Menu
blogid : 316 postid : 1292

क्या आज के समय की मांग है सेक्स एजुकेशन?

sex educationएक समय पहले तक सेक्स जैसे विषय पर बात करना निंदात्मक समझा जाता था लेकिन आज के आधुनिक समय में यह कोई बहुत बड़ा और घृणित मसला नहीं रह गया है. वयस्कों की तो बात ही छोड़िए अब तो युवा और किशोरवय बच्चे भी शारीरिक संबंधों और उनसे जुड़े विषयों में रुचि लेते हैं और इनसे जुड़ी बातें अपने दोस्तों के साथ करते दिखाई पड़ते हैं.


विशेषकर कॉलेज जाने वाले युवाओं को जब थोड़ी सी आजादी मिल जाती है तो ऐसे में उनके भटकने की संभावना अपेक्षाकृत अधिक बढ़ जाती है. प्राय: देखा जाता है कि कॉलेज में पहुंचते ही वह अफेयर जैसे संबंधों में तो संलिप्त होते ही हैं साथ ही शारीरिक संबंधों का अनुसरण करने से भी पीछे नहीं हटते. शारीरिक संबंधों के प्रति उनके बढ़ते रुझान को आधुनिक तकनीकें और ज्यादा बढ़ावा देती हैं. कंप्यूटर और स्मार्ट फोन जैसे सूचना और मनोरंजन के माध्यमों का अधिक प्रयोग आज सेक्स से जुड़ी सामग्री से अवगत होने और इनके आदान-प्रदान के लिए ही किया जाता है.


उल्लेखनीय है कि यह माध्यम केवल शारीरिक संबंधों के प्रति रुझान ही उत्पन्न करते हैं. इनसे जुड़े नकारात्मक पक्षों और सुरक्षित संबंधों के विषय में कोई जानकारी नहीं पहुंचाते या यूं कहें कि युवा स्वयं ही इस ओर ध्यान नहीं देते. बिना किसी जानकारी और सुरक्षा के स्थापित किए गए संबंध का खामियाजा उन्हें आगे चलकर भुगतना पड़ता है.


यही वजह है कि आधुनिकता से परिपूर्ण आज के समाज में स्कूली बच्चों के पाठ्यक्रम में सेक्स एजुकेशन को शामिल करने की व्यवस्था पर विचार किया जा रहा है. विदेशों में यह व्यवस्था बहुत पहले ही लागू हो चुकी है लेकिन भारत जैसे परंपरावादी और मान्यताओं को मानने वाले देश में यह एक विवादास्पद मसला ही है.

क्या दंड के बिना सुधार संभव है?

विदेशी स्कूलों में स्वयं शिक्षक बच्चों को शारीरिक संबंधों से जुड़े विभिन्न विषयों से अवगत करवाते हैं. इतना ही नहीं छात्रों की शंकाओं का समाधान भी करते हैं. पर यहां एक बात गौर करने वाली है स्कूली छात्र शिक्षकों से नहीं बल्कि अपने वरिष्ठ छात्रों से इस विषय के बारे में जानकारी लेने में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं.


लंदन में हुए एक नए अध्ययन के अनुसार आधे से ज्यादा छात्र अपने से बड़े छात्रों से इस विषय पर बात करने और जानकारी लेने में सहज महसूस करते हैं बजाय अपने शिक्षक के.


इस सर्वेक्षण के अनुसार 13-17 आयु वर्ग के बच्चे अपने शिक्षक से शारीरिक संबंधों से जुड़े मसलों पर बात करने में सहज महसूस नहीं करते. यहां तक कि जब उनके अध्यापक उनसे कोई बात करते हैं तो यह उन्हें बहुत अजीब लगता है. इसीलिए वे अपने से बड़े बच्चों द्वारा ऐसे विषयों पर बात करना ठीक समझते हैं.


हालांकि विदेशी स्कूलों में सेक्स एजुकेशन एक जरूरी विषय नहीं है. अभिभावकों के कहने पर ही बच्चों को इस विषय में जानकारी देने की व्यवस्था की जाती है. लेकिन जल्द ही सरकार द्वारा सेक्स एजुकेशन को जरूरी करने का प्रावधान लागू किया जा सकता है.


फैमिली प्लानिंग कमीशन, जो सेक्स एजुकेशन के प्रचार का काम देख रही है, का कहना है कि अगर बच्चे अपने वरिष्ठ युवाओं से ही शिक्षा लेंगे तो संभव है कि उन्हें अधूरी या फिर गलत शिक्षा मिले. अगर ऐसा होता है तो यह उनके आगामी जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा. इसीलिए बच्चों को किसी विशेषज्ञ शिक्षक द्वारा ही सेक्स एजुकेशन दी जानी चाहिए.

क्या शिक्षा बदल सकती है महिलाओं की स्थिति?

विदेशों में सेक्स एजुकेशन जैसी शिक्षा जल्द ही लागू की जा सकती है लेकिन भारत जैसे देश में यह हमेशा विवादास्पद विषय रहा है और शायद एक लंबे समय तक रह भी सकता है. परंपराओं को अपनी पहचान मानने वाला हमारा समाज कभी सार्वजनिक रूप से विशेषकर बच्चों के समक्ष ऐसे निजी विषयों के बखान को सहन नहीं करेगा. लेकिन अगर व्यवहारिक तौर पर देखा जाए तो शारीरिक संबंधों की जानकारी से बच्चों को अवगत कराना आज के समय की मांग है. एक तो ऐसा कर वह यौन संक्रमण और असुरक्षित शारीरिक संबंधों के खतरे से खुद को दूर रख सकते हैं. इसके अलावा इससे गर्भपात से जुड़े आंकड़ों पर भी लगाम लगाई जा सकती है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आज बच्चों के साथ यौन संबंध जैसी घृणित वारदातें भी धड़ल्ले से अंजाम दी जाने लगी हैं. बच्चे यह जान ही नहीं पाते कि वे कैसे मनोविकार का शिकार हो रहे हैं. ऐसे में अगर उन्हें उचित शिक्षा दी जाए तो वह अपने साथ हुए निंदनीय और अमानवीय कृत्य को खुद समझ सकते हैं साथ ही अपने अभिभावकों को भी इस विषय में सूचित कर सकते हैं.


सेक्स एजुकेशन के जहां इतने फायदे हैं वहां इसके कुछ भयंकर दुष्परिणाम भी हैं. हो सकता है कि सेक्स के विषय में सब कुछ जान लेने के बाद बच्चे इस ओर अधिक रुचि लेने लगें. अपनी सुरक्षा के प्रति पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद वह ऐसे संबंधों का अनुसरण बिना किसी परेशानी या डर के करने लगेंगे. निश्चित रूप से यह उनके नैतिक आचरण को प्रभावित करेगा.


सेक्स एजुकेशन जरूरी है लेकिन केवल इस पक्ष को ध्यान में रखते हुए ही हम आगे की रणनीति तय करते हैं तो यह निश्चित रूप से हमारे समाज और मूल्यों के लिए घातक हो सकता है. इसीलिए जरूरी है कि नैतिक आचरण और शिक्षा की सीख देने के साथ ही सेक्स एजुकेशन का पाठ पढ़ाया जाए. सेक्स एजुकेशन देकर हम बच्चों में इस ओर रुझान को बढ़ा भी सकते हैं और नियंत्रित भी कर सकते हैं. ऐसे में जरूरी है कि नैतिक शिक्षा और सेक्स एजुकेशन में सामंजस्य बैठा कर ही इस समस्या का हल निकाला जाए.

विदेशी पुरुषों को नहीं सुहाता पत्नी का मां बनना !!

हृदयघात की संभावना को जन्म देता है शारीरिक शोषण

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh