हालांकि महिला-पुरुष के बीच विकसित होने वाले संबंधों को लेकर हमारा समाज आज भी रूढ़िवादी की माना जाता रहा है. विशेषकर जब शारीरिक संबंधों का जिक्र उठता है हमारे इस परंपरागत समाज में इसे सिर्फ तभी स्वीकार किया जाते हैं जब यह पति-पत्नी के बीच स्थपित हुए हो. लेकिन जैसा की हम सभी जानते हैं कि आजादी के बाद से लेकर अब तक भारत की तस्वीर पलटने में सिनेमा और उससे जुड़े लोगों की भूमिका काफी अहम रही है वैसे ही संबंधों के क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए भी भारतीय सिनेमा ने अपनी भागीदारी निभाई है.
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एक दौर था जब समाज की आधी आबादी यानि महिलाओं को किसी भी तरह की आजादी नहीं दी गई थी. ना उनकी पढ़ाई पर कोई ध्यान देता है ना उनके अधिकारों की ही तरफ किसी का ध्यान जाता था लेकिन ऐसी स्थिति में बदलाव लाने का जिम्मा भी हम फिल्मकारों को ही देते हैं जिन्होंने पर्दे पर ही सही लेकिन पुरुषों की ही तरह कदम आगे बढ़ाती हुई नारी को पर्देपर उकेरा बस यही नहीं महिलाओं का इतना मार्मिक चिंतन किया जिसने हमारे इसी समाज की रूह को छुआ. जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं के हालातों में बहुत हद तक सुधार देखा गया.
यह तो सिनेमा का एक सकारात्मक पहलू है लेकिन जैसे की हर पक्ष के दो पहलू होते हैं वैसे ही सिनेमा ने भी हमारे समाज को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही ढ़ंग से प्रभावित किया. लिव-इन संबंधों का बढ़ता चलन, समाज में व्याप्त अश्लीलता ऐसे ही कुछ नकारात्मक प्रभाव हैं जिनके उद्भव के लिए अगर सिनेमा को जिम्मेदार ठहराया जाए तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी.
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महेश भट्ट ऐसे ही एक फिल्मकार हैं जिन्होंने अपनी फिल्मों में समाज की उन अनछुई सच्चाई को पर्दे पर उकेरने का काम किया है जिसे सार्वजनिक तौर पर बाहर लाना पूर्णत: निषेध माना जाता है. जिनमें से सबसे बड़ी सच्चाई है महिला-पुरुष के बीच स्थापित होने वाले शारीरिक संबंध. अपनी फिल्मों में महेश भट्ट ने हमेशा बोल्ड विषयों का ही चुनाव किया है यहां तक कि पोर्न इंडस्ट्री की चर्चित अदाकार सनी लियोन को हिन्दी सिनेमा का हिस्सा बनाने का (दु)साहस महेश भट्ट द्वारा ही किया गया है.
20 सितंबर 1948 को मुंबई में जन्में फिल्मकार महेश भट्ट की निजी जिन्दगी भी काफी बोल्ड रही है. पहली पत्नी लोरिएन ब्राइट (किरण भट्ट) से अलग होने के बाद महेश भट्ट का दिवंगत नायिका परवीन बाबी के साथ संबंध काफी चर्चित रहे. इसके बाद महेश भट्ट ने सोनी राजदान नामक मुस्मिल अभिनेत्री से विवाह किया और भी धर्मांतरण के बाद. मर्डर 3 के रिलीज से पहले भी महेश भट्ट ने यह बयान दिया था कि अभी तक भारतीय इस अवधारणा को मानते आए हैं कि हमें एक ही व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने चाहिए. लेकिन अब जब समय बदलता जा रहा है तो ऐसी अवधारणा का भी कोई विशेष औचित्य नहीं रह गया है.
अपनी बात को आधार देते हुए महेश भट्ट का यह साफ कहना है कि अब दर्शकों को ऐसे कॉंसेप्ट पसंद आने लगे हैं. लेकिन ऐसा कहते हुए महेश भट्ट शायद भूल गए हैं कि पसंद होती नहीं बल्कि पसंद बनाई जाती है. उनकी हर फिल्म में सच्चाई के नाम पर अश्लीलता का प्रदर्शन होता है, यह बात हम क्या स्वयं वो जानते हैं. अब अगर बार-बार एक ही चीज को दर्शकों के सामने परोसा जाएगा तो एक समय बाद वहीं सब देखने की ही आदत पड़ जाएगी.
फिल्मकारों का यह कर्तव्य ही नहीं उनकी जिम्मेदारी भी है कि वे समाज को सही मार्ग पर अग्रसर रखने में अपनी भूमिका निभाएं. भारतीय परिदृश्य में मल्टी सेक्स पार्टनर जैसी अवधारणा बेहद ओछी प्रतीत होती है क्योंकि शारीरिक संबंधों की महत्ता भले ही पाश्चात्य देशों में कम होती जा रही हो लेकिन भारत में आज भी इनकी उपयोगिता और इनका महत्व जस का तस है. आधुनिकता की आड़ में परंपराओं और मूल्यों के साथ खिलवाड़ करना बेहद खतरनाक सिद्ध हो सकता है.
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