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नारी सशक्तिकरण – पुरुष वर्चस्व को चुनौती

Empowerment-Resourcesमौलिक रूप से हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज रहा है. महिलाओं को हमेशा यहां दोयम दर्जे का स्थान ही प्रदान किया गया है. पहले महिलाओं के पास किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता ना होने के कारण उनकी सामाजिक और पारिवारिक स्थिति एक पराश्रित से अधिक और कुछ नहीं थी, जिसे हर कदम पर एक पुरुष के सहारे की जरूरत पड़ती थी. वैसे तो आजादी के बाद से ही महिला उत्थान के उद्देश्य से विभिन्न प्रयास किए जाते रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में महिला सशक्तिकरण की बयार में अत्याधिक तेजी देखी गई है. इन्हीं प्रयासों के परिणामस्वरूप महिलाओं के आत्मविश्वास में कई गुणा बढ़ोतरी हुई है और वे किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए खुद को तैयार करने लगी हैं. जहां सरकारें महिला उत्थान के उद्देश्य से नई-नई योजनाएं बनाने लगी हैं, वहीं कई गैर-सरकारी संगठन भी उनके अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद करने लगे हैं. नारी सशक्तिकरण के तहत महिलाओं के भीतर ऐसी प्रबल भावना को उजागर करने का प्रयास भी किया जा रहा है कि वह अपने भीतर छिपी ताकत को सही मायने में उजागर कर, बिना किसी सहारे के आने वाली हर चुनौती का सामना कर सकें.


आज की महिलाएं सिर्फ घर गृहस्थी को संभालने तक ही सीमित नहीं रही हैं, बल्कि हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है. व्यावसायिक क्षेत्र हो या पारिवारिक, महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि वे हर वो काम कर सकती हैं जो कभी पुरुषों के योग्य समझा जाता था. कुछ समय पहले तक जिन व्यवासायिक क्षेत्रों में केवल पुरुषों का ही वर्चस्व हुआ करता था, अब वहां महिलाओं को काम करते देखकर हमें आश्चर्य नहीं होता है. शिक्षा और आत्म-निर्भर बन जाने के कारण वह अपने ऊपर विश्वास कर, अपने जीवन संबंधी निर्णय लेने लगी हैं.


Women in India लेकिन नारी सशक्तिकरण की पैरवी करते हुए हम इस बात को नकार नहीं सकते कि जब हम किसी एक को सशक्त करने की बात करते हैं तो स्वाभाविक तौर पर हम दूसरे व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र को सीमित कर रहे होते हैं. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए जरूरी है कि पुरुष वर्चस्व की महत्ता को कम कर दिया जाए. ऐसे हालातों में भारतीय पुरुष जो महिलाओं का दमन-शोषण करना अपना शौक समझते थे, वह इस बात को वहन नहीं कर पा रहे कि दबी-कुचली महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने लगें. यहीं कारण है कि महिला सशक्तिकरण को बहुत अधिक तरजीह दिए जाने के बावजूद पुरुष वर्ग में एक तबका ऐसा भी है जो महिलाओं की आजादी को अपने लिए घातक मानकर चल रहा है. अपने झूठे पुरुषत्व को कायम रखने और महिलाओं को उनसे निम्न होने का अहसास दिलवाने के लिए वह कभी उसके सम्मान के साथ खिलवाड़ करता है तो कभी उस पर हाथ उठाता है.


हम बड़े गर्व के साथ सरकारों द्वारा बनाई जा रही योजनाओं को अपना लेते हैं. लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि महिलाओं के लिए बनाई गई विभिन्न योजनाएं उन्हें अधीनस्थ और शोषित होने का ही अहसास दिलवाती हैं. घरेलू हिंसा को रोकने और स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने जैसे कानून हमारे समाज की इसी कड़वी हकीकत को बयान करते हैं कि समय परिवर्तित हो जाने के बाद भी पुरुष आज भी स्वयं को महिलाओं को सम्मान देना पसंद नहीं करते. उनकी मानसिकता आज भी पहले जैसी ही है. विवाह के तुरंत बाद ही उसे अपनी पत्नी के साथ मारपीट करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है. बेटी को शादी के बाद दूसरे घर ही जाना है तो उसे पढ़ा-लिखा कर खर्चा क्यों किया जाए. लेकिन जब सरकार उन्हें लालच देती है, तो वह उसे पढ़ाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं और हम यह समझने लगते है कि परिवारों की मानसिकता बदल रही हैं.


दुर्भाग्यवश नारी सशक्तिकरण केवल शहरी क्षेत्रों तक ही सिमटकर रह गया है. एक ओर बड़े-बड़े शहरों और महानगरों में रहने वाली महिलाएं शिक्षित, आर्थिक रुप से स्वतंत्र, विभिन्न क्षेत्रों में ऊंचे पदों पर काम करने वाली और आधुनिक विचारधारा महिलाएं हैं, जो पुरुषों के दमन को किसी भी रूप में सहन नहीं करना चाहतीं. अपने साथ हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध वह अपने दम पर लड़ना जानती हैं. इनकी संख्या भले ही कम हो, लेकिन उन्होंने जो सम्मानजनक स्थिति प्राप्त की है, वह बेहद प्रशंसनीय है. वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण इलाकों में तो आज भी नारी के अस्तित्व पर प्रश्नचिंह ही लगा हुआ है. गांवों में रहने वाली महिलाएं ना तो अपने अधिकारों को जानती हैं और ना ही उनके महत्व को समझती हैं. जिस कारण वह पति के अत्याचारों और सामाजिक लांक्षनों को अपनी नियति समझकर सहन करने को विवश हो जाती हैं.


हमारा पुरुष प्रधान समाज जिन संस्कारों, परंपराओं और मर्यादाओं की दुहाई देकर महिलाओं को अपने द्वारा निर्मित दायरे में बांध कर रखना चाहता हैं, पुरुष द्वारा उन्हीं सीमाओं का अतिक्रमण और अवमानना कोई नई बात नहीं है. खास बात तो यह है कि उसे ऐसे कृत्य के लिए कोई ठोस सजा नहीं दी जाती. वहीं अगर कोई महिला इन बंधनों को तोड़ कर बाहर निकलना चाहे तो उसे हमारे समाज के ठेकेदारों की कोप दृष्टि का पात्र बनना पड़ता है. हम भले ही खुद को आधुनिक कहने लगे हों, लेकिन वास्तविकता यही है कि आधुनिकता केवल हमारे पहनावे और व्यवहार में आई है लेकिन चरित्र और विचारों से अभी भी हमारा समाज और इसमें रहने वाले लोग पिछड़े हुए ही हैं. पुरुष वर्ग महिलाओं को आज भी एक वस्तु की भांति अपने अधीन बनाए रखना चाहता है. आज महिलाएं गृहणी से लेकर एक सफल व्यावसायी की भूमिका को सहज ढ़ंग से निभा रही हैं. वह स्वयं को पुरुषों से बेहतर साबित करने का एक भी मौका गंवाना नहीं चाहती. अगर वह खुद में छिपी ताकत को पहचान अपना पृथक और स्वतंत्र अस्तित्व निर्माण करने का प्रयास करती है तो वह पुरुषों से ज्यादा बेहतर निर्णय लेने की भी काबिलियत रखती हैं. आधुनिक युग की महिलाएं पुरुष के समकक्ष ही नहीं, बल्कि कई क्षेत्रों में तो पुरुष के वर्चस्व को भी चुनौती दे रही हैं. अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है.


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