उसे न आरक्षण चाहिए, न सरकारी नौकरी. वो एक ऐसी लड़ाई लड़ रहा है जिसे सुनकर हर कोई हैरान रह जाएगा. वो करीब 10 सालों से अपने जिंदा होने की लड़ाई लड़ रहा है. ये बात सुनकर आपको भी हैरानी हुई होगी कि भला कोई जिंदा इंसान अपने जिंदा रहने की लड़ाई कैसे लड़ सकता है. दरअसल, संतोष मूरत सिहं अपने ही लोगों के हाथों लूटे उन लोगों में शुमार है जो चाहकर भी अपने लोगों के साथ बुरा नहीं कर सकते. लेकिन उन्हें सिर्फ इंसाफ चाहिए. संतोष अपने परिवार के साथ बनारस में रहते थे. उनके पिता की मृत्यु 1988 में हो गई जबकि 1995 में उनकी मां ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया. अपने भाईयों के साथ संतोष की जिदंगी हंसी-खुशी गुजर रही थी लेकिन साल 2000 आते-आते उनका जीवन बिल्कुल बदल गया.
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सन 2000 में नाना पाटेकर के यहां थे कुक
संतोष बताते हैं कि सन 2000 उनके जीवन में एक नई सौगात लेकर आया. जब मशहूर फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर साल 2000 में अपनी फिल्म की शूटिंग के लिए बनारस आए. वहां संतोष की मुलाकात नाना पाटेकर से हुई. दोनों की आपस में बातचीत हुई और नाना ने संतोष को अपने घर कुक के रूप में रख लिया. संतोष अपनी जमीन और बाकी सम्पति चचेरे भाईयों के सुपुर्द करके मुंबई चले गए.
2006 में मुंबई में कर लिया प्रेम विवाह
मुंबई जाकर संतोष ने वहां एक दलित लड़की से प्रेम विवाह कर लिया. अपने गांव वापस आकर उन्होंने ये बात अपने घरवालों और चचेरे भाईयों को बताई. लेकिन एक दलित लड़की से प्रेम करना परिवारवालों को रास नहीं आया. गांववालों ने संतोष और उनकी पत्नी का सामाजिक बहिष्कार किया.
मुंबई लोकल ब्लास्ट के आधार पर बनवाया फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र
इस दौरान 2006 में मुंबई लोकल में ब्लास्ट हुए. इस एक घटना ने संतोष की जिदंगी बदल दी. दरअसल, उनके चचेरे भाईयों ने चारों ओर ये अफवाह उड़ा दी कि इस ब्लास्ट में संतोष की मौत हो गई और इसी आधार पर उन्होंने अपने चचेरे भाई संतोष का फर्जी प्रमाण पत्र भी बनवा लिया. जब संतोष को अपने भाईयों की इस करतूत के बारे में पता चला तो उन्होंने कई सरकारी कार्यालयों में चक्कर लगाए. जहां हर बार सिर्फ उन्हें आश्वासन दिए जाते थे.
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2012 में नाना पाटेकर की मदद से रद्द हुआ प्रमाण पत्र
संतोष की इस लड़ाई में 2012 में नाना पाटेकर ने भी साथ दिया था. वो जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे संतोष का साथ देने वहां आए. उनके हस्तक्षेप के बाद संतोष का मृत्यु प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया गया.
मगर अधूरा है इंसाफ
संतोष का मृत्यु प्रमाण पत्र रद्द कर दिया गया लेकिन उनके मृत्यु प्रमाण पत्र के आधार पर अपने नाम की गई जायदाद और कई दूसरे दस्तावेज अभी तक रद्द नहीं किए गए हैं. यानि आज भी जिंदा होने पर भी संतोष अपने जिंदा होने का सबूत देने के लिए जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं. अब देखना ये है कि उन पर अन्याय करने वाले उनके अपनों को सजा कब मिलती है. साथ ही अपने खोए हुए सम्मान, संपत्ति और वजूद की लड़ाई लड़ रहे संतोष की जीत कब होती है…Next
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