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अंजाम से नावाकिफ शीर्ष पदों पर बैठे एय्याश


जैसे-जैसे इंसानों को सुविधाएं मिलती जा रही हैं वैसे-वैसे वह भी आरामपरस्त होता जा रहा है. पैसा और पॉवर मिलने के बाद इंसान अपनी सभी इच्छाओं को खुली छूट दे देता है. उसके लिए अपनी सभी इच्छाएं और वासनाओं को पूरा करना ही जिन्दगी का मकसद बन जाता है. आज की खुली सभ्यता में इंसान जानवरों की तरह शारीरिक संबंध  के प्रति उग्र हो चला है. अगर पावर और पैसा है तो बूढ़ा इंसान भी अपनी हवस की भूख को जगा लेता है.


stop_rape_लेकिन यह आदतें समाज के लिए बहुत बुरी हैं इसीलिए जब भी किसी व्यक्ति पर सार्वजनिक तौर पर व्यभिचार का आरोप लगता है तो उसे सजा मिलती है और जब अपनी वासना की भूख के लिए कोई जनता का प्रतिनिधि ऐसा काम करता है तो जनता उसको एक उदाहरण के तौर पर देखती है. जनता को लगता है जैसी सजा या कार्यवाही इस बड़े आदमी के साथ होगी वह ही उनके साथ भी होगी. कई देशों में जब कोई जनता का प्रतिनिधि या कोई अन्य व्यक्ति इस तरह के कार्यों में लिप्त पाया जाता है तो उसकी पॉवर छीन ली जाती है और उसे कठोर दंड देकर जनता को संदेश दिया जाता है कि यह कृत्य स्वीकार्य नहीं है. लेकिन भारत जैसे देशों में हालात अलग हैं अब इसे हम मीडिया (Media) का अधिक कारपोरेट होना मानें या जनता की भूलने की आदत.


सोता हुआ शेर जब जाग जाए


हाल ही में आईएमएफ (IMF) चीफ डोमिनिक स्ट्रॉस (Dominique Strauss Kahn)  पर अपनी नौकरानी से जबरन शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगा जिसकी वजह से उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. एक उच्च पद पर आसीन अफसर को पल भर में एक आम आदमी बना दिया गया. और ऐसा नहीं है यह पहली बार हुआ हो. दुनिया में ऐसे भी बड़े नेता और राष्ट्र प्रमुख हैं जिन पर गंभीर यौन उत्पीड़न और सेक्स स्कैंडल के आरोप लगे हैं उनमें से एक हैं अपनी बिंदास जीवन शैली की वजह से अक्सर विवादों में रहने वाले इतालवी प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी(Silvio Berlusconi) . सेक्स स्कैंडल में फंसे बर्लुस्कोनी को भी अपने पद से इस्तीफा देने की नौबत तक आ गई थी पर अब इसे इटली देश का दुर्भाग्य ही कहिए कि वहां के शासन की कमान एक अय्याश नेता के हाथ में है जो अब भी अपने पद पर बना हुआ है. लेकिन सजा पाने वालों की लिस्ट में एक नाम बहुत ज्यादा उछाल में आया और वह है राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का.


खैर यह तो बात हुई विदेशों की लेकिन अगर भारत की बात की जाए तो हम देखते हैं कि ऐसे स्कैंडल में फंसने वाले राजनेता और अन्य बड़े नामों पर कार्यवाही बहुत कम ही हो पाती है. हालांकि आन्ध्र प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत तिवारी का स्कैंडल में नाम आने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. लेकिन ऐसे भी कई उदाहरण हैं जिनसे साफ होता है कि यहां ऐसे स्कैंडल में फंसने से बड़े लोगों को कोई नुकसान नहीं होता.


नस्लभेदी टिप्पणियों का शिकार हुआ पूर्व क्रिकेटर


कुछ साल पहले कश्मीर में एक स्कैंडल का खुलासा हुआ था. आज इस बात को कई साल बीत गए हैं लेकिन इस बाबत कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया और ना ही गुनहगारों को सजा मिली है. ऐसे मामलों में उचित निर्णय ना मिल पाने की मुख्य वजह है जनता का ऐसे प्रकरणों के प्रति बेरुखी और मीडिया का ऐसे न्यूज को मसाला न्यूज की तरह पेश करना.


आज टीवी में जब भी न्यूज चैनलों में बलात्कार, स्कैंडल या नाजायज संबंधों को मसाला न्यूज की तरह पेश किया जाता है जिसमें नेता और सेलेब्रिटीज लोगों को स्टार बना कर रख दिया जाता है. हर महीने दो महीने बाद एक ना एक नया प्रकरण इस कड़ी में जुड़ता ही है. ऐसा लगता है जैसे कि भारतीय सभ्यता भी अब कुछ-कुछ पश्चिम की राह पर चल निकली है.


आपको क्या लगता है? भारत में राजनेताओं और अन्य मशहूर हस्तियों का गलत कामों में फंसने पर उन्हें उचित सजा ना मिल पाने का कारण क्या है? और इससे जनता को क्या उदाहरण जाता है?


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