरी यह जमीन खरीद रहे हैं. मनमोहन सिंह यहां खेती शुरू करने से पहले मदुरई एग्रीकल्चर कॉलेज के डॉ. टी आरमुगम के पास सलाह के लिए गए. आरमुगम बताते हैं कि, “वे मेरे पास 2009 या 2010 में आए थे. मैं उनके साथ उनके फार्म गया और मिट्टी की जांच कर उन्हें सुझाव दिया कि यहां किस तरह की फसल लगाई जानी चाहिए और उनकी सिंचाई और देखभाल कैसे की जानी चाहिए.” आरमुगम आगे कहते हैं कि किसानों ने उनकी सलाह को शब्दश: मान ली. जब विज्ञान की बात आती है तो वो हम पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं.”


प्रोफेसर आरमुगम की सलाह पर किसानों ने उच्च कीमत वाले नकद फसल बोए जिनमें पानी की खपत बेहद कम हो. सिंचाई के लिए ड्रिप की व्यवस्था करवाई और पौधों के घनत्व को अधिक रखा. मनमोहन सिंह का कहना है कि दो साल के भीतर आप रामनाथपुरम में पंजाब के लोगों को देख सकेंगे. पंजाब के कई किसान अब मनमोहन सिंह के नक्शे कदम पर चलने की तैयारी कर रहे हैं. Next…


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