नवरात्र आते ही माता के दरबार में भक्तजनों का तांता लग जाता है. अष्टमी-नौवी के दिन कन्याओं को बुलाकर विशेष भोजन और पूजा का आयोजन किया जाता है, लेकिन आम दिनों में महिलाओं या लड़कियों की क्या दशा है, ये आपको बताने की जरूरत नहीं है. हम भले ही शहरों तक सीमित हो चुके सेल्फी विद डॉटर, बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ कैम्पेन की बात कर लें, लेकिन असली समस्या तो गांवों की है, जहां अभी भी दकियानूसी रिवाजों और परम्पराओं का खेल खेलकर संस्कारी होने का दम भरा जाता है.
आइए, आपको एक छोटी सी बात से देश के एक गांव में चलने वाली एक ऐसी प्रथा के बारे में बताते हैं जिसके बारे में सुनकर आप हैरान हुए बिना नहीं रह पाएंगे. सोचिए, आप कुछ खा रहे हैं और आपके जूतों पर वो खाने की चीज गिर जाती है. ऐसे में आप क्या करेंगे, जाहिर-सी बात है, जूतों पर गिरी उस चीज को उठाकर बाहर कूड़ेदान में फेंक देते हैं लेकिन अगर कोई आपसे ये कहे कि जूतों में पानी भरकर पीने से आपकी सारी परेशानी सुलझ जाएगी तो आप ऐसा कहने वाले किसी व्यक्ति को पागल ही समझेंगे.
अब सुनिए, राजस्थान के भिलवाड़ा की बात, जहां पर महिलाओं को जूतों में पानी भरकर पिलाने को उपचार का तरीका बताया जाता है. दरअसल, खुद को महापंडित कहने वाले कुछ लोग महिलाओं की मानसिक बीमारी का इलाज करने का दावा करते हुए उन्हें जूतों में भरकर पानी पीने को मजबूर करते हैं.
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आपको जानकर और भी हैरानी होगी कि सड़े हुए चमड़ों के जूतों को न सिर्फ महिलाओं के सिर पर रखकर उन्हें कोसों दूर चलने को मजबूर किया जाता है बल्कि उन्हें इन जूतों में पानी भरकर पीने की हिदायत भी दी जाती है. ऐसा न करने पर उन्हें भीड़ के सामने डायन घोषित कर दिया जाता है. राजस्थान में काफी ऐसी प्रथाएं आज भी जारी हैं, जिनमें महिलाओं का शोषण और उनपर अत्याचार किया जाता है. देश के ग्रामीण इलाकों में घटने वाली ऐसी घटनाओं को सुनकर 21वीं सदी के विकासशील भारत की बेहद डरावनी तस्वीर दिखती है…Next
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