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बिना बंदूक का घोड़ा दबाए गाजी जी ने मार ली बाजी!

आपने शायद सुना होगा…रविवार (14 फरवरी) को बीएसपी के विधायक मोहम्मद गाजी आधा दर्जन लाव-लश्कर के साथ सहुवाला जंगल पहुंच गए. पर क्यों? क्योंकि अपने विधान सभा   क्षेत्र में 10 लोगों की हत्या कर चुकी बघिनी का उन्हें शिकार करना था. अब कोई जाकर गाजी जी को बताए कि भले ही जानवर उन्हें वोट नहीं देंगे लेकिन बाघ-बघिनी भी उन्हीं के कांस्टिचुएंसी में आते हैं और उनकी रक्षा का दायित्व भी उन्हीं का है.

BSP MLA Mohammad Ghazi






जंगलों से सटे गांवों में अक्सर नरभक्षी बाघ या बाघिन का आबादी वाले इलाकों में घुसकर लोगों को नुकसान पहुंचाने की खबरें आती हैं. मानवीय आधार पर सबसे पहले गांव वालों के लिए हमारी संवेदनाएं होती हैं. उन जानवरों की स्थिति क्रूर और हिंसक अत्याचारी पशु के रूप में सामने आती है. पर इन घटनाओं के पीछे के कारण किसी से छुपे नहीं हैं. जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है और आबादी की सुविधाओं के लिए जंगल काटे जा रहे हैं, वन के घेराव क्षेत्र घट रहे हैं. अन्य जानवरों के साथ इसने बाघों के लिविंग एरिया को कम किया है. आंकड़ों की मानें तो 1990 के बाद बाघों के लिविंग एरिया में 41 प्रतिशत की कमी आई है और आज यह 1,184,9111 वर्ग किलोमीटर में सिमट गई है. अन्य जानवरों की तुलना में बाघ ज्यादा वनचर होते हैं. जंगलों में घूमते हुए शिकार करना उनकी पसंदगी में शमिल है. यही कारण है कि कई बार शिकार की खोज में या घूमते हुए भटककर वे वनों से सटे हुए आबादी वाले क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं. लोगों के लिए जहां यह डर का कारण बन जाता है वहीं बाघों के लिए भी यह कम डरावना नहीं होता. कई बार भोजन के अभाव में भी वे बार-बार ऐसी जगहों पर आते हैं ताकि खाना मिल सके लेकिन आदमियों की जान लेकर ये अपनी जान गंवा बैठते हैं और मारे जाते हैं.


एक आंकड़े के अनुसार 20वीं सदी में पूरे विश्व में कुल 10 हजार बचे हुए बाघों की संख्या 21वीं सदी आते-आते अब केवल 3200 रह गई है. यह हालत तब है जब बाघ बांग्लादेश, भारत, वियतनाम, मलेशिया और साउथ कोरिया देशों का राष्ट्रीय पशु है. इनके निवास स्थान (जंगलों के कटने से) और अवैध शिकार के कारण भी इनकी संख्या घटती रही है. इसी कारण भारत में बाघों के शिकार पर रोक भी लगा दी गई.

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सुरक्षा की जरूरत

मोहम्मद गाजी जैसे विधायक अगर अपनी कांस्टिचुएंसी की रक्षा के लिए बाघ को मारने जाने तक का साहस जुटा लेते हैं तो क्या उन्हें उन बाघों के आबादी वाले क्षेत्रों में आने की वजह को खत्म करने के लिए काम नहीं करना चाहिए? जितनी तत्परता गाजी जी आपने पूरे लाव-लश्कर समेत बाघिन को मारने जाने में दिखाई अगर उतनी ही तेजी वह उस बाघिन को पकड़कर उसे सुरक्षित जगह पहुंचवाने में लगाते तो उनकी कांस्टिचुएंसी के लोग भी बच जाते और खत्म होने के कगार पर पहुंची एक बाघिन भी सलामत रहती. हालांकि अब तक वह गाजी की बंदूक की नाल के पंजों से दूर है. यह शायद उसकी किस्मत रही हो या शायद गाजी जी को पता हो कि उसे मारकर उन्हें लोकसभा का टिकट और वोट की बजाय जेल की सलाखें मिलें. जो भी हो लेकिन मानना पड़ेगा..फेमस होने का यह तरीका अच्छा है कि जब एक घोड़े के साथ, बिना बंदूक का घोड़ा दबाए गाजी जी तो फेमस हो गए!

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