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कितने खतरनाक हैं ये सर्वे !

अभी कुछ दिनों पहले ऑस्ट्रेलिया के एक समाचार पत्र में एक खबर छपी थी कि एक सर्वे के मुताबिक सदी के महानतम बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर हैं न की सर डॉन ब्रेडमैन.

surveyयहां बात डॉन ब्रेडमैन या सचिन तेंदुलकर की नहीं हो रही है यहां बात हो रही है सर्वे की. क्योंकि केवल ऑस्ट्रेलिया की जनता के आधार पर हम यह तय नहीं कर सकते है कि कौन सर्वश्रेष्ठ है. यही नहीं कुछ समय पहले तक चुनावों की मतगणना से पूर्व बहुत सारे न्यूज़ चैनल एक्जिट पोल करवाते थे जिनका आकलन कभी सही होता था तो कभी गलत. एक्जिट पोल पर तो चुनाव आयोग ने रोक लगा दी परन्तु सर्वे पर रोक कौन लगाएगा क्योंकि आकलन के अलावा यह सर्वे लोगों को भ्रमित भी करते हैं.

सर्वे हो या एक्जिट पोल सभी का काम अनुमान लगाना होता है. लोगों से उनके विचार जानकर डाटा इकट्ठा किया जाता है और जिसका विश्लेषण कर शोधकर्ता उपयुक्त प्रश्नों का कयास लगाते हैं. चलिए विश्लेषण की बात तो सही है लेकिन क्या सर्वे के लिए जो डाटा एकत्रित किया जाता है वह उपयुक्त और सही होता है क्योंकि सर्वे का आधार तो डाटा ही होता है जिसके बिना किसी भी सवाल का उत्तर सही से नहीं दिया जा सकता है.

अमूमन लोगों से इकट्ठा किया डाटा केवल कुछ लोगों से लिया गया होता है. अगर किसी देश या राज्य की जनता का सर्वे करना है तो यह मुमकिन नहीं हो पाता कि एक-एक व्यक्ति से प्रश्न पूछा जाए क्योंकि यह प्रक्रिया जहां समय अधिक लेती है वहीं इसमें पैसा भी बहुत खर्च होता है. ऐसी स्थिति में सिर्फ कुछ लोगों से प्रश्न पूछा जाता है. इसके अलावा उन लोगों में से कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनका उत्तर अनिश्चित होता है. मतलब अगर 1,000 लोगों पर सर्वे किया जाए तो केवल 8,00 लोगों से सही जवाब मिल पाता है. ऐसी स्थिति में क्या हम पूरी जनता की धारणा जान सकते हैं शायद नहीं? इसके अलावा पूरा शहर एक समान नहीं होता अर्थात एक शहर में विभिन्न विचारधाराओं वाले लोग रहते हैं और अगर हम किसी भी क्षेत्र को छोड़ देते हैं तो सही आकलन करना मुश्किल हो जाता है.

सर्वे पर दूसरा प्रश्नचिन्ह उठता है डाटा की मौलिकता से. आजकल आप किसी भी न्यूज़ साइट पर चले जाएं सभी किसी न किसी प्रकार का सर्वे कराते रहते हैं. लेकिन कितने लोग होते है जो इस सर्वे में भाग लेते हैं शायद 20 या हद से हद 30 लोग और क्या इन लोगों का आधार बना कुछ भी कहना सही होगा.

सर्वे लोगों की विचारधाराओं का आधार भी होते हैं. अमूमन लोग सर्वे को आधार बना अपने विचारों को ढालते हैं. अगर सर्वे में किसी व्यक्ति विशेष की तरफ़ लोगों का रुझान होता है तो दूसरे लोग भी उसके पीछे हो जाते हैं ऐसी स्थिति में विचारों की स्वतंत्रता खत्म हो जाती है और हम स्वयं अपने विचारों को धारण नहीं कर पाते. शायद यही कारण था जिसके चलते चुनाव आयोग ने एक्जिट पोल पर रोक लगा दी थी.

सर्वे से संबंधित इतने नकारात्मक प्रश्नों को देखते हुए क्या वाकई हम सर्वे पर भरोसा कर सकते हैं ये एक बहस का मामला बन सकता है.

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