रोता है दिल पर आंखों में एक नायाब मुस्कान. इस मुस्कान के मुरीद जाने कितने लोग होंगे कि वह बस एक बार उसकी चौखट पर आए और हंसकर, मुस्कुराकर चला जाए. होठों पर हंसी के पीछे अंगारों सी उस जिंदगी का साथ दूसरों को रुला जाए, पर कम्बख्त वे रोते नहीं, हंसकर शायद ऊपर भगवान को कहते हों ‘देख विधाता तेरी हर बेमजा जिंदगी का मजा लिया है हमने, अब तो बस कर दे’!
किसी की खुशी में वे साथ निभाने की हर कोशिश करते हैं पर उनकी खुशी की शायद किसी के लिए कोई कीमत ही नहीं. एक अभिशप्त जिंदगी की तस्वीर वे केवल इसलिए बन जाते हैं क्योंकि आम लोगों से वे थोड़े अलग हैं. मरना कानून ने अपराध बना दिया लेकिन जीने के लिए जो जरूरी होता है वह हर अधिकार उनसे छीन लिया. फिर जीना क्या और मरना क्या? जीने में खुशी-गम की तो बात छोड़ दो मरने के बाद भी उन्हें चैन नहीं, जूते-चप्पलों से पिटती है उनकी लाश, गालियां सुनते हैं.
वे फिर भी बिना किसी शिकायत के खुशी-खुशी जीते हैं. एक हंसोड़ चेहरा, चंचल आंखों के साथ दर्द की एक दास्तान अपने साथ लेकर चलते हैं पर चेहरे की हंसी के पीछे वह दास्तान कभी किसी को नजर नहीं आती. उनका गुनाह आखिर क्या है, वे अगर पूछना भी चाहें तो पूछ नहीं सकते क्योंकि जवाब पहले से तैयार है ‘तुम अलग हो सबसे इसलिए’! पर क्या सबसे अलग होना इतना अभिशप्त है?
पूरी दुनिया में स्त्री-पुरुष के प्रकार एक ही हैं, उनकी विशेषताएं एक ही हैं. कोई अपने स्वभाव में अलग हो सकता है, दुनिया को देखने का नजरिया सबका अलग हो सकता है लेकिन जब बात आती है मानव अधिकारों की तो सबके लिए यह समान हैं. जीने के लिए जितनी चीजें जरूरी हैं वे हर इंसान के प्राथमिक अधिकारों में शामिल कर दी गईं. बिना खाना-पानी के जीना संभव नहीं, तो इसे हर किसी का अधिकार बना दिया गया; धूप, बारिश, ठंढ से बचने के लिए एक छत भी जीने के लिए उतना ही जरूरी है इसलिए यह भी इंसानी अधिकार है; और आज शरीर को ढक कर रखना भी उतना ही जरूरी है इसलिए यह भी मानव अधिकार है. कहने को अमीर-गरीब, जाति-वर्ग में विभेद न करते हुए यह हर किसी का प्राथमिक अधिकार है पर कुछ लोग आज भी दुनिया में हैं जो इंसान होकर भी इन अधिकारों के बिना जी रहे हैं. बस कुछ शारीरिक अक्षमताओं के कारण, इंसान होकर भी इंसानों की श्रेणी से बाहर रखे गए हैं. आखिर क्यों?
किन्नरों का समुदाय पूरी दुनिया में मानव विभेद का प्रतीक है. इंसानी अधिकारों से मरहूम यह किन्नर समुदाय कई-कई रस्मों और शुभ कामनाओं से जुड़ा हुआ है फिर भी इनकी अपनी जिंदगी ऐसी शुभ कामनाओं से बहुत दूर है. एक अच्छी जिंदगी तो दूर इन्हें अपने अधिकारों के लिए भी एक लड़ाई लड़नी पड़ती है.
जीना तो इनके लिए एक अभिशाप है ही, मरना भी सुकून से बहुत दूर है. आपको जानकर शायद हैरानी हो कि किन्नर की मौत किसी भी समय हो लेकिन उसकी शव यात्रा हमेशा रात को ही निकाली जाती है. इतना ही नहीं शव यात्रा निकालने से पहले शव को जूते-चप्पलों से बुरी तरह पीटा जाता है और पूरा किन्नर समुदाय एक सप्ताह तक भूखा रहता है. अगर आपने कभी यह देख लिया तो शायद रो पड़ें लेकिन किन्नरों के लिए यह उनके मरने की रस्म भी है और पूरी जिंदगी पर सवाल उठाता एक कदम भी. आखिर किसी का जीना इतना अभिशप्त कैसे हो सकता है?
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हाल ही में कोर्ट ने किन्नरों को थोड़ी राहत देते हुए उन्हें एक ‘लिंग’ की संज्ञा दे दी लेकिन समाज में मान दिलाने के लिए सिर्फ इतना काफी नहीं है. न वे सामान्य रूप से मुहल्लों में रह सकते हैं, न उनके लिए शिक्षा-रोजगार की सामान्य सुविधाएं हैं, न ही सामान्य दिनचर्या. सामाजिक भीड़ में वे अलग-थलग हैं. जहां वे आएं लोग उनसे कतराकर निकल जाते हैं लेकिन शादी-ब्याह, बच्चे के जन्म उत्सवों पर दुआएं देने भर के लिए वे जरूर जरूरी होते हैं. लोगों से जो शगुन वे मांगते हैं बस वही उनकी दुआओं की कीमत है, वे दुआएं जो हर किसी के लिए अनमोल मानी जाती हैं.
वे दुआ किसी मजबूरी में देते हैं ऐसा तो नहीं कह सकते लेकिन हां, शगुन या किसी भी रूप में पैसे लेना उनकी मजबूरी ही कही जाएगी क्योंकि जीने के लिए पैसों की जरूरत है और पैसे कमाने के लिए न उनके पास कोई आजिविका का साधन होता है, न ही शिक्षित ही होने का ही कोई मौका.
पर यह समुदाय ईमानदारी और शुभता के प्रतीक होते हैं. इन्हें मंगलमुखी कहा जाता है क्योंकि ये सिर्फ मांगलिक उत्सवों में ही भाग लेते हैं, मातम में नहीं. हमेशा दूसरों के लिए शुभेक्षा करने वाले ये लोग अपनी अभिशप्त जिंदगी से कितने दुखी होते हैं वह इसी से समझा जा सकता है कि दान या मांगलिक उत्सवों में मिले पैसों से भी अपनी ओर से जरूरतमंदों को दान करते हैं ताकि अगले जन्म में उन्हें इस रूप में पैदा न होना पड़े. किसी भी जगह कोई शुभ काज (मांगलिक कार्य) होने की जानकारी देने वालों को भी ये खाली हाथ नहीं लौटाते और कमीशन देते हैं. इतनी सारी सीखों के बावजूद दुनिया के लिए ये अजूबा हैं और जीने के लिए हर दिन एक नई चुनौती से लड़ने को बाध्य भी.
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