उसे इंसाफ तब मिला जब उसे मरे हुए 7 दशक बीत चुके थे. कितने आश्चर्य की बात है कि हम जिस दुनिया में रहते हैं वहां हमारी पुकार सुनने के लिए कुछ दिन, हफ्ते या महीने नहीं बल्कि सालों साल लग जाते हैं. इतने साल कि तब तक शायद ना केवल उसकी पहचान बल्कि उसका नाम तक गुम हो जाता है.
जॉर्ज स्टिन्नी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. महज 14 वर्ष के जॉर्ज, जो कि दक्षिणी कैरोलिना प्रांत से सम्बन्ध रखता था उसे वर्ष 1944 में अमेरिका द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई थी. कारण था दो गोरी लड़कियों को पीटना जिस वजह से दोनों की मौत हो गई थी.
अपना गुनाह कबूलने पर जॉर्ज को कोर्ट में केवल 10 मिनट के अंदर फांसी की सजा सुना दी गई. ताज्जुब की बात है कि इतने छोटे बच्चे की किसी भी तरह की दलील को सुने बिना ही मौजूद ज्यूरी ने महज 10 मिनटों में जॉर्ज की जिंदगी का फैसला कर डाला.
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बात यहीं खत्म नहीं हुई, उस समय अपराधी को सजा के तौर पर मृत्युदंड देने का जो तरीका था वो बेहद ही भयानक था. इस नन्हीं सी जान को कुर्सी पर बैठाकर बिजली के जोरदरा झटके दिये गए जिस के बाद उसे अपना दम तोड़ दिया.
जॉर्ज के अपराध से लेकर उसके मर जाने तक जो हुआ वह तो न्यायिक संस्था का फैसला था लेकिन अब जो फैसला आया है उसने जॉर्ज के उन जख्मों की भावना को फिर से जिंदा कर दिया है. इतने सालों बाद जॉर्ज तो वापस नहीं आ सकता लेकिन अब फैसला यह आया है कि उसका अपराध मौत पाने लायक नहीं था जिसके तहत न्यायालय ने उसे दोषमुक्त कर दिया.
जॉर्ज के हक में सुनाए गए इस फैसले पर क्या टिप्पणी की जाए यह तो समझ में नहीं आता है लेकिन एक बात जरूर स्पष्ट है कि इस फैसले पर खुश होने या प्रतिक्रिया तक करने के लिए जॉर्ज स्टिन्नी नाम का वो बच्चा आज इस दुनिया में नहीं है. यह महज कानून और दलीलों की लेटलतीफी का एक बड़ा नमूना है. Next….
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