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क्या परिवार वाले ही मजबूर करते हैं आत्महत्या के लिए?

suicideबदलती जीवनशैली के कारण आज युवाओं के भीतर सहनशक्ति में भी अत्याधिक कमी देखी जा रही है. वर्तमान समय में लगभग सभी ओर प्रतिस्पर्धा हावी हो चुकी है. पढ़ाई, कॅरियर और पारिवारिक जिम्मेदारियां कुछ ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जिनमें असफलता व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर देती है. जाहिर है कोई व्यक्ति अपने सुनहरे सपनों और बहुमूल्य जीवन का अंत खुशी से नहीं करेगा. अगर वे आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठाते हैं या कोशिश भी करते हैं तो इसके पीछे उनकी कोई बहुत बड़ी विवशता होती है.


कुछ समय पहले तक जब वैयक्तिक जीवन इतना जटिल नहीं था, मनुष्य की इच्छाएं और जरूरतें भी सीमित थीं तब आत्महत्या जैसे मामले कम ही देखने को मिलते थे. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जीवन की परेशानियों से तंग आकर व्यक्ति का अपने जीवन को अंत करने की ओर रुझान बहुत ज्यादा बढ़ा है.


विशेषकर युवाओं की अगर बात करें तो आंकड़े यह साफ प्रदर्शित करते हैं कि पिछले दस वर्षों में 15-24 साल के युवाओं में आत्महत्या के मामले सौ प्रतिशत से ज्यादा बढ़े हैं. पहले यह माना जाता था कि पारिवारिक आर्थिक संकट और वित्तीय परेशानी ही व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए विवश करती है लेकिन अब आर्थिक कारणों से कहीं ज्यादा कॅरियर की चिंता या असफलता युवाओं को आत्महत्या करने के लिए विवश कर रही है. इसके अलावा अभिभावकों और अध्यापकों का बच्चे पर पढ़ाई को लेकर दबाव बनाना उनमें आत्महत्या करने जैसी प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहा है. हालांकि प्रेम संबंधों में कटुता या असफलता भी युवाओं के आत्महत्या करने का एक बड़ा कारण है लेकिन फिर भी अभिभावकों का उनसे अत्याधिक अपेक्षाएं उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना देती हैं और अंत में उनके पास अपना जीवन समाप्त करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं रह जाता.


कोटा (राजस्थान) जो आज के समय के एजुकेशन हब के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुका है, जहां हर वर्ष आईआईटी की पढ़ाई के लिए देशभर से हजारों की संख्या में छात्रों का आना-जाना लगा रहता है, वहां बच्चे पढ़ाई के दबाव या अपने सह छात्रों से पीछे रह जाने के दुख में आत्महत्या करने के लिए प्रेरित होते हैं.


मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि कोई भी व्यक्ति एकाएक आत्महत्या करने के बारे में नहीं सोच सकता, उसे इतना बड़ा कदम उठाने के लिए खुद को तैयार करना पड़ता है और पहले से ही योजना भी बनानी पड़ती है. तनावपूर्ण जीवन, घरेलू समस्याएं, मानसिक रोग आदि जैसे कारण पारिवारिक जनों को आत्महत्या करने के लिए विवश करते हैं. इतना ही नहीं महिलाएं अपनी बात दूसरों से शेयर कर लेती हैं इसीलिए उनके आत्महत्या करने की संभावना कम होती है, लेकिन पुरुष किसी से अपनी परेशानी नहीं कहते इसीलिए उन्हें आत्महत्या करने से रोकना मुश्किल हो जाता है.


विशेषज्ञों का मानना है कि आत्महत्या मनोवैज्ञानिक के साथ-साथ जेनेटिक समस्या भी है. जिन परिवारों में पहले भी कोई व्यक्ति आत्महत्या कर चुका होता है उसकी आगामी पीढ़ी या परिवार के अन्य सदस्यों के आत्महत्या करने की संभावना बहुत अधिक रहती है. वहीं दूसरी ओर वे बच्चे जो आत्महत्या के बारे में बहुत ज्यादा सोचते हैं (सुसाइडल फैंटेसी), उनके आत्महत्या करने की आशंका काफी हद तक बढ़ जाती है.


suicide प्राय: देखा जाता है जहां कुछ युवा कॅरियर या पढ़ाई के दबाव में आत्महत्या करने का निर्णय लेते हैं वहीं कुछ प्रेम संबंधों या विवाह जैसे निजी कारणों से परेशान हो कर यह राह अपनाते हैं. इससे यह साफ जाहिर होता है कि सार्वजनिक तौर पर आत्महत्या का कोई कारण लागू नहीं किया जा सकता. यह पूर्णत: व्यक्तियों के स्वभाव और उनकी प्राथमिकताओं पर ही निर्भर है. जब व्यक्ति परेशानियों से घिरने लगता है तो अपरिपक्वता के कारण वह आत्महत्या को ही एक बेहतर विकल्प समझने लगता है.


लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि आखिर क्या कारण है कि आत्महत्या, जिसे नैतिक और कानूनी दोनों ही दृष्टिकोण से एक अपराध की संज्ञा दी जाती है, व्यक्ति को सभी दुखों का अंत लगती है? हो सकता है कुछ लोगों को यह बात सही ना लगे लेकिन सच यही है कि अगर व्यक्ति आत्महत्या करने की कोशिश करता है तो इसके पीछे उसका परिवार और आसपास का वातावरण पूर्ण उत्तरदायी होते हैं. अभिभावकों का अपने बच्चे से अत्याधिक अपेक्षाएं रखना, उनका तुलनात्मक स्वभाव और नंबर कम आने पर ढेर सारी डांट या मार बच्चे को मानसिक रूप से बहुत परेशान करती है. हो सकता है अभिभावक इसे अपनी जिम्मेदारियों का एक हिस्सा समझते हों लेकिन बच्चे के मस्तिष्क पर इसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है. वहीं दूसरी ओर अगर बच्चा अपने प्रेमी की ओर से निराश है तो उसे संभालने की पूरी जिम्मेदारी भी अभिभावकों और उसके दोस्तों की ही होती है. ऐसे समय में उनका यह दायित्व बन जाता है कि व्यक्ति को उसकी असफलता का अहसास ही ना होने दिया जाए.


आत्महत्या की ओर बढ़ते रुझान के लक्षण

  • संबंधित व्यक्ति आत्महत्या के विषय में ज्यादा बात करने लगता है. वह हर बात पर चिड़चिड़ा रहने लगता है और वह कुछ दिन पहले से ही “मैं अब शिकायत नहीं करूंगा, अब नहीं आऊंगा,  मैं चला जाऊंगा” जैसे संकेत भी देने लगता है.
  • व्यक्ति कई बार आत्महत्या करने की कोशिश करता है और सिगरेट, शराब या अन्य कोई नशा बहुत ज्यादा करने लगता है. ऐसा व्यक्ति बहुत ज्यादा दुखी रहने लगता है जिसके कारण वह अनिद्रा का शिकार हो जाता है.

अगर किसी व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो उसे अकेला ना छोड़ें. उसे खुश रखने की पूरी कोशिश करें. इतना ही नहीं उसके पास दवाइयां, या धारदार औजार बिलकुल ना छोड़ें. डॉक्टरी इलाज में देर ना करें और इलाज के बाद भी व्यक्ति का पूरा ध्यान रखें.


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