रेड लाइट पर जब आप अपनी गाड़ी रोकते हैं तो आपसे पैसे मांगने वाले, सामान बेचने वालों की लाइन लग जाती है. बच्चे, बूढ़े, जवान हर उम्र के भिखारी चंद पैसे, एक-दो रुपए की उम्मीद लेकर आपके पास हाथ फैलाते हैं, लेकिन आप उन्हें दुत्कार कर भगा देते हैं. वैसे सही भी है भीख मांगने वालों को पैसे देना उनकी आदत को बढ़ावा देना ही होता है. आपसे पैसे मांगने के लिए रेड लाइट होने का इंतजार करने वालों की भीड़ में एक और चेहरा भी होता है, जिसे हम इसलिए नहीं दुत्कारते क्योंकि वो भीख मांगते हैं, बल्कि दुत्कारने के साथ-साथ उन पर हंसते भी हैं क्योंकि वो ना तो महिला होते हैं ना पुरुष. ट्रांसजेंडर्स कहलाने वाले इन लोगों को भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आधिकारिक तौर पर थर्ड जेंडर घोषित कर उन्हें सभी प्रकार की समान सुविधाएं प्रदान करने की घोषणा कर दी है लेकिन क्या हमारा समाज इन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार है? शायद नहीं क्योंकि अगर हम उन्हें स्वीकार कर चुके होते, उन्हें अपने ही बीच का एक हिस्सा मान चुके होते तो हम ऐसा ना करते जो इस ऑटो ड्राइवर ने किया.
हम महिला और पुरुष के बीच समानता की बात करते हैं लेकिन जब इंसान को समान दृष्टि से देखने की बात आती है तो हम टॉपिक चेंज कर लेते हैं. ना जाने कब तक चलता रहेगा ये सिलसिला.
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