हिंदू मान्यताओं के तहत कल्प वृक्ष को बेहद महत्वपूर्ण और हर कामना पूरी करने वाला पेड़ माना गया है। देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में कल्प वृक्ष भी शामिल था। माना जाता है कि इस वृक्ष के नीच बैठकर की गई हर कामना पूरी हो जाती है। मध्य प्रदेश में प्रशासनिक भवनों के निर्माण में बाधा बन रहे दो कल्प वृक्षों को सरकार ने काटने के विचार पर अहम फैसला लिया है। वर्तमान में यह वृक्ष पृथ्वी पर बेहद कम मात्रा में ही बचे हैं। इसे दुर्लभ वनस्पति की सूची में भी शामिल किया गया है।
धार्मिक महत्व पता चलने पर फैसला बदला
मध्य प्रदेश के सागर जिले की कलेक्ट्रेट में लंबे समय से दो कल्प वृक्ष मौजूद हैं। नए भवन निर्माण के प्रस्ताव में यह दोनों वृक्ष बाधा बन रहे थे। इसलिए इन्हें काटने का फरमान जारी किया गया था। जानकारी के मुताबिक कुछ लोगों के विरोध और धार्मिक मान्यताओं के चलते दोनों पेड़ों को काटने के विचार को बदलना पड़ा और जिलाधिकारी ने पेड़ों को काटने की बजाय भवन के नक्शे में बदलाव कर लिया है। सरकारी तंत्र के इस फैसले से लोगों में खुशी है और उन्होंने अधिकारियों को धन्यवाद दिया है।
समुद्र मंथन से निकला था कामनापूर्ति कल्प वृक्ष
कलेक्टर प्रीति मैथिल के निर्देशन में भवन निर्माण कराया गया है। इसके लिए भवन की डीपीआर में कई बड़े बदलाव करने पड़े। यह दोनों कल्प वृक्ष सागर जिले की कलेक्ट्रेट के मुख्य गेट पर मौजूद हैं। सागर जिले में सिर्फ यही दो कल्प वृक्ष मौजूद हैं। उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में भी कई कल्प वृक्ष आज भी मौजूद हैं। वर्तमान में पृथ्वी पर कल्प वृक्ष की संख्या बेहद कम है। देवताओं की शक्तियों वाला यह वृक्ष दुर्लभ वनस्पतियों की श्रेणी में भी शामिल किया जा चुका है।
दुनिया के पांच देशों में ही उगता है
जानकारों के मुताबिक कल्प वृक्ष दुनिया में केवल भारत, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, इटली और फ्रांस में ही पाया जाता है। जीवन का प्रतीक यह वृक्ष समुद्र मंथन के दौरान कामधेनु गाय के साथ उत्पन्न हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन से निकली कामधेनु और कल्प वृक्ष हर कामना पूरी करते हैं। औषधीय गुणों से भरा कल्प वृक्ष की पत्तियां और लकड़ी और छाल के इस्तेमाल से असाध्य रोगों से छुटकारा मिल जाता है।
फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने खोजा
वनस्पति विज्ञानियों के मुताबिक ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का सबसे पहले फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने 1775 में खोजा था। उन्होंने इस पेड़ को सर्वप्रथम अफ्रीका में सेनेगल में सर्वप्रथम देखा था। इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है। कुछ देशों में इसे बाओबाब भी कहा जाता है।…Next
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