वो भीख माँगता है, लेकिन भिखारी नहीं है! उसके भीख माँगने का उद्देश्य अपना पेट पालना नहीं है. वो भीख माँगता है उसके लिए जिससे विनय, योग्यता, धन, धर्म और सुख की प्राप्ति होता है. वो भीख माँगता है उसके लिए जिसे पाना आज महँगा हो गया है. वो भीख माँगता है अपने हालात बदलने के लिए. जी हाँ! पढ़ाई से भागने के लिए विद्यार्थी तरह-तरह के बहाने बनाते हैं. लेकिन इसकी असली कीमत वही जानता है जिसे शिक्षा मिल नहीं पाती. पढ़िए एक विद्यार्थी की कहानी जो भीख माँगने को मजबूर है लेकिन पेट के लिए नहीं.
जयपुर का यह व्यक्ति दोपहर में तीन बजने तक अपने आस-पास के इलाकों में स्थित दुकानों और घरों के आगे से भीख माँगता हुआ निकलता है. लेकिन घड़ी की सूइयों के तीन पर टिकते ही 48 वर्षीय शिव सिंह राजस्थान विश्वविद्यालय के महाविद्यालय परिसर में किताबों से भरी एक फटी थैले के साथ दिखता है. इसमें स्तब्धकारी यह है कि उसने आज तक अवकाश नहीं लिया है.
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शिव सिंह भिखारी नहीं है. दरअसल वो कानून की पढ़ाई कर रहा एक विद्यार्थी है. वो तीन बजने से पहले पढ़ाई के खर्च को वहन करने के लिए भीख माँगता है और फिर पढ़ाई के लिए महाविद्यालय परिसर पहुँच जाता है. जिस दिन कक्षाएँ नहीं लगती वह महाविद्यालय के पुस्तकालय में बैठकर अध्ययन करता है.
गंगापुर के सरकारी महाविद्यालय से उसने स्नातक की उपाधि अर्जित की है. उसका विवाह कर दिया गया. लेकिन जीविकोपार्जन के लिए पहले उसे नौकरी की तलाश थी. विवाह के बाद उसने नौकरी के लिए चप्पल रगड़े लेकिन हाथों के सामान्य और सुचारू रूप से कार्य न कर पाने के कारण उसे नौकरी नहीं मिली. जब कुछ समय बीत जाने के बाद भी नौकरी की उसकी तलाश पूरी नहीं हुई तो उसके बीवी-बच्चों ने उसे उसके हाल पर अकेला छोड़ दिया.
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वह उस क्षण को याद कर भावुक हो उठता है जब उसके स्वर्गवासी मजदूर माता-पिता उसे पढ़ाई के लिए पैसे देते थे. अकेलेपन और हाथों की आंशिक अशक्तता ने शिव सिंह को भीख माँगने को विवश कर दिया. इसके बावजूद उसने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी. अब वह भीख माँगने के साथ-साथ कानून की पढ़ाई भी कर रहा है.Next….
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